कब तक सच से मुंह फेरोगे



भारत का यह इतिहास रहा है कि हमने हमेशा जुल्म करने वालों का विरोध नहीं किया बल्कि उनके जुल्म सहते गए कोई अगर हमें जगाने की कोशिश भी करता है तो भी हम खुद तो नींद में सोए रहते हैं और जगाने वाले के खिलाफ ही खड़े हो जाते हैं

रॉबर्ट क्लाइव  अपनी आत्मकथा में लिखता है की "हिन्दूस्तान को गुलाम बनाने के लिए जब हमने पहला युद्द किया और जीतने के बाद हम जब विजय जुलुस निकाल रहे थे। 


तब वहां मौजूद हिंदुस्तानी जुलुस देख कर तालीया बजा रहे थे। अपने ही देश के राजा के हारने पर वे खुशी से हमारा स्वागत कर रहे थे। 


आगे वह  लिखता है ... अगर वहां मौजूद सब हिंदुस्तानी मिलकर उसी समय हम लोगो को सिर्फ एक-एक पत्थर उठाकर ही मार देते तो, हिन्दूस्तान सन् 1700 मे ही आजाद हो जाता, उस समय हम अंग्रेज सिर्फ 3000 थे। ऐसा ही वाकया जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय भी हुआ था जब जनरल डायर की फौज जो संख्या में बहुत थोड़ी थी वह निहत्थी जनता  पर गोली चल आती रही पर जनता ने कोई प्रतिकार नहीं किया अगर उस समय जनता एक एक पत्थर भी मारती तो वह गिनती में इतने नहीं थे कि  वहां से बच कर निकल जाते हैं


आज भी हिंदुस्तानी सुधरा नहीं है, हालत वही है, अपने ही देश के प्रधानमंत्री को गालिया देंगे लेकिन चीन व पाकिस्थान के खिलाफ नही बोलेंगे, सेना के द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जिकल स्ट्राइक बतायेंगे, देश की जनता मे जातिवाद का जहर घोलकर आपस मे लडवाने का प्रयास करेंगे, भारत तेरे टुकडे होंगे जैसे नारे लगाएँगे।आज भी देश मे यही स्थिति है इटली के लोंगो मे प्रधानमंत्री  व बंगलादेशी व रोहिन्ग्याओ मे अपने वोट तलाश रहे हैं मुफ्त बिजली पानी मैं देश का भविष्य तलाश रहे हैं

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