संत मार्ग की प्रथम सीढ़ी हे दया और करुणा:- महामंडलेश्वर स्वामी ललिता नंद गिरी

 कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी.मौत आंखों में लिए वह फरियाद करने लगी— ‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं. आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें ।


मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी ।


बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा । वह निर्लिप्त भाव से बोला—‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूं.

जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे । हर प्राणी को एक न एक दिन

तो मरना ही है । समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है ।

यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा…


‘मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे…’ बकरी रोने लगी ।


‘नादान, रोने से अच्छा है कि तू परमात्मा का नाम ले । याद रख, मृत्यु नए जीवन का द्वार है । सांसारिक रिश्ते-नाते प्राणी के मोह का परिणाम हैं, मोह माया से उपजता है । माया विकारों की जननी है । विकार आत्मा को भरमाए रखते हैं…


बकरी निराश हो गई संन्यासी के पीछे आ रहे कुत्ते से रहा न गया, उसने पूछा—‘महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं ?


बिल्कुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा सुंदर पत्नी, भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी, बेशुमार जमीन-जायदाद… मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आ आया ।


सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर…

जैसे कीचड़ में कमल… संन्यासी डींग मारने लगा । आप चाहें तो बकरी की प्राण रक्षा कर सकते हैं ।  कसाई आपकी बात नहीं टालेगा ।


"मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है" सन्यासी ने कहा


तभी 

सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा । सन्यासी के पसीने छूटने लगे । उसने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा । कुत्ते की हंसी छूट गई ।


और बोला ‘मृत्यु नए जीवन का द्वार है… उसको एक न एक दिन तो आना ही है…कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए ।


‘मुझे बचाओ’ अपना ही उपदेश भूलकर सन्यासी गिड़गिड़ाने लगा मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया ।


‘आप अभी यमराज से बातें करें । जीना तो बकरी चाहती है । इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है…’


कहते हुए वह छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुंच गया ।  फिर दौड़ते

हुए कसाई के पास पहुंचा और उसपर टूट पड़ा । आकस्मिक हमले से कसाई के औसान बिगड़ गए ।

वह इधर-उधर भागने लगा ।  बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई ।


कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा । वह अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था ।

कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाये । लेकिन उसका मन नहीं माना । वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुंचा और पूंछ पकड़कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया, 


और बोला—‘महाराज, जहां तक मैं समझता हूं, मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं 

धार्मिक प्रवचन उन्हें उनके पाप बोध से कुछ पल के लिए बचा ले जाते हैं… जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है,

संघर्ष के लिए विवेक, लेकिन मन में यदि करुणा-ममता न हों तो ये दोनों भी आडंबर बन जाते हैं’


मित्रो आजकल बहुत से ज्ञान बघारने वाले और उनके अनुयायी दूसरों के दुखों को कर्म भोग की परिभाषा दे देते हैं लेकिन जब यही दुःख उन्हें प्राप्त होता है तो उपदेश एक ओर होते हैं सिर्फ शिकायतें भरी होती हैं वो व्यक्ति कभी परमार्थ मार्ग पर चल ही नहीं सकता जिसके भीतर दया और करूणा का बोध न हो सके सन्त मार्ग की प्रथम सीड़ी ही दया और करुणा है ।


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