निःशुल्क नेत्र चिकित्सा और मोतियाबिंद की जांच कैम्प का आयोजन

मुस्कान फाउंडेशन ने आयोजित किया निःशुल्क नेत्र चिकित्सा और मोतियाबिंद जाँच शिविर 


205 लोगों के नेत्रो की जांच कर 12 मोतियाबिंद के मरीजो को आपरेशन के लिए चुना ,जौली ग्रांट हास्पिटल में होगें निःशुल्क आपरेशन 


हरिद्वार 31 जनवरी  नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी संस्था मुस्कान फाउंडेशन ने हरिद्वार ग्रामीण विधान सभा के अन्तर्गत ग्राम गाडोवाली मे निःशुल्क नेत्र चिकित्सा और मोतियाबिंद की जांच के लिए कैम्प आयोजित किया। कैम्प की आयोजक मुस्कान फाउंडेशन की संस्थापक नेहा मलिक ने बताया कि इस मैडिकल कैम्प में 205 लोगों के नेत्रो की जांच कर निःशुल्क दवाई वितरण करी और 12 मोतियाबिंद के मरीजो को आपरेशन के लिए जौली ग्रांट रैफर किया गया जिनका आपरेशन निःशुल्क किया जाएगा 
इस कैम्प के आयोजन में डा0 ज्योत्सना मैहरोत्रा, सिमरन, रेणु अरोडा सहित संस्था के पदाधिकारीयो, सहयोगीयो ने योगदान दिया।


संत वाणी, सद् विचार, (माता सच्चिदान्नद निर्मल कुटिया, स्वामी सर्वेश्वर सिंह शास्त्री निर्मल जी महाराज)


  • *हमारा स्वस्थ चिंतन ही हमारी प्रगति का मार्ग है


जो जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है 


हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे  वह आपको अवश्य मिलेगी।*
               अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलतीहैं.....
क्योंकि वे *बुरी चीजों की ही कामना* करते हैं।
                   इंसान ज्यादातर समय सोचता है-कहीं बारिश में भीगने से मै *बीमार न हों जाँऊ* ..और वह *बीमार हो जाता हैं*..!
              
                इंसान सोचता है - मेरी *किस्मत ही खराब* है .. और उसकी *किस्मत सचमुच खराब* हो जाती हैं ..!
       
              इस तरह आप देखेंगे कि आपका *अवचेतन मन( subconscious mind)* इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी *इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण* करता है..!
                इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में *विचारों को सावधानी से प्रवेश* करने की *अनुमति देनी चाहिए।*
               यदि गलत विचार अंदर आ जाएगे तो *गलत परिणाम मिलेंगे। विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू* करने का रहस्य है..!
            आपके *विचारों से ही* आपका  *जीवन* या तो.. 
स्वर्ग बनता है या नरक..उनकी बदौलत ही आपका जीवन सुखमय या *दुख:मय* बनता है..
              विचार जादूगर की तरह होते है , जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..!
           इसलिये सदा सकारात्मक सोच रखें ..


अपने घर परिवार की सुरक्षा के लिये जागरूक बने(पवन आर्य मिर्ज़ा पुर)

अपने घर परिवार की सुरक्षा के लिये जागरूक बने


आप अपने घर में भी कैसे चैन से सो सकते है ? जरा विचार करें -----


रात को आप घर का दरवाजा अन्दर से बन्द कर अपने 8 वर्ष के बेटे को कहानी सुनाते सुनाते स्वयं भी सो गये हों । गर्भवती पत्नी थकावट महसूस करने की वजह से पहले ही सोने जा चुकी है। घर में शान्ति है।
 अचानक घर के दरवाजे पर जोर से पीटे जाने और दरवाजा खोलने के लिए चीखती आवाजें सुनाई पड़े । आप सही से जाग कर कुछ समझ पाते, उससे पहले ही कुछ लोग दरवाजा तोड़कर अन्दर आ जाएं ।  आप कांपते हाथ से मोबाइल पर किसी मित्र को मदद के लिए फोन करने की कोशिश ही करें तभी घर में जबरन घुसी रोहिंग्याओं की भीड़ में से किसी ने अपने हाथ में पकड़े धारदार कांते से आपके उसी मोबाइल वाले हाथ पर जोर से मारा, आपके हाथ से खून की तेज धारा बह निकली। लेकिन आपको दर्द का अहसास भी नहीं हुआ, क्योंकि उनमें से कुछ लोग धारदार हथियारों से आपके 8 वर्ष के मासूम को मार रहे हों । आप चिल्ला पड़े कि बच्चे को तो मत मारो. लेकिन आपकी दर्द भरी  आवाज उन भेड़ियों  की चिल्लाती आवाज में डूबकर रह जाए। आपकी आंखों के सामने ही उन जंगली कुत्तों ने आपके मासूम बच्चे को 3-4 जगह ऐसे घाव दे दिये कि उसके शरीर से भी जगह जगह से खून बहने लगा हो। उधर कुछ जवान जंगली भेड़िये आपकी पत्नी के शरीर पर टूट पड़ें। अगले कुछ पलों के अंदर आपके शरीर में इतने घाव हो चुके हों कि आपकी सांस बन्द होने लगे और उन्हीं मिनटों में आपका 8 वर्ष का बेटा, आपकी पत्नी और उसकी कोख में रहता आपका अजन्मा शिशु सबकी हत्या हो चुकी हो।.  


 खूंखार भेड़िये अपने हथियारों को आपके बेटे के कपड़ों से पोंछते हुये हंसते हुये आपके घर से चले गये.  अगले दिन फिर किसी दूसरे गोपाल (प्रकाश) के परिवार का कत्ल करने के मन्सूबों के साथ.  कल फिर किसी दूसरे मासूम के शरीर को काटकर अपने हथियारों की धार जांचने की तैयारी के साथ. 


आमिर खान. नसीरूद्दीन शाह. कहां हो तुम लोग?  प. बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक 35 वर्षीय गोपाल पाल (बंधु प्रकाश पाल ), उसकी 30 वर्ष की गर्भवती पत्नी और 8 वर्ष के बेटे - सभी को नृशंसतापूर्ण काटकर कत्ल कर दिया गया । उनका गुनाह सिर्फ यह था कि वो हिन्दू थे और मोमता बानो के प. बंगाल में एक मुस्लिम बहुल इलाके के बिल्कुल पास में ही रहते थे।  


आमिर खान, नसीरूद्दीन शाह. मुझे आज फिर डर लग रहा है.  अगला नाम कौन होगा? मेरा नम्बर कब आयेगा?? 


ममता बानो से तो किसी तरह की कोई कार्यवाही की आशा ही नहीं है। केन्द्र सरकार आखिर कब तक पं बंगाल में हिंदुओं के कत्लेआम पर चुप्पी साधे रहेगी । ममता बनर्जी पं बंगाल में लाखों हिंदुओं को कत्ल करवा चुकी है। अब क्या आप अपने परिवार की बारी का इंतजार कर रहे हैं?
 देखना है कि क्या भारत के हिन्दू म्याँमार के बौद्ध लोगों से सीख लेंगे? और एकजुट होकर हिम्मत से इन जेहादियों और आतंकियों को खत्म करते हैं या सबका खून पानी हो चुका है। 
 हिंदुओं अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए शस्त्र उठाओ और अधर्मियों का नाश करो तभी भारत में शांति की स्थापना होगी और तभी आप और आपका परिवार सुरक्षित रह सकता है।


जय हिंद। वंदेमातरम।ं


महाराणा प्रताप और वियतनाम

महाराणा प्रताप और वियतनाम 


वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया ऐसी कौन सी ताकत थी वियतनाम के पास 


लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ था। अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा... 


जाहिर सी बात है कि सवाल यही होगा कि आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया?


पर उस प्रश्न का दिए गए उत्तर को सुनकर आप हैरान रह जायेंगे और आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा। 


दिया गया उत्तर पढ़िये- 


सभी देशों में सबसे शक्ति शाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व् श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की। 


आगे पत्रकार ने पूछा: "कौन थे वो महान राजा ?"


मित्रों, जब मैंने पढ़ा तब से जैसे मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। आपका भी सीना गर्व से भर जायेगा।


वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया: "वो थे भारत के राजस्थान में मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप सिंह।" 


महाराणा प्रताप का नाम लेते समय उनकी आँखों में एक वीरता भरी चमक थी। आगे उन्होंने कहा: 


"अगर ऐसे राजा ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो हमने सारे विश्व पर राज किया होता।"


कुछ वर्षों के बाद उस राष्ट्राध्यक्ष की मृत्यु हुई तो जानिए उसने अपनी समाधि पर क्या लिखवाया...


"यह महाराणा प्रताप के एक शिष्य की समाधि है"


कालांतर में वियतनाम के विदेशमंत्री भारत के दौरे पर आए थे। पूर्व नियोजित कार्य क्रमानुसार उन्हें पहले लाल किला व बाद में गांधीजी की समाधि दिखलाई गई। 


ये सब दिखलाते हुए उन्होंने पूछा: "मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप की समाधि कहाँ है ?"


तब भारत सरकार के अधिकारी चकित रह गए और उन्होंने वहाँ उदयपुर का उल्लेख किया। वियतनाम के विदेशमंत्री उदयपुर गये, वहाँ उन्होंने महाराणा प्रताप की समाधि के दर्शन किये।


समाधी के दर्शन करने के बाद उन्होंने समाधि के पास की मिट्टी उठाई और उसे अपने बैग में भर लिया इस पर पत्रकार ने मिट्टी रखने का कारण पूछा। 


उन विदेशमंत्री महोदय ने कहा: 


"ये मिट्टी शूरवीरों की है। इस मिट्टी में एक महान् राजा ने जन्म लिया ये मिट्टी मैं अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा..." 


"ताकि मेरे देश में भी ऐसे ही वीर पैदा हो। मेरा यह राजा केवल भारत का गर्व न होकर सम्पूर्ण विश्व का गर्व होना चाहिये"


वसुधैव कुटम्बकम्


  • सहृदय व्यक्तियो के लिए सारी दुनिया ही परिवार है 
             *एकमात्र  पुत्री  के  विवाह  के  उपरांत  मिसिज़  गुप्ता  एकदम  अकेली  हो  गयी  थी ।  गुप्ता  जी  तो  उनका  साथ  कब  का  छोड़  चुके  थे , एक  बेटी  थी  वो  भी  पराये  घर  की  हो  गयी  थी  । नाते  रिश्तेदारों  ने  औपचारिकता  निभाने   के  लिए  एक  दो  बार  कहा  भी  था  कि  अब  बुढ़ापे  में  अकेली  कैसे  रहोगी  हमारे  साथ  ही  रहो । और  बेटी  ने  भी  बहुत  अनुरोध  किया  अपने  साथ  रखने  का , परन्तु  वो  किसी  के  साथ  जाने  को  सहमत  नहीं  हुईं , शाम  के  वक्त  छत  पर  ठंडी  हवा  में  घूमते   हुए  घर  के  पिछवाड़े  हॉस्टल  के  छात्रों  को  क्रिकेट  खेलते  देखना  उन्हें  बहुत  भाता  था ।  कई  बार  बच्चों  की  बॉल  छत  पर  आ  जाती  तो  वो  दौड़  कर  उसे  फैंकतीं  तो  लगता  मानो  उनका  बचपन  लौट  आया  हो । कई  बार  बॉल  छत  को  पार  कर  आंगन  में  पहुंच  जाती  और  बच्चे  उसे  लेने  जाते  तब  मिसिज़  गुप्ता  उनसे  पल  भर  में  ढेरों  सवाल  पूछ  बैठतीं " बेटा  कौन  से  क्लास  में  पढ़ते  हो , घर  की  याद  नहीं  आती  क्या ,  यहांं  खाना  कैसा  मिलता  है , कभी  ज्यादा  अच्छे  मूड़  में  होतीं  तो  पूछती  "अच्छा!  पढते  भी  हो  ,  या  गर्लफ्रेंड  के  चक्कर  में  ही  पड़े  रहते  हो  ,  बताओ  किसकी  कितनी  हैं ।  और  बच्चे  कह  उठते  आंटी  एक  गर्ल  फ्रेंड  तो  आप  ही  हैं*
           *ठहरो  बदमाशों  अभी  बनती  हूँ  तुम्हारी  गर्लफ्रेंड  ,  शैतान  कहीं  के ।और  आंटी  लडकों  के  पीछे  दौड़ती  तो  सारे  छात्र  हंसते  हुए  भाग  जाते* 
             *इस  तरह  बच्चों  से  अपनापन  बढता  चला  गया  ।  कभी  उन्हें  जबरदस्ती  अपने  हाथ  से  बनाई  खीर  खिलातीं  ,  कभी  तीज  त्यौहार  पर  सारे  बच्चों  को  खाने  का  न्यौता  दे  देतीं  और  फिर  ढेर  सारे  पकवान   बना  कर  बडे़  प्यार  से  खाना  खिला  कर  भेजतीं  ।          कई  बार  मैदान   में  झगड़ते  देख  उन्हें  डांट  लगाने  में  भी  पीछे  नहीं  रहतीं  ।  बच्चों  को  भी  उनमें  एक  मां  दिखने  लगी  थी  ।  छात्रों  की  परीक्षा  समीप  आ  गयी   थीं  ।  खेल  के  मैदान  में  आना  कम  हो  गया  था  ।  मिसिज़  गुप्ता  कुछ  उदास  सी  रहने  लगीं  थी  ।  और  कुछ  दिन  से  स्वास्थ  भी  खराब  रहने  लगा* 
           *पढाई  करते  हुए  एक  छात्र   को  आंटी  की  याद  आ  गयी  तो  हालचाल  पूछने  उनके  घर  पहुंच  गया  ।  देखा  मिसिज़  गुप्ता  तेज  बुखार  से  तप  रहीं  थीं  ।  बात  पूरे  छात्रावास  में  आग  की  तरह  फैल  गयी  ।  कई  लड़के  आनन-फानन  में  उन्हें  लेकर  अस्पताल  पहुंच  गये* 
            *कई  तरह  की  जांच  के  बाद  डाक्टर  ने  बताया  कि  फीवर  तो  जल्द  ही  ठीक  हो  जायेगा  ,  पर  कमजोरी  बहुत  ज्यादा  आ  गयी  है  ,  खून  चढ़ाना  पडेगा  ।  इनके  परिवार  से  कौन  हैं  ,  और  सारे  छात्र  एक  स्वर  में  बोल  पडे़  "मैं   हूं  डाक्टर  साहब"  ।   मिसिज़ गुप्ता  अपने  इतने  विशाल  परिवार  को  देख  कर  खुशी  के  कारण  अपने  आंसुओं  को  रोक  न  सकी  ,  परिवार  खून  के  रिश्तों  से   नही  बनता  की  खून  के   रिश्ते  है  तो  यह  परिवार  है  ,  परिवार  तो  प्रेम  के  बंधनों  से  बंधा  होता  है  , प्रेम  से  बड़ा  कोई  भी  रिश्ता  नही  आप  चाहो  तो  प्रेम  से  सारे  संसार  को  अपना  परिवार  बना  सकते  हो  पर  उस  प्रेम  की  एक  शर्त  होती  है  कि  उसमें  स्वार्थ  का  प्रेम  कभी  न  हो  रिश्ते  दिल  की  गहराई  से  जुड़े  होने  चाहिए* बड़ी सोच अनंजान को भी अपना बना देती हैं। 



ग्रामीणो ने लगाई निशंक से गुहार

रूडकी कैंट के ग्रामीणो ने लगाई निशंक से गुहार 


(संजय सैनी, संवाददाता गोविंद कृपा ,रूडकी ग्रामीण) 


रूडकी कैंट से लगे ग्रामीण क्षेत्रों के लोग आर्मी की हठ धर्मिता से त्रस्त है आर्मी के अधिकारी उनका रास्ता बंद करने पर अमादा है। इस समस्या को लेकर ग्रामीण केन्द्रीय मंत्री डा0निशंक से मिले। 


टोडा कल्याणपुर का जो आर्मी के बीच से रास्ता जा रहा है उस रास्ते पर आर्मी द्वारा उत्पन्न की समस्याओं  वे रास्ते पर आर्मी द्वारा गेट लगाकर रास्ते को बंद करने की नियत को पूर्व मंडल अध्यक्ष श्री जितेंद्र पुंडीर,संजय सैनी , विशाल गिरी , मनोज पटेल, अरुण गिरी ने दिल्ली जाकर केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जी को अवगत कराया जिस पर माननीय निशंक जी ने पूर्ण विश्वास दिलाया  और कहां  आर्मी हाईकमान में बात कर कर समस्या का पूर्ण रूप से समाधान किया जाएगा।


बापू को श्रद्धांजलि

नेहरू युवा केन्द्र के युवा मंडल अजीत पुर ने दी बापू को श्रद्धांजलि 


हरिद्वार  30 जनवरी  (प्रखर कश्यप, सवंददाता गोविंद कृपा)  नेहरू युवा केंद्र हरिद्वार द्वारा प्रमाणित नेहरू युवा मंडल अजीतपुर ने वात्सल्य वाटिका में आज दिनांक 30 जनवरी 2020 को गांधी जी की पुण्यतिथि पर किया गांधी जी को याद और उनके सपने स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत को पूरा करने की शपथ ली शपथ समारोह में वात्सल्य वाटिका के सह प्रबंधक पंकज चौहान जी ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता एक सच्चाई के मार्ग पर चलें और विजय हासिल की ऐसा ही आज के युवा को करना चाहिए कार्यक्रम में नेहरू युवा केंद्र संगठन हरिद्वार के राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रखर कश्यप विनय मनीष प्रिंस प्रभात सौरभ सोनू अंकित राजेश प्रभाकर पंकज आदि उपस्थित रहे


गुरु कृपा ही केवलम् हैं मुक्ति का मार्ग

जीवन का उद्देश्य 
 गुरूदेव की कृपा से ही बदलता है भाग्य 


संसार रूपी वैतरणी से पार लगाकर, ईश्वर से एकाकार करवाते है गुरु देव


एक बच्चा जब 13 साल का हुआ तो उसके पिता ने उसे एक पुराना कपड़ा देकर उसकी कीमत पूछी।
बच्चा बोला 100 रु। 
तो पिता ने कहा कि इसे बेचकर दो सौ रु लेकर आओ। बच्चे ने उस कपड़े को अच्छे से साफ़ कर धोया और अच्छे से उस कपड़े को फोल्ड लगाकर रख दिया। अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया, जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो सौ रु में बिका।


कुछ दिन बाद उसके पिता ने उसे वैसा ही दूसरा कपड़ा दिया और उसे  500 रु में बेचने को कहा।
इस बार बच्चे ने अपने एक पेंटर दोस्त की मदद से उस कपड़े पर सुन्दर चित्र बना कर रंगवा दिया और एक गुलज़ार बाजार में बेचने के लिए पहुंच गया। एक व्यक्ति ने वह कपड़ा 500 रु में खरीदा और उसे 100 रु ईनाम भी दिया।


जब बच्चा वापस आया तो उसके पिता ने फिर एक कपड़ा हाथ में दे दिया और उसे दो हज़ार रु में बेचने को कहा। इस बार बच्चे को पता था कि इस कपड़े की इतनी ज्यादा कीमत कैसे मिल सकती है । उसके शहर में  मूवी की शूटिंग के लिए एक नामी कलाकार आई थीं। बच्चा उस कलाकार के पास पहुंचा और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले लिए।


ऑटोग्राफ लेने के बाद बच्चे ने उसी कपड़े की बोली लगाई। बोली दो हज़ार से शुरू हुई और एक व्यापारी ने वह कपड़ा 12000 रु में ले लिया।


रकम लेकर जब बच्चा घर पहुंचा तो खुशी से पिता की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने बेटे से पूछा कि इतने दिनों से कपड़े बेचते हुए तुमने क्या सीखा ? 


बच्चा बोला -  पहले खुद को समझो , खुद को पहचानो । फिर पूरी लगन से मन्ज़िल की और बढ़ो क्योकि जहां चाह होती है, राह अपने आप निकल आती है।'


पिता बोले कि तुम बिलकुल सही हो, मगर मेरा ध्येय तुमको यह समझाना था कि कपड़ा मैला होने पर इसकी कीमत बढ़ाने के लिए उसे धो कर साफ़ करना पड़ा, फिर और ज्यादा कीमत मिली जब उस पर एक पेंटर ने उसे अच्छे से रंग दिया और उससे भी ज्यादा कीमत मिली जब एक नामी कलाकार ने उस पर अपने नाम की मोहर लगा दी ।
तो विचार करें जब इंसान उस निर्जीव कपड़े को अपने हिसाब से उसकी कीमत बड़ा सकता है । 
तो फिर वो मालिक जिसने हम जीवों को बनाया है क्या वो हमारी कीमत कम होने देंगा ?


 जीवात्मा भी यहां आकर मैला हो जाता है लेकिन सतगुरु हम मैली जीवात्माओं को पहले साफ़ और स्वच्छ करते हैं, जिससे परमात्मा की नज़र में हम जीवात्माओं की कीमत थोड़ी बढ़ जाती है ।


 फिर सतगुरु हम जीवात्माओं को अपनी रहनी के रंग में रंग देते हैं, फिर कीमत और ज्यादा बढ़ जाती है। 
और फिर सतगुरु हम पर अपने नाम की मोहर लगा देते हैं फिर तो इंसान अपनी कीमत का अंदाज़ा ही नही लगा सकता।


लेकिन अफ़सोस इतना कीमती इंसान अपने आप को कौड़ियों के दाम खर्च करते जा रहा है उसे अपने आप की ही पहचान नही , उसे अपने ऊपर लगी सतगुरु के नाम रूपी कृपा और उस अपार दया की कद्र नही, क्योकि अगर कद्र होती तो उसके☝ हुकुम में रहकर भजन बन्दगी को पूरा पूरा समय देकर अपने इंसानी जामे का मकसद और उसकी कीमत भी जरूर समझता। जय श्री कृष्ण। 


स्वामी विवेकानन्द एकेडमी में बसंत पंचमी महोत्सव

स्वामी विवेकानन्द एकेडमी जूनियर हाई स्कूल मे श्रद्धा के साथ मनाया गया बसंत पंचमी पर्व


लायंस क्लब की ओर से बच्चों को बाँटे गये उपहार। 


हरिद्वार  30 जनवरी स्वामी विवेकानन्द एकेडमी जूनियर हाई स्कूल कांगडी में माँ शारदे की पूजा अर्चना का पर्व बसंत पंचमी महोत्सव श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया गया। संस्था के अध्यक्ष सुदीप बनर्जी,शिक्षण समिति की अध्यक्ष अनीता वर्मा के संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि लांयस क्लब की अध्यक्ष कमल मनचंदा रहे। विद्यालय के प्राचार्य डा0 कमलेश कांडपाल के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में स्कूल के नन्हें मुन्ने बच्चों ने सरस्वती वंदना और कविता, गीत और नृत्य का रंगा रंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया लांयस क्लब से आऐ अतिथियो, ने बच्चों का उत्साह वर्धन करते हुए उन्हें पुरस्कृत किया और इंडोर गेम, कैरम बोर्ड, बाल, चैस, लूडो, पजल गैम,आदि भेंट किये साथ ही शिक्षण सामग्री के रूप में ब्लेक बोर्ड, डसटर, चौक, कापी, पैंसिल आदि उपहार दिये। विद्यालय में आऐ हुए अतिथियो, अभिभावको का स्वागत उप प्रचार्य गोपाल रतूडी, मीनाक्षी भट्ट, पूजा सैनी, मोहनी, आरती सैनी तथा स्कूल के स्टाफ ने किया।


होली के आगमन का संदेश बसंती पंचमी

होली का आध्यात्मिक 


महत्व (पवन पंत) 


सवा महीने बाद आऐगी होली


होली के आगमन का संदेश ले कर आती हैं बसंती पंचमी


होली पर्व आने वाला है आइए जाने हम होली मनाते तो है लेकिन हमारे जितने पर्व है उनका हमारी आध्यात्मिक संस्कृति से सम्बंध रहा है तो आइए जाने वैदिक सोमयज्ञ होली का आध्यात्मिक रहस्य......होली
का पर्व आते ही सर्वत्र उल्लास छा जाता है। हास-परिहास, व्यंग्य-विनोद, मौज-मस्ती और मिलने जुलने का प्रतीक लोकप्रिय पर्व होली वास्तव में एक वैदिक यज्ञ है, जिसका मूल स्वरूप आज विस्मृत हो गया है। आनन्दोल्लास का पर्व होली प्रेम, सम्मिलन, मित्रता एवं एकता का पर्व है। होलिकोत्सव में होलिका दहन के माध्यम से वैरभाव का दहन करके प्रेमभाव का प्रसार किया जाता है। होली के आयोजन के समय समाज में प्रचलित हँसी-ठिठोली, गायन-वादन, चाँचर (हुड़दंग) और अबीर इत्यादि के उद्भव और विकास को समझने के लिये हमें उस वैदिक सोमयज्ञ के स्वरूप को समझना पड़ेगा, जिसका अनुष्ठान इस महापर्व के मूल में निहित है।
जो सिंदूरारूण विग्रहा देवी परम तृप्त हैं, अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक सर्वेश्वर का जिन्हें संनिधान प्राप्त है, जो अनन्तब्रह्माण्डजननी ऐश्वर्य-माधुर्य की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी भगवती का भी सर्वोत्तम सारसर्वस्व हैं, वे ही श्रीराधारानी हैं। सर्वेश्वर भी जिनके पादारविन्द-रज की आराधना करते हैं, उनसे बढ़कर किसकी तृप्ति हो सकती है; उनका तर्पण होने पर सारे संसार का तर्पण हो जाता है।
     वैदिक यज्ञों में सोमयज्ञ सर्वोपरि है। वैदिक काल में प्रचुरता से उपलब्ध सोमलता का रस निचोड़कर उससे जो यज्ञ सम्पन्न किये जाते थे, वे सोमयज्ञ कहे गये हैं। यह सोमलता कालान्तर में लुप्त हो गयी। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस सोमलता के अनेक विकल्प दिये गये हैं, जिनमे पूतीक और अर्जुन वृक्ष ,प्रमुख हैं। औषधि के रूप में अर्जुन वृक्ष को हृदय के लिए अत्यंत लाभ कारी माना गया है, सोमरस इतना शक्तिवर्धक और उल्लासकारी होता था कि उसका पान कर ऋषियों को अमरता जैसी अनुभूति होती थी। 
     इस दिन यज्ञ अनुष्ठान  के साथ कुछ ऐसे मनोविनोद  पूर्ण कृत्य किये जाते थे जिनका प्रयोजन हर्ष और उल्लास मय वातावरण उपस्थित करना होता था। इन सोमयागों के तीन प्रमुख भेद थे-एकाह, अहीन और सत्रयाग। यह वर्गीकरण अनुष्ठान दिवसों की संख्या के आधार पर है। सत्रयाग का अनुष्ठान पूरे वर्षभर चलता था। उनमें प्रमुखरूप से ऋत्विग्गण ही भाग लेते थे और यज्ञ का फल ही दक्षिणा के रूप में मान्य था। गवामयन भी इसी प्रकार का एक सत्रयाग है, जिसका अनुष्ठान ३६० दिनों में सम्पन्न होता है। इसका उपान्त्य(अन्तिम दिन से पूर्व का) दिन 'महाव्रत' कहलाता है। ‘महाव्रत’ में प्राप्य ‘महा’ शब्द वास्तव में प्रजापति का द्योतक  है, जो वैदिक परम्परा में संवत्सर के अधिष्ठाता माने जाते हैं और उन्हीं पर सम्पूर्ण वर्ष की सुदृढ़-समृद्धि निर्भर है। ‘महाव्रत’ के अनुष्ठान का प्रयोजन वस्तुत: इन प्रजापति को प्रसन्न करना है-
‘प्रजापतिर्वाव महाँस्तस्यैतद् व्रतमन्नमेव [यन्महाव्रतम्]’
     यज्ञवेदी के समीप एक उदुम्बर वृक्ष(गूलर) की टहनी गाड़ी जाती थी, क्योंकि गूलर का फल माधुर्य गुण की दृष्टि से सर्वोपरि माना जाता है। 'हरिश्चन्द्रोपाख्यान' में कहा गया है कि जो निरन्तर चलता रहता है, कर्म में निरत रहता है, उसे गूलर के स्वादिष्ट फल खाने के लिये मिलते हैं-‘चरन् वै मधु विन्देत चरन्स्वादुमुदुम्बरम्'(ऐतरेय ब्राह्मण)। गूलर का फल इतना मीठा होता है कि पकते ही इसमें कीडे पड़ने लगते हैं। उदुम्बरवृक्ष की यह टहनी सामगान की मधुमयता की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति करती थी। इसके नीचे बैठे हुए वेदपाठी अपनी-अपनी शाखा के मंत्रो का पाठ करते थे। सामवेद के गायकों की चार श्रेणियां थीं- उद्गाता, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता और सुब्रह्मण्य। पहले ये समवेत रूप से अपने-अपने भाग को गाते थे, फिर सभी मिलकर एक साथ समवेत रूप से गान करते थे। होली में लकड़ियों को चुनने से लगभग दो सप्ताह पूर्व गाड़ी जाने वाली एरण्ड वृक्ष की टहनी इसी औदुम्बरी(उदुम्बर की टहनी) का प्रतीक है। धीरे-धीरे जब उदुम्बरवृक्ष का मिलना कठिन हो गया तो अन्य वृक्षों की टहनियाँ औदुम्बरी के रूपमें स्थापित की जाने लगीं। एरण्ड एक ऐसा वृक्ष है, जो सर्वत्र सुलभ माना गया है। संस्कृत में एक कहावत है, जिसके अनुसार जहाँ कोई भी वृक्ष सुलभ न हो, वहाँ एरण्ड को ही वृक्ष मान लेना चाहिये-.
‘निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते।’ उद्गाता तो उदुम्बर काष्ठ से बनी आसन्दी पर ही बैठकर सामगान करता है। सामगाताओं की यह मण्डली महावेदी के विभिन्न स्थानों पर घूम-घूमकर पृथक्-पृथक् सामों का गान करती थी। सामगान के अतिरिक्त महाव्रत-अनुष्ठान के दिन यज्ञवेदी के चारों ओर, सभी कोणों मेँ दुन्दुभि अर्थात् नगाड़े भी बजाये जाते थे-
‘सर्वासु स्रक्तिषु दुन्दुभयो व्वदन्ति' (ताण्ड्य ब्राह्मण ५।५।१८)। इसके साथ ही जल से भरे घड़े लिये हुई स्त्रियाँ ‘इदम्मधु इदम्मधु’ (यह मधु है, यह मधु है), कहती हुई यज्ञवेदी के चारों ओर नृत्य करती थीं- ‘परिकुम्भिन्यो मार्जालीयं यन्ति, इदं मध्विति’ (ताण्ड्य ब्राह्मण ५।६।१५)। ताण्ड्य ब्राह्मण ग्रंथ में इसका विशद विवरण उपलब्ध होता है। उस समय वे निम्नलिखित गीत को गाती भी जाती थीं-
गावो हाऽऽरे सुरभय इदम्मधु,
गावो घृतस्य मातर इदम्मधु।


इस नृत्य के समानान्तर अन्य स्त्रियाँ और पुरुष वीणावादन करते थे। उस समय प्रचलित वीणाओँ के अनेक प्रकार इस प्रसंग में मिलते हैं। इनमें अपघाटिला, काण्डमयी, पिच्छोदरा, बाण इत्यादि मुख्य वीणाएँ थीं। ‘शततन्त्रीका’ नाम से विदित होता है कि कुछ वीणाएँ सौ-सौ तारों वाली भी थीं। इन्हीं शततन्त्रीका जैसी वीणाओं से ‘सन्तूर’ वाद्य का विकास हुआ।
लोकप्रिय पर्व होली वास्तव में एक वैदिक यज्ञ है, जिसका मूल स्वरूप आज विस्मृत हो गया है।
     कल्पसूत्रों मेँ महाव्रत के समय बजायी जाने वाली कुछ अन्य वीणाओं के नाम भी मिलते हैं। ये हैं - अलाबुवक्रा(समतन्त्रीका, वेत्रवीणा), कापिशीर्ष्णी, पिशीलवीणा(शूर्पा) इत्यादि। शारदीया वीणा भी होती थी, जिससे आगे चलकर आज के ‘सरोद’ वाद्य का विकास हुआ।
     होली में दिखने वाली हँसी-ठिठोली का मूल ‘अभिगर-अपगर-संवाद’ में निहित है। भाष्यकारों के अनुसार ‘अभिगर’ ब्राह्मण का वाचक है और 'अपगर' शूद्र का। ये दोनों एक दूसरे पर आक्षेप-प्रत्याक्षेप करते हुए हास-परिहास करते थे। इसी क्रम में विभिन्न प्रकार की बोलियां बोलते थे, विशेष रूप से ग्राम्य बोलियाँ बोलने का प्रदर्शन किया जाता था-
‘सर्व्वा त्वाचो वदन्ति संस्कृताश्च ग्राम्यवाचश्च’
(ताण्ड्य ब्राह्मण ५।५।२० तथा इस पर सायण-भाष्य)।


     महाव्रत के ये विधान वर्षभर की एकरसता को दूर कर यज्ञानुष्ठाता ऋत्विजों को स्वस्थ मनोरञ्जन का वातावरण प्रदान करते थे। यज्ञों की योजना ऋषियों ने मानव-जीवन के समानान्तर की है, जिसके हास-परिहास भी अभिन्न अङ्ग हैं।


     महाव्रत के दिन घर-घर में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पक्वान्न बनाये जाते थे-‘कुले कुलेऽन्नं क्रियते।’ घर में कोई जब उस दिन पकवान्नों को बनाये जाने का कारण पूछता था, तब उत्तर दिया जाता था कि यज्ञानुष्ठान करने वाले इन्हें खायेंगे-‘तद् यत् पृच्छेयुः किमिदं कुर्वन्ति इति इमे यजमाना अन्नमत्स्यन्ति इति ब्रूयु:।’


लेकिन हास-परिहास और मौज-मस्ती के इस वातावरण में भी सुरक्षा के संदर्भ को ओझल नहीं जाता था। राष्ट्ररक्षा के लिये जनमानस को सजग बने रहने की शिक्षा देने के लिये इस अवसर पर यज्ञवेदी के चारों ओर शस्त्रास्त्र और कवचधारी राजपुरुष तथा सैनिक परिक्रमा भी करते रहते थे।


     होली के आयोजन में, महाव्रत के इन विधि-विधानों का प्रभाव अद्यावधि निरन्तर परिलक्षित होता है। दोनों के अनुष्ठान का दिन भी एक ही है- फाल्गुनी पूर्णिमा।


स्वदेशी संदेश

#स्वदेशीसंदेश

रोजगार पर हुआ महा चिंतन


स्वदेशी जागरण मंच के तत्वाधान में 28 जनवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में रोजगार विषय पर गोष्ठी हुई।


इस गोष्ठि में माननीय कश्मीरी लाल जी (स्व.जा.म. के अखिल भारतीय संगठक) और बी.एल.संतोष (भाजपा के संगठन मंत्री) के साथ प्रो. भगवती शर्मा, प्रो. अश्वनी महाजन, सतीश कुमार, ABVP, बी.एम.एस, ग्राहक पंचायत, किसान संघ के प्रतिनिधियों सहित देश भर से आए 40 अर्थशास्त्रीयों ने गहन चिंतन किया।


इस गोष्ठी का मकसद सरकार के सामने उन आर्थिक नीतियों में बदलाव को लेकर सुझाव देना है, जिनसे देश मे आर्थिक विकास और रोजगार प्रभावित हो रहा है। रोजगार के विभिन्न आयामों के माध्यम से अर्थ व्वयस्था को गति दी जा सकती है, उस तरफ सरकार की नीतियों में परिवर्त्तन आए, ये विचार है।


इसके लिए देश में प्रबल जनजागरण की आवश्कता है।


 


गुड और गोविंद

 


*||👉"गुड़ के शौकीन गोपाल...💗💗||"*
*||✍||*
किसी गांव में छज्जूमल नाम का एक गुड़ बेचने वाला अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहता था। 
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उसकी पत्नी हर रोज गोपाल जी को भोग लगाती आरती करती उनका पूरा ध्यान रखती थी। 
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उधर छज्जूमल दूर गांव में जाकर गुड़ बेचता था। इसी तरह उनकी जिंदगी अच्छे से चल रही थी।
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उसके बेटे बहुत नेक थे। परंतु दुर्भाग्यवश छज्जूमल की पत्नी अचानक चल बसी। 
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छज्जूमल बहुत उदास रहने लगा। फिर भगवान् की जो इच्छा मान कर फिर वह अपने काम वापस जाने लगा। 
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उसके बेटे उसको समझाते बाबा अब हम अच्छा कमा लेते हैं हैं आप अब घर बैठे परन्तु छज्जूमल ना माना। 
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उसकी पत्नी रोज गोपाल जी को भोग लगाती थी। उसको तो भोग लगाना आता नहीं था। 
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परंतु अब थोड़ा सा गुड़ ठाकुर जी के आगे रख देता ठाकुर जी तो मीठे के शौकीन। उनको तो गुड़ खाने का चस्का लग गया। 
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अब रोज काम जाने से पहले गोपाल जी को थोड़ा सा गुड़ भोग लगा देता था।
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एक दिन दोनों बेटे बोले बाबा घर की मरम्मत करवानी हैं तो थोड़ा सा सामान इधर-उधर करना पड़ेगा। 
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बाबा बोला ठीक, तो उन्होंने गोपाल जी को भी अलमारी में भूलवश रख दिया। 
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घर का काम शुरू हो गया पर गोपाल जी को अब गुड़ का भोग ना लगता।
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छज्जूमल अब रोज की तरह गांव में गुड़ बेचने गया रास्ते में थोड़ा सा विश्राम करने के लिए एक वृक्ष के नीचे बैठ गया।
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ठंडी ठंडी हवा चल रही थी तभी छज्जूमल  कि आंख लग गई। तभी उसे लगा कि कोई उसे उठा रहा है और कह रहा है बाबा आज गुड न दोगे।
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छज्जूमल ने एक दो बार अनसुना कर दिया उसे लगा कि कोई सपना है पर जब उसे कोई लगातार हिलाता जा रहा था और बोल रहा था... 
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तो अचानक वह उठा और देखता है कि 6- 7 साल का बालक उसे कह रहा है कि बाबा आज गुड़ ना दोगे।
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छज्जूमल मन मे सोचने लगा कि मैंने तो इस बालक को कभी गुड़ न दिया फिर उसने सोचा कि गांव में ही किसी का बच्चा होगा।
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छज्जूमल ने कहा हां बेटा ले लो। तो उसे थोड़ा सा गुड़ दे दिया। गुड़ लेकर वह बालक गुड़ को मुंह में डालकर आहा आहा मीठा-मीठा कह कर वहां से भाग गया।
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अब तो रोज ही वह बालक छज्जूमल को मिलता उससे गुड़ लेता और नाचता गाता मीठा-मीठा कह कर भाग जाता। 
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छज्जूमल भी बच्चा समझकर उसको रोज गुड़ दे देता। 
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अब घर का काम पूरा हो गया तो उस दिन घर में हवन पूजन रखा गया। छज्जूमल  अब गुड़ बेचने ना गया। 
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परंतु वह बालक तो अपने समय पर उस जगह पहुंच गया। अब छज्जूमल वहां ना आया।
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बालक ने तो घर जाकर मैया की जान खा ली और ता ता थैया मचाने लगे बोले मुझे तो गुड़ ही चाहिए 
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मैया ने बहुत समझाया बर्फी मिठाई सब लाकर दिए लेकिन वह तो कहते मैं तो गुड़  ही खाऊंगा।
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मैया से बालक का रोना सहन न हुआ। और छज्जूमल  के घर का पता पूछते पूछते उसके घर पहुंच गई।  
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जाकर कहती बाबा मेरे बालक हो तो आपने गुड़ की आदत डाल दी आज आप आए नहीं ना आए तो गुड़ खाए बिना वह मान नहीं रहा। 
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जो छ्ज्जूमल को उस बालक पर बड़ा प्यार आया उसने उसको अपनी गोद में बिठाया और गोदी में बिठा कर गुड़ खिलाने लगा। 
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पता नहीं क्यों उस बालको गुड़ खिलाते खिलाते छज्जूमल की आंखों में अश्रु धारा बह निकली। 
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हृदय में अजीब सी हलचल होने लगी। गुड़ खाकर बालक मीठा मीठा कह कर अपने घर चला गया।
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हवन पूजन के बाद में फिर गोपाल जी की मूर्ति को रखा गया। 
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अगले दिन छज्जूमल नियम से गोपाल जी को गुड़ का भोग लगाकर काम पर चला गया। 
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रास्ते में उसी जगह पर रुका अब तो उसे भी उस बालक को गुड़ खिलाने की जल्दी थी ।
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परंतु वह बालक आया ही नहीं.. ऐसे ही तीन-चार दिन बीते जो उसका मन बहुत बेचैन हुआ कि कहीं बालक बीमार तो नहीं।
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उसने गांव जाकर सबको बालक के बारे में पूछा तो सब ने कहा ऐसा तो यहां कोई भी बालक नहीं रहता।
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वह हैरान परेशान होकर घर पहुंचा। घर पहुंच कर जब वह मंदिर में बैठा तो गोपाल जी की तरफ देखा वह मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। 
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वह जैसे वह कह रहे हो बाबा जी मैं वही बालक हूं.. छज्जू मल का माथा ठनका कि वह सोचने लगे कि यह तो साक्षात गोपाल जी मुझसे गुड़ खाने आते थे। 
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वह कहने लगे हे गोपाल जी धन्य हो आप। गोपाल जी की ओर देख के उसकी आंखों में अश्रु धारा बहने लगी।
((🙏🏻 जय जय श्री राधे गोविंद गोपाल)) डा0 एस के कुलश्रेष्ठ


बसंत पंचमी महोत्सव का आयोजन

पंजाबी सहायक सभा ने सरस्वती पूजन के साथ वीर हकीकत राय को दी श्रद्धांजलि 


संजय चोपड़ा की अगुवाई में हुआ बसंत पंचमी महोत्सव का हुआ आयोजन 


हरिद्वार 30 जनवरी बसंत पंचमी पर्व पर माँ शारदा को शत-शत नमन करते हुए पंजाबी सहायक सभा के प्रांतीय अध्यक्ष संजय चोपड़ा के संयोजन में बेलवाला घाट पर मां गंगा की विशेष पूजा-अर्चना कर शहीद वीर हकीकत राय को याद करते हुए उनका शहीदी दिवस पर श्रद्धासुमन किए। शहीद वीर हकीकत राय सन 1734 में पाकिस्तान सियालकोट में बसंत पंचमी के दिन ही मुगल शासक द्वारा उनकी हत्या की गई थी। तब से पंजाबी समाज शहीद वीर हकीकत राय को याद करते हुए बसंती पंचमी के दिन उनका शहीदे बलिदान दिवस मनाता चला आ रहा है।


इस अवसर पर पंजाबी सहायक सभा के अध्यक्ष संजय चोपड़ा ने कहा कि शहीद वीर हकीकत राय अल्प आयु में ही समाज को नई दिशा दी थी और समाज में अंधविश्वास के खिलाफ छोटी से आयु में ही बड़े पैमाने पर जन जागरण चला रखा था। उनके इस कार्य से मुगल शासकों में बौखलहाट व घबराहट जैसा माहौल था। उनके इस जज्बे को समाप्त करने के उद्देश्य से बसंत पंचमी के दिन मुगलों ने षड़यंत्र के तहत मासूम वीर हकीकत राय की हत्या की थी। संजय चोपड़ा ने कहा कि शहीद वीर हकीकत राय ने समाज में शिक्षा को बढ़ावा दिया था और सामाजिक कार्यों में उनकी लोकप्रियता अधिक थी। उन्होंने कहा कि भारत सरकार व राज्य सरकारोें को चाहिए कि शहीद वीर हकीकत राय की याद में स्मारक बनाकर इतिहास में शहीद हुए वीर हकीकत राय के रचनात्मक व संदेशीत कार्यों को नयी पीढ़ी स्मरण करती रही इसे दोहराना होगा। चोपड़ा ने यह भी कहा देश विदेश में पंजाबियत ने हमेशा त्याग, तपस्या, भाईचारा व संगठित रहने के प्रकाश को बढ़ावा दिया है यदि देश दुनिया में शहीद-ए-आज़म युवा वीर हकीकत राय के नाम पर भारत सरकार द्वारा कोई भी योजना युवाओ के लिए संचालित होती है तो उसका देश का पंजाबी समाज दिल खोलकर स्वागत करेगा।


शाहिद-ए-आज़म वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते पंडित सागर पल्लव, मनीष शर्मा, भूपेंद्र राजपूत, नरेंद्र कीर्तिपाल, विक्की गुप्ता, प्रभात चौधरी, नरेंद्र सिंह, राजेश खुराना, ओमप्रकाशभाटिया, रोहित सेठी, असीम जोशी, जयसिंह बिष्ट, मानसिंह, मोहनलाल, छोटेलाल शर्मा आदि प्रमुख रूप से सम्मलित रहे।


वीर पुत्रो की माता है भारत माता

वीरो की भूमि है भारत की धरती


भारत का इतिहास मुगलो और अंग्रेजो तक ही सीमित नहीं है।


सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी
1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये।


वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड
की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000
मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000
राजपूत होते तो अकबर भी जिंदा बचकर नहीं जाता।


इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000
राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब
घायल थे।


और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000
राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे, इस पर घबराकर शेर
शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे (मारवाड़)
की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता" 


उस युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नहीं गए
होते तो शेर शाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही
रहता।


इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की
किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई
जाती है जिसमे हम कमजोर रहे,


वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्यागपढाया नही गया जिसने अपना सिर काटकर दे दिया था।


पाली के आउवा के ठाकुर खुशहाल सिंह
को नही पढाया जाता, जिन्होंने एक अंग्रेज के अफसर का सिर काटकर किले पर लटका दिया था।


जिसकी याद मे आज भी वहां पर मेला लगता है। दिलीप सिंह जूदेव का नही पढ़ाया जाता जिन्होंने एक लाख आदिवासियों को फिर से हिन्दू बनाया था।


महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर
महाराणा प्रतापसिंह
महाराजा रामशाह सिंह तोमर
वीर राजे शिवाजी 
राजा विक्रमाद्तिया
वीर पृथ्वीराजसिंह चौहान
हमीर देव चौहान
भंजिदल जडेजा
राव चंद्रसेन
वीरमदेव मेड़ता
बाप्पा रावल
नागभट प्रतिहार(पढियार)
मिहिरभोज प्रतिहार(पढियार)
राणा सांगा
राणा कुम्भा
रानी दुर्गावती
रानी पद्मनी
रानी कर्मावती
भक्तिमति मीरा मेड़तनी
वीर जयमल मेड़तिया
कुँवर शालिवाहन सिंह तोमर
वीर छत्रशाल बुंदेला
दुर्गादास राठौर
कुँवर बलभद्र सिंह तोमर
मालदेव राठौर
महाराणा राजसिंह
विरमदेव सोनिगरा
राजा भोज
राजा हर्षवर्धन बैस
बन्दा सिंह बहादुर


इन जैसे महान योद्धाओं को नही पढ़ाया/बताया जाता है, जिनके नाम के स्मरण मात्र से ही शत्रुओं के शरीर में आज भी कंपकंपी शुरू हो जाती है।
 
जय हिंद, जय हिंद के वीर


वीर योद्धा पृथ्वी राज चौहान और बसंत पंचमी

🙏*वसन्त पंचमी का शौर्य*🙏     🙏🚩🌹🌷💐🕉💐🌷🌹🚩🙏
*चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!*
*ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!* 


वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।


पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई। 


चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं। 


इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।


पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। 


चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।


इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया


‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’


अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।


इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का
आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। 


इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।


गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को 
कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।


*"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।"*
🙏🚩🌹🌷🕉🌷🌹🚩🙏
 


*ये गौरवगाथा अपने बच्चों को अवश्य सुनाए*(डा0 एस के कुलश्रेष्ठ)


शाहीन बाग का सच

भाजपा की सरकार दिल्ली के शाहीन बाग में महीने से चल रहे प्रदर्शन को रोक क्यों नहीं रही है?


शाहीन बाग़ का सच -


दिल्ली के शाहीनबाग पर इकठ्ठा हुजूम पर कुछ लोग भाजपा को यह सलाह दे रहे हैं कि वो इस प्रदर्शन पर उसी तरह से हमला करें जैसे कांग्रेस ने बाबा रामदेव के ऊपर रात्रि में किया था लेकिन ये प्रायोजित भीड़ कांग्रेस ने इसलिए ही तो रोक रखा है कि भाजपा ऐसा करने को विवश हो|


कांग्रेस ने चारा फेंक जाल बिछाया है और टकटकी लगाए अपनी पूरी ब्रिगेड के साथ इन्तेजार में बैठी है, इस चारे में उसने छोटे छोटे बच्चों को रखा है तो 80-90 साल के वृद्धों को भी रखा है|


लाठीचार्ज हुआ तो गोली बम फोड़ने वाले लोग भी छुपे हुए तैयार बैठे हैं ताकि मामला बड़ा हो सके भाजपा को एक आततायी, लोकतंत्र की हत्यारी, आजादी छीनने वाली, हिटलरशाही सरकार का दर्जा दिया जा सके और बाद में अगले किसी भी चुनाव में भुनाया जा सके जैसे ही ये होगा प्रेस कॉन्फ्रेंस, अस्पतालों का दौरा, कुछ मुआवजा, लल्लनटॉप, क्विंट, बीबीसी, ndtv रखैलों से न्यूज़ बनवाना, चिंदीचोर कन्हैय्या, शेहला, स्वरा आदि कौवों से कांव कांव करवाना, कोर्ट में केस डालने से लेकर मानवाधिकार एजेंसी को उतारते हुए एक पूरा जाना पहचाना सीरीज है जिसे अब सभी जानने लगे हैं।


"अगर मैं जानता हूँ तो ये भाजपा नहीं जानती है क्या ?"


भाजपा को कोई भी एक्शन नहीं लेना चाहिए ..........ये लोग दिल्ली चुनाव के बाद अपने आप ही चले जाएँगे.......थक हार कर ......


जब पैसा देने वाले और लंगर चलाने वाले लोग कडके हो जाएंगे .........


जय हिंद


भारत माता की जय।


 


हास परिहास

 


मौसी मेरा तो नाम ही केजरीवाल हैं 


मौसी: लेकिन बेटा, बुरा नहीं मानना, इतना तो पूछना ही पड़ता है, कि कन्हैया कुमार का खानदान क्या है, उसके लछछन कैसे है, कमाता कितना है?
दोस्त : कमाने का तो यह है, मौसी.... कि एक बार JNU से स्टाईपेंड बंद हो गयी तो ... कमाने भी लगेगा.
मौसी : स्टाईपेंड मतलब, बच्चा पढ़ रहा है? इतनी कम उमर में शादी?
दोस्त : नहीं नहीं ये मैंने कब कहा मौसी. लडका तो 30 साल का है. वहाँ तो 40, 45 साल के बच्चे भी स्टूडेंट होते हैं.
मौसी : हाय दैया, इतना बड़ा लड़का? और रहता कहाँ है, होस्टल में?
दोस्त : वैसे रहता होस्टल में है पर कभी कभी पुलिस थाने में सोना पड़ता है...
मौसी : पुलिस थाने में? तो क्या लड़का चोर है?
दोस्त : वो और चोर ना... ना मौसी वो तो क्रांतिकारी है. कभी कभी दोस्तों के साथ अफजल के समर्थन में या पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे देता पकड़ा जाता है तो पुलिस उठा के ले जाती है.
मौसी : ही ही बस यही एक कमी रह गयी थी. मतलब देशद्रोही है वो?
दोस्त : मौसी आप तो मेरे दोस्त को गलत समझ रही हैं. वो तो इतना सीधा और भोला है कि आज़ादी के चक्कर में उसे होश ही नहीं रहता कि वो कौन से देश का है.
मौसी : अरे बेटा, मुझ बुढ़िया को समझा रहे हो, मेरे बचपन में हम आजाद हो चुके हैं. अब कौनसी आजादी मांग रहा है?
दोस्त: बस मौसी, उसका पता चलते ही हम आप को खबर दे देंगे.
मौसी : एक बात की दाद दूँगी बेटा, भले सौ बुराईयां है, तुम्हारे दोस्त में फिर भी तुम्हारे मुंह से उस के लिए, तारीफ ही निकलती है.
दोस्त : अब क्या करूं मौसी.... मेरा तो नाम ही केजरीवाल है.😆😆😆


मेजर मोहित शर्मा को शत शत नमन

25 आतंकवादियों से अकेले ही भिड़ गए थे मेजर मोहित शर्मा 🇮🇳❤️🙏


गोली लगने के बाद भी मरते-मरते एक ग्रेनेड फेंककर चार आतंकवादियों को मौत की नींद सुला दिया !


आज कुछ वीर सपूत ऐसे भी हैं जो अपनी जान की कीमत पर हमारी इस आज़ादी को सुराक्षित रखे हुए हैं. ऐसे ही एक वीर पैरा कमांडो मेजर मोहित शर्मा की बहादुरी के किस्से हम आपको यहां बता रहे हैं.
    
13 जनवरी 1978 को जन्मे शहीद मेजर मोहित शर्मा का रविवार को जन्म दिन है. वो मेजर मोहित जो अपने साथियों की जान बचाने के लिए अकेले ही खूंखार आतंकवादियों से भिड़ गए थे. बेशक वो युद्ध का मैदान नहीं था, लेकिन जानकारों की मानें तो कश्मीर में हफरूदा के जंगल किसी युद्ध के मैदान से कम भी नहीं हैं. इसी जंगल में मेजर मोहित शर्मा ने अपने दो साथियों की जान बचाते हुए अकेले ही करीब 25 आतंकवादियों से लोहा लिया था.


गोली लगने के बाद भी मरते-मरते एक ग्रेनेड फेंककर चार आतंकवादियों को मौत की नींद सुला दिया था. अशोक चक्र विजेता मेजर मोहित के ऐसे ही हैरतअंगेज कारनामों के बारे में जानते है उनके पिता और मां आरपी शर्मा और सुशीला शर्मा से.


छोटी सी टुकड़ी के साथ घुस गए थे हपरुदा के जंगल में
हम चाहते थे कि मोहित इंजीनियर बने. उसने इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के लिए इंट्रेंस भी दिया और सलेक्ट भी हो गया. एडमिशन लेने के बाद भी उसकी ख्वाहिश थी कि व मिलिट्री ज्वाइन करे. ट्राइ किया तो एनडीए में भी सलेक्शन हो गया. इसके बाद सभी को मोहित की बात माननी पड़ी.


फैमिली की रजामंदी मिलने के बाद उसने मिलिट्री ज्वाइन कर ली. 2009 में वह कैप्टन से मेजर बन चुका था. अपनी टीम के साथ वह कश्मीर के कुपवाड़ा में था. उसे बताया गया था कि कश्मीर के हफरूदा जंगल में आतंकवादियों ने कैंप बना रखा है. यह जानकर भी कि वहां जाना खतरे से खाली नहीं है, मेजर ने अपनी टीम के साथ जंगल में कैंप लगाया. उन्हें जंगल में आतंकी कैंप की सूचना मिली थी.


गोली खाकर भी मारे आतंकवादी


ये 21 मार्च 2009 की घटना है. मेजर के साथ टीम में कुल 10 लोग थे. उन्हें आतंकियों के शिविर की सूचना मिली. आतंकियों को मारने के लिए ऑपरेशन चला. मिलिट्री ने आतंकियों के कैंप पर हमला कर दिया. दोनों तरफ से क्रास फायरिंग में मेजर को भी गोली लग गई.


मेजर मोहित के दो साथी भी गोली लगने से जख्मी हो गए. मेजर ने खुद की जान की परवाह न करते हुए दोनों जख्मी जवानों को बचाया और ग्रेनेड से हमला कर चार आतंकवादियों को मार गिराया. इस ऑपरेशन में मेजर मोहित शर्मा समेत दस में से आठ जवान शहीद हुए थे. मेजर को शहादत के बाद अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था.
#Jai_Hind


भारत सेवाश्रम संघ, स्वामी प्रणवानंद

29 जनवरी/जन्म-दिवस
*भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद*


भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी का जन्म सन 29 जनवरी, 1896 (माघ पूर्णिमा) को ग्राम बाजिदपुर, जिला फरीदपुर (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था। उनके पिता विष्णुचरण दास एवं माता शारदा देवी शिवभक्त थे, सन्तान न होने पर उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की। इस पर भोले शंकर ने उनकी माता को स्वप्न में दर्शन देकर स्वयं उनके पुत्र रूप में आने की बात कही। बुधवार को जन्म लेने के कारण उन्हें बुधो कहा जाने लगा। 


जन्म के समय बालक रोया नहीं। वह किसी की गोद में नहीं जाता था, भूख लगने पर भी चुप रहता था। सबको चिन्ता हुई कि लड़का कहीं गूँगा-बहरा तो नहीं है। वे लोग नहीं जानते थे कि इस अवस्था में भी शिशु पाँच छह घण्टे ध्यान करता है। कुछ बड़े होने पर कभी-कभी वे गायब हो जाते थे और  खोजने पर बाग में पेड़ के नीचे ध्यानरत मिलते। कभी-कभी वे मिट्टी का शिवलिंग बना कर उसे पूजते थे आगे चलकर उनका नाम विनोद रखा गया।


जैसे-जैसे वे बड़े होते गये, उनके ध्यान का समय भी बढ़ता गया। माता-पिता ने उन्हें गाँव की पाठशाला में भर्ती कर दिया; पर वहाँ भी वे ध्यानमग्न ही रहते थे। वहाँ की पढ़ाई खत्म होने पर उन्हें एक अंग्रेजी विद्यालय में भर्ती किया गया। वे कक्षा में अन्तिम पंक्ति में बैठते थे और  नाम पुकारने पर ऐसे बोलते थे जैसे नींद से जागे हों। उन्हें शोर और शरारत पसन्द नहीं थी। फिर भी वह सब बच्चों और अध्यापकों के प्रिय थे बलिष्ठ होने के कारण खेल कुद में हर कोई उन्हें अपने दल में रखना चाहता था। 


क्रान्तिकारियों से सम्पर्क के कारण एक बार पुलिस उन्हें पकड़ ले गई। उन्हें कई महीने तक जेल में रहना पड़ा। वे अपने विप्लवी प्राचार्य सन्तोष दत्त से प्रायः संन्यास लेने की बात कहते थे। इस पर प्राचार्य ने उन्हें गोरखपुर के बाबा गम्भीरनाथ के पास भेजा ,उन्होंने विनोद को 1913 ई0 में विजयादशमी के दूसरे दिन ब्रह्मचारी की दीक्षा दी। अब तो वे कई-कई घण्टे समाधि में पड़े रहते। उनके गुरुजी ही उन्हें बुलाकर कुछ खिला देते थे


गोरखपुर में आठ महीने रहकर गुरुजी के आदेश से वे काशी आ गये। यहाँ से वे अपने जन्मस्थान बाजिदपुर लौट गए। उन्हें 1916 ई0 में माघ पूर्णिमा को शिव तत्व की प्राप्ति हुई। इसके एक साल बाद उन्होंने गरीब,भूखो असहायोऔर पीड़ित लोगों की सहायता के लिए बाजिदपुर में आश्रम की स्थापना की। सन 1919 में बंगाल में भारी चक्रवात आया, जिसमें उन्होंने व्यापक सहायता कार्य चलाया। उनका दूसरा आश्रम मदारीपुर में बना। 


उन्होंने 1924 ई0 में पौष पूर्णिमा के दिन स्वामी गोविन्दानन्द गिरि से संन्यास की दीक्षा ली। अब उनका नाम स्वामी प्रणवानन्द हो गया। उसके बाद उन्होंने गया, पुरी, काशी, प्रयाग आदि स्थानों पर संघ के आश्रमों की स्थापना की। तभी से ‘भारत सेवाश्रम संघ’ विपत्ति के समय सेवा कार्यों में जुटा हुआ है। हरिद्वार में भी भारत सेवाश्रम संघ, धार्मिक, सामाजिक  गतिविधियों का केंद्र है जँहा पर देश भर से आऐ तीर्थ यात्रीयो को आश्रय, भोजन मिलता है।  समाजसेवा, तीर्थसंस्कार, धार्मिक और नैतिक आदर्श का प्रचार, गुरु पूजा के प्रति जागरूकता जैसे अनेकों कार्य किये।


स्वामी प्रणवानंद जी जातिभेद को मान्यता नहीं देते थे। उन्होंने अपने आश्रमों में ‘हिन्दू मिलन मंदिर’ बनाये। इनमें जातिगत भेद को छोड़कर सब हिन्दू प्रार्थना करते थे। सबको धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। इसके बाद उन्होंने ‘हिन्दू रक्षा दल’ गठित किया। इसका उद्देश्य भी जातिगत भावना से ऊपर उठकर हिन्दू युवकों को व्यायाम और शस्त्र संचालन सिखाकर संगठित करना था।


इन दिनों भारत सेवाश्रम संघ के देश-विदेश में 75 आश्रम कार्यरत हैं। 8 जनवरी, 1941 को अपना जीवन-कार्य पूरा कर उन्होंने देह त्याग दी। अब उनके बताए आदर्शों पर उनके अनुयायी संघ को चला रहे हैं।



वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस भी है बसंत पंचमी


  • वीर हकीकत राय जी को उनके बलिदान दिवस बसंत पंचमी पर शत शत नमन (पवन आर्य, मिर्ज़ा पुर)

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  • _*वीर बाल हकीकत राय* जी के बलिदान पर्व-- वसंत पंचमी के अवसर पर उनका श्रद्धापूर्ण स्मरण_


राम कृष्ण का वंशज हूँ, वैदिक धर्म निभाऊंगा।
सूली पर चढ़ जाऊँगा पर इस्लाम नहीं अपनाऊँगा।।
🚩🚩🚩🚩🚩


ऐसे वीर योद्धा जो मात्र *14 वर्ष* की आयु में वैदिक धर्म की रक्षा में बलिदान हो गए।
पंथनिरपेक्ष(secular) भारत में अत्याचारी मुस्लिम शासकों के कई स्थल, मार्ग और मकबरे सरकारी खर्चों पर सजाये सँवारे जाते हैं. परन्तु इन उपेक्षित वीरों का नाम भी लेना  पंथनिर्पेक्षता का उल्लंघन माना जाता है।


*आज वसंत पंचमी के उल्लास मे भुला ना जान इस नन्हे बालक के बलिदान को*
पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 मे जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। इन्होंने छोटी से आयु मे ही इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था। 10 वर्ष की आयु मे फारसी पढ़ने के लिये मौलबी के पास मस्जिद मे भेजा गया, वहॉं के मुसलमान छात्र हिन्दू बालको तथा हिन्दू देवी देवताओं को अपशब्द कहते थे। बालक हकीकत उन सब के *कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता।* 
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2543177149087221&id=516348851770071
एक दिन मौलवी की अनुपस्तिथी मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्होने हकीकत की शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दिया है। यह बाद सुन कर मौलवी बहुत नाराज हुऐ और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्तुत किया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और निर्णय सुनाया कि शरह** के अनुसार *इसके लिये सजा-ए-मौत है या बालक मुसलमान बन जाये।*
माता पिता व सगे सम्बन्धियों केे यह कहने के बाद भी की मेरे लाल मुसलमान बन जा तू कम से कम जिन्दा ता रहेगा। 


किन्तु वह बालक अपने निश्चय पर अडिग रहा और *वसंत पंचमी सन 1734 के दिन जल्लादों ने, एक गाली के कारण उसे फॉंसी दे दी गई,* वह गाली जो मुस्लिम छात्रो ने खुद ही बीबी फातिमा को दिया था न कि वीर हकीकत राय ने। इस प्राकर एक 14 वर्ष का बालक अपने धर्म की रक्षा करता हुआ बलिदान हो गया।
🙏🙏


दर्द गढ़वाली की गजल

 


 


 


गजल जश्न मनेगा गरीब खाने में  (दर्द गढ़वाली )


 


वक्त जाया करें हम क्यों उन्हें मनाने में
और भी काम हैं हमको अभी जमाने में।।


है खबर गर्म वो आएंगे आज घर मेरे
आज फिर जश्न मनेगा गरीबखाने में।।


हैं मेरे सामने आंखों के मस्त पैमाने
क्या जरूरी है कि जाएं शराबखाने में।।


ख्वाब में आ रहे वो हैं बसे तसव्वुर में
आ रहा है मजा हमको फरेब खाने में।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून 


डा0 निशंक जी की कविता

*शीर्षक:- आह से उपजा गान*


अब दर्द न देना है तुमको, मैं दर्द स्वयं ही ले लूँगा |


ये मेरे सारे दर्द इन्हें मैं ख़ुशी-ख़ुशी सब सह-दूँगा |


मुझको तो खुशियाँ ही देनी, दुनिया की पीड़ा ले लूँगा |


बची हुई थोड़ी खुशियाँ भी ला दुनिया को दे दूँगा |


मेरे हर पग पीड़ा पहुँचाओ,इस पर भी सबका हक़ होगा


हर आह से उपजा गान, कल जग का पथ-दर्शक होगा |
             
--डॉ० रमेश पोखरियाल "निशंक"🌹


डा0 अरूण कुमार की सलाह (,कोरोनावायरस की करे रोकथाम)

 


कोरोनावायरस इन्फ़्लुएन्ज़ा से बचाव और महत्वपूर्ण जानकारी*


डा0 अरूण कुमार (ENT  स्पेस्लिसट ऋषि कुल आयुर्वेदिक चिकित्सालय  हरिद्वार) 


जनता के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की आपातकालीन अधिसूचना है कि इस बार कोरोनावायरस इन्फ्लूएंजा का प्रकोप बहुत गंभीर और घातक है। संक्रमित होने के बाद कोई इलाज नहीं है।
इसका चीन से लेकर विभिन्न देशों में प्रसार हुआ


रोकथाम विधि :-


अपने गले को सूखने न दें।  प्यास लगने की प्रतीक्षा न करे क्योंकि एक बार जब आपके गले की झिल्ली सूख जाती है, तो वायरस आपके शरीर में 10 मिनट के भीतर आक्रमण कर देता है। 
उम्र के हिसाब से व्यस्को के लिए  50-80cc गर्म पानी, और बच्चों के लिए 30-50cc गर्म पानी बार -बार पीऐ । हर बार यू लगता है कि आपका गला सूखा है, इंतजार मत करो, हाथ में पानी रखो। एक बार में अधिक पानी न पीऐ क्योंकि यह  यह रोकने मे मदद नहीं करता है, इसके बजाय गले को नम रखना जारी रखें।
मार्च 2020 के अंत तक, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर न जाएं, विशेष रूप से ट्रेन या सार्वजनिक परिवहन में आवश्यकतानुसार मास्क पहनें, तले हुए या मसालेदार भोजन से बचें और विटामिन सी का सेवन करें। संतरे, अमरूद, कीनू आदि जैसे विटामिन सी से भरपूर फलो का प्रयोग करें। 
लक्षण / विवरण हैं
1. तेज बुखार
2. बुखार के बाद खांसी का आना
3. बच्चों को खतरा है
4. वयस्क आमतौर पर असहज महसूस करते हैं,  सिरदर्द और मुख्य रूप से श्वसन संबंधी परेशानी
5: अत्यधिक संक्रामक रोकने मे यदि आप मानव मात्र की रक्षा करना चाहतें   हैं तो Pls साझा करें!
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नेहरू युवा केन्द्र की जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं का समापन

जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में लक्सर और खानपुर ने मारी बाजी
वालीबॉल, कबड्डी प्रतियोगिताओं के फाईनल मैचो के साथ  नेहरू युवा केन्द्र की दो दिवसीय जिला खेल प्रतियोगिताओं का हुआ समापन 


ग्राम पंजनहेडी के नवजीवन जूनियर हाई स्कूल के मैदान पर सम्पन्न हुई जिलास्तरीय खेल प्रतियोगिता 


हरिद्वार 28 जनवरी   भारत सरकार  के युवा कार्यक्रम, खेल मंत्रालय की स्वायत्तशासी संस्था नेहरू युवा केन्द्र के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय खेल प्रतियोगिता के अंतिम दिन वालीबॉल और कबड्डी के फाईनल मैंच लक्सर और खान पुर  की टीमों के माध्यम खेले गए जिसमें वालीबॉल की प्रतियोगिता में लक्सर की टीम ने खान पुर की टीम को शिकस्त दी और कबड्डी प्रतियोगिता में भी लक्सर की टीम  ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए खान पुर की टीम को हराया। नेहरू युवा केन्द्र की जिला समन्वयक अंकिता कोठियाल, भाजपा युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष अमित चौहान, दिनेश कश्यप, समाजसेवी संजय वर्मा, सुशील चौहान, एनवाईके के वालिंटीयर प्रखर कश्यप ने  विजेता और उपविजेता  टीमों को पुरस्कृत किया। इस अवसर पर समाजसेवी कुँवर पाल, नवजीवन जूनियर हाई स्कूल के प्राचार्य अनुज कुमार, शिक्षक तहेन्द्र सिंह, अनिल कुमार, सविता रानी, वर्षांत कश्यप आदि उपस्थित रहे।


संत संदेश, (माता सच्चिदान्नद निर्मल कुटिया, हरिद्वार)

जटायु से शिक्षा लो भारतीयों 


अंतिम सांस गिन रहे जटायु ने कहा कि मुझे पता था कि मैं रावण से नही जीत सकता लेकिन तो भी मैं लड़ा..यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती


 🙏जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले... तो काल आया और जैसे ही काल आया ... 
तो गीधराज जटायु ने मौत को ललकार कहा, -- 


"खबरदार ! ऐ मृत्यु ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना... मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा... लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता... जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु "श्रीराम" को नहीं सुना देता...!


मौत उन्हें छू नहीं पा रही है... काँप रही है खड़ी हो कर...
 मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही... यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला।


किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह छह महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे... आँखों में आँसू हैं ... रो रहे हैं... भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं...! 
कितना अलौकिक है यह दृश्य ... रामायण मे जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं... 
प्रभु "श्रीराम" रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं... 
वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान "श्रीकृष्ण" हँस रहे हैं... भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं... ? 


अंत समय में जटायु को प्रभु "श्रीराम" की गोद की शय्या मिली... लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली....!
जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है.... 


प्रभु "श्रीराम" की शरण में..... और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं.... 
ऐसा अंतर क्यों?...     


ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था...विरोध नहीं कर पाये थे ...! 
दुःशासन को ललकार देते... दुर्योधन को ललकार देते... लेकिन द्रौपदी रोती रही... बिलखती रही... चीखती रही... चिल्लाती रही... लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे... नारी की रक्षा नहीं कर पाये...!


उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और .... 
जटायु ने नारी का सम्मान किया... 
अपने प्राणों की आहुति दे दी... तो मरते समय भगवान "श्रीराम" की गोद की शय्या मिली...!


जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं ... उनकी गति भीष्म जैसी होती है ... 
जो अपना परिणाम जानते हुए भी...औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।


🙏 मेरे प्रति श्रद्धा रखने वालो, प्रभु प्रेमी भक्तजनो गलत का विरोध जरूर करना चाहिए। "सत्य परेशान जरूर होता है, पर पराजित नही"।(स्वामी सर्वेश्वर सिंह शास्त्री निर्मल जी महाराज एवं दीदी विमला निर्मल जी महाराज)


जरासी तकलीफ सारी उम्र का सुख

😊😊भविष्य के लिए N R c, CAA, जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है


एक पिता अपनी 2 माह की बेटी को टीका लगवाने हॉस्पिटल जाता है। टीका लगाने से पहले डॉ. ने समझाया बच्ची रोयेगी बहुत, बाद में हल्का बुखार भी आएगा , टीका लगने वाले स्थान पर सूजन भी आएगी । 


मैंने डॉ. से कहा ऐसा टीका क्यों लगाना ? 
डॉ.ने कहा-पर इस टीके से बच्ची को भविष्य में बड़ी बीमारियां नहीं होगी । बच्ची की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जायेगी । 


मैं सब कुछ समझ चुका था और अपनी बेटी को दर्द सहने और दर्द में देखने को तैयार हो गया ।
 
दोस्तों देश को भी वही टीका लग रहा है, थोडा सा दर्द सह लीजिये.. 
कुछ दिन की परेशानी 5 पीढ़ियों 
के उज्जवल भविष्य की गारंटी है..


जो लोग कह रहे हैं कि नोटबंदी, GST, CAA, NRC से 130 करोड़ भारतीयों को तकलीफ हो रही है,कृपया लिस्ट से मेरा नाम काट दें, मुझे कोई तकलीफ नहीं 🤔


लाला लाजपत राय

28 जनवरी/ जन्मदिवस


*पंजाब केसरी लाला लाजपतराय*


‘‘यदि तुमने सचमुच वीरता का बाना पहन लिया है, तो तुम्हें सब प्रकार की कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए। कायर मत बनो। मरते दम तक पौरुष का प्रमाण दो। क्या यह शर्म की बात नहीं कि कांग्रेस अपने 21 साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा राजनीतिक संन्यासी पैदा नहीं कर सकी, जो देश के उद्धार के लिए सिर और धड़ की बाजी लगा दे...।’’


इन प्रेरणास्पद उद्गारों से 1905 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में लाला लाजपतराय ने लोगों की अन्तर्रात्मा को झकझोर दिया। इससे अब तक अंग्रेजों की जी हुजूरी करने वाली कांग्रेस में एक नये समूह का उदय हुआ, जो ‘गरम दल’ के नाम से प्रख्यात हुआ। आगे चलकर इसमें महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक और बंगाल से विपिनचन्द्र पाल भी शामिल हो गये। इस प्रकार लाल, बाल, पाल की त्रयी प्रसिद्ध हुई।


लाला जी का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले के एक गाँव में 28 जनवरी, 1865 को हुआ था। अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के लाला लाजपतराय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से फारसी की तथा पंजाब विश्वविद्यालय से अरबी, उर्दू एवं भौतिकशास्त्र विषय की परीक्षाएँ एक साथ उत्तीर्ण कीं। 1885 में कानून की डिग्री लेकर वे हिसार में वकालत करने लगे। 


उन दिनों पंजाब में आर्यसमाज का बहुत प्रभाव था। लाला जी भी उससे जुड़कर देशसेवा में लग गये। उन्होंने हिन्दू समाज में फैली वशांनुगत पुरोहितवाद, छुआछूत, बाल विवाह जैसी कुरीतियों का प्रखर विरोध किया। वे विधवा विवाह, नारी शिक्षा, समुद्रयात्रा आदि के प्रबल समर्थक थे। लाला जी ने युवकों को प्रेरणा देने वाले जोसेफ मैजिनी, गैरीबाल्डी, शिवाजी, श्रीकृष्ण एवं महर्षि दयानन्द की जीवनियाँ भी लिखीं।


1905 में अंग्रेजों द्वारा किये गये बंग भंग के विरोध में लाला जी के भाषणों ने पंजाब के घर-घर में देशभक्ति की आग धधका दी। लोग उन्हें ‘पंजाब केसरी’ कहने लगे। इन्हीं दिनों शासन ने दमनचक्र चलाते हुए भूमिकर व जलकर में भारी वृद्धि कर दी। लाला जी ने इसके विरोध में आन्दोलन किया। इस पर शासन ने उन्हें 16 मई, 1907 को गिरफ्तार कर लिया। 


लाला जी ने 1908 में इंग्लैण्ड, 1913 में जापान तथा अमरीका की यात्रा की। वहाँ उन्होंने बुद्धिजीवियों के सम्मुख भारत की आजादी का पक्ष रखा। इससे वहाँ कार्यरत स्वाधीनता सेनानियों को बहुत सहयोग मिला।


पंजाब उन दिनों क्रान्ति की ज्वालाओं से तप्त था। क्रान्तिकारियों को भाई परमानन्द तथा लाला लाजपतराय से हर प्रकार का सहयोग मिलता था। अंग्रेज शासन इससे चिढ़ा रहता था। उन्हीं दिनों लार्ड साइमन भारत के लिए कुछ नये प्रस्ताव लेकर आया। लाला जी भारत की पूर्ण स्वाधीनता के पक्षधर थे। उन्होंने उसका प्रबल विरोध करने का निश्चय कर लिया।


30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक भारी जुलूस निकला। पंजाब केसरी लाला जी शेर की तरह दहाड़ रहे थे। यह देखकर पुलिस कप्तान स्कॉट ने लाठीचार्ज करा दिया। उसने स्वयं लाला जी पर कई वार किये। लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल होने के कुछ दिन बाद 17 नवम्बर, 1928 को लाला जी का देहान्त हो गया। उनकी चिता की पवित्र भस्म माथे से लगाकर क्रान्तिकारियों ने इसका बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। 


ठीक एक महीने बाद भगतसिंह और उनके मित्रों ने पुलिस कार्यालय के बाहर ही स्कॉट के धोखे में सांडर्स को गोलियों से भून दिया।


 


कशमीरी पंडित सर्वानंद कौल

वो सर्वानन्द कौल जिनके घर एक दुर्लभ कुर'आन होती थी


वो  सर्वानंद कौल जो हमेशा मुस्लिमों को अपना भाई समझते उनके हश्र से सबक लो


सर्वानन्द कौल "प्रेमी" कश्मीर के जाने माने कवि भी थे और ज्ञानी माने जाते थे। जब घाटी में कश्मीरी हिन्दुओं का क़त्ल और इस्लामिक आतंक की वारदातें शुरू हुई तो उनके रिश्तेदारों ने भी उन्हें घाटी से निकल जाने की सलाह दी। लेकिन प्रेमी जी तो “धर्म-निरपेक्ष” परम्पराओं में यकीन रखते थे। उनके घर में पूजा घर में कुर'आन नाम की किताब की एक दुर्लभ प्रति भी उसी इज्ज़त से रखी होती थी, जैसे अन्य धर्म-ग्रन्थ होते थे।


उनका ये “धर्म निरपेक्षता” का सपना 29 अप्रैल, 1990 की शाम तब टूटा जब कुछ हथियारबंद इस्लामिक आतंकी उनके घर में घुस आये. इस्लामिक आतंकियों ने घर के सारे सदस्यों को एक कमरे में इकठ्ठा कर दिया | इस्लामिक आतंकियों ने एक सूटकेस में घर का सारा कीमती जेवर, नगदी, पश्मीना जैसी चीज़ों को भरने का हुक्म दिया। महिलाओं ने जो जेवर पहने थे वो भी इस्लामिक आतंकियों ने छीन लिए।


इस भरे हुए सूटकेस को उठा कर इस्लामिक आतंकियों ने बूढ़े और आशक्त सर्वानन्द कौल को अपने साथ चलने को कहा। इस्लामिक आतंकियों का कहना था कि वो सर्वानन्द कौल "प्रेमी" को थोड़ी देर में छोड़ देंगे। इस मौके पर उनके बेटे वीरेंद्र कौल को लगा कि बूढ़े पिताजी अकेले इतना वजन लेकर जायेंगे कैसे ? चले भी गये तो अँधेरे में अकेले लौटेगें कैसे ? वीरेंद्र कौल ने पिता के साथ उसे ले चलने की गुजारिश की। बाप-बेटा दोनों इस्लामिक आतंकियों के साथ रवाना हुए।


दो दिन बाद जब उनकी लाशें मिलीं तो उनकी जो हालत इस्लामिक आतंकियों ने की थी उसे देखकर एक बार तो हिटलर के नाज़ी भी शर्मा जायेंगे। भौंह के ठीक बीच में जहाँ सर्वानन्द तिलक लगाते थे, वो हिस्सा गर्म सलाख से जला दिया गया था। उनकी खाल खींच ली गई थी। पूरे शरीर को सिगरेट से दागा गया था | हाथ पांव की हड्डियाँ तोड़ दी गई थीं। बाप और बेटे दोनों की आँखें नोच ली गई थीं। उन्हें फांसी पर टांग कर मारा गया था और फिर निश्चिन्त होने के लिए लाशों में गोली भी मार दी गई थी।   Jago secular hindu jago


दर्द गढ़वाली गजल

गजल (दर्द गढ़वाली)
वक्त जाया करें हम क्यों उन्हें मनाने में
और भी काम हैं हमको अभी जमाने में।।


है खबर गर्म वो आएंगे आज घर मेरे
आज फिर जश्न मनेगा गरीबखाने में।।


हैं मेरे सामने आंखों के मस्त पैमाने
क्या जरूरी है कि जाएं शराबखाने में।।


ख्वाब में आ रहे वो हैं बसे तसव्वुर में
आ रहा है मजा हमको फरेब खाने में।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून 


वैद्य दीपक कुमार की सलाह

🍃 *Arogya*🍃
*15 बातें जिन्हें जानने के बाद आप रोज खाएंगे अमरूद*
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अमरूद में मौजूद विटामिन और खनिज शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाने में मददगार होते हैं. साथ ही ये इम्‍यून सिस्‍टम को भी मजबूत बनाता है. अमरूद खाने की सलाह डॉक्‍टर भी देते हैं. अमरूद खाने के और क्‍या हैं फायदे, इसके बारे में बता रही हैं न्यूट्रीशन सलाहकार देबजानी बनर्जी...


*15 बातें जिन्हें जानने के बाद आप रोज खाएंगे अमरूद-----*


*1. हाई एनर्जी फ्रूट-----* अमरूद हाई एनर्जी फ्रूट है जिसमें भरपूर मात्रा में विटामिन और मिनरल्‍स पाए जाते हैं. ये तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं।


*2. डीएनए को सुधारे ------* अमरूद में पाया जाने वाला विटामिन बी-9 शरीर की कोशिकाओं और डीएनए को सुधारने का काम करता है।


*3. दिल का साथी -----* अमरूद में मौजूद पोटैशियम और मैग्‍नीशियम दिल और मांसपेशियों को दुरुस्‍त रखकर उन्‍हें कई बीमारियों से बचाता है।


*4. मजबूत करे इम्‍यूनिटी -----* अगर आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं तो अमरूद का सेवन करना बहुत फायदेमंद होगा।


*5. सर्दी-जुकाम------* अमरूद के नियमित सेवन से सर्दी जुकाम जैसी समस्‍याओं के होने का खतरा कम हो जाता है।


*6. विटामिन ए और ई------* अमरूद में पाया जाने वाला विटामिन ए और ई आंखों, बालों और त्‍वचा को पोषण देता है ।


*7. कैंसर से बचाव-----* अमरूद में मौजूद लाइकोपीन नामक फाइटो न्‍यूट्र‍िएंट्स शरीर को कैंसर और ट्यूमर के खतरे से बचाने में सहायक होते हैं।


*8. स्किन केयर -----* अमरूद में बीटा कैरोटीन होता है जो शरीर को त्‍वचा संबंधी बीमारियों से बचाता है।


*9. कब्‍ज की समस्‍या------* अमरूद का नियमित सेवन करने से कब्‍ज की समस्‍या में राहत मिलेगी ।


*10.मुंह के छाले------* फल के साथ ही अमरूद की पत्तियों का सेवन मुंह के छालों को दूर करने में कारगर होता है।


*11.फूड आइट्म्‍स-----* अमरूद का रायता, चटनी, अचार और शेक खाने का स्‍वाद बढ़ा देते हैं।


*12.कोलेस्‍ट्रॉल-----* अमरूद मेटाबॉलिज्‍म को सही रखता है जिससे शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल का स्‍तर नियंत्रित रहता है ।


*13.विटामिन सी-----* कच्‍चे अमरूद में पके अमरूद की अपेक्षा विटामिन सी अधिक पाया जाता है. इसलिए कच्‍चा अमरूद खाना ज्‍यादा फायदेमंद  होता है।


*14.डायबिटिज-------* अमरूद में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है इसलिए यह डायबिटिज के मरीजों के लिए बहुत अच्‍छा होता है।


*15.थायरॉइड------* नॉर्मल थायरॉइड में भी डॉक्‍टर अमरूद खाने की सलाह देते हैं।
*Vaid Deepak Kumar*
*Adarsh Ayurvedic Pharmacy*
*Daksh Mandir marg* *Kankhal Haridwar*
*aapdeepak.hdr@gmail.com*
*9897902760*


मेरे मन की बात सुनो क़विता

मेरे मन की बात सुनो प्रितम( अनीता वर्मा) 
 
तुम खता करके भी
ख़ामोश रहो..
मैं बेगुनाही की भी
मांग लूं माफी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह ज़िद तुम्हारी ?


तुम शर्तो के घेरे में
कैद कर दो मुझे..
मै बेशर्त मगर हर बात
मान लूं तुम्हारी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह जरूरत तुम्हारी ?


तुम नज़रअंदाज़ कर दो
मेरी हर ख्वाइश..
मैं पूरी करती रहूं मगर
हर ज़िद भी तुम्हारी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह नीयत तुम्हारी ?


तुम कोशिश भी न करो
मुझे मनाने की..
मैं रूठ कर भी मगर
मनाती रहूं तुम्हे ही..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह हठ तुम्हारी ?


तुम बढ़ते रहो नित
नये रास्तो पर..
मैं ठहरी रहूं बस
उसी मोड़ पर..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह चाल तुम्हारी ?


तुम बदलो कितना ही
रंग, चेहरा अपना..
मैं चाहती रहूं सदा
एक जैसा तुम्हें..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह उम्मीद तुम्हारी ?


तुम न पढ़ो न समझो
कोई सवाल मेरे..
मै तुम्हारी खामोशी में ही
ढ़ूढ़ती रहूं जवाब अपने..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह आदत तुम्हारी ?


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