मुफ्त का गणित और समाजवाद




एक स्थानीय कॉलेज में अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने अपने एक बयान में कहा – “उसने पहले कभी किसी छात्र को फेल नहीं किया, पर हाल ही में उसने एक पूरी की पूरी क्लास को फेल कर दिया है l”


क्योंकि उस क्लास ने दृढ़ता पूर्वक यह कहा था कि “समाजवाद सफल होगा और न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा” सबको सामान करने वाला एक महान सिद्धांत !


तब प्रोफेसर ने कहा – अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं  “सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सबको वही एक ग्रेड दी जायेगी ”


पहली परीक्षा के बाद, सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl

जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होनें कम ही पढ़ाई की थी वे खुश हुए l


दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़ने वाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोनें कठिन परिश्रम किया था उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ्त की ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई की l

दूसरी परीक्षा की ग्रेड D थी l


इसलिए कोई खुश नहीं था l


जब तीसरी परीक्षा हुई तो ग्रेड F हो गई l


जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा, बल्कि आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था क्योंकि कोई भी छात्र अंपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुंचाना चाहता था l


अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्रोफेसर ने उन्हें बताया कि इसी तरह “समाजवाद” भी अंततोगत्वा फेल हो जाएगा क्योंकि ईनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जाने वाला उद्यम भी बहुत बड़ा होगा l


परन्तु जब सरकार मेहनत के सारे लाभ आपसे छीन लेगी तो कोई भी न तो सफल होना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l


निम्नलिखित पाँच सर्वश्रेष्ठ उक्तियाँ इस प्रयोग पर लागू होती हैं -

1. आप समृद्ध व्यक्ति को उसकी समृद्धि से बेदखल करके गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।

2. जो व्यक्ति बिना कार्य किए कुछ प्राप्त करता है, अवश्य ही परिश्रम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के ईनाम को छीन कर उसे दिया जाता है।

3. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।

4. आप सम्पदा को बाँट कर उसकी वृद्धि नहीं कर सकते।

5. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है, क्योंकि बाकी आधी आबादी उसकी देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोच कर कुछ अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उसके कर्म का फल किसी दूसरे को मिल रहा है –  तो 


वहीँ उस राष्ट्र के अंत की शुरुआत हो जाती है।. ऐसा ही आजकल कुछ राजनीतिक पार्टियां भी कर रही हैं वे जनता को मुफ्त में बिजली पानी देकर लुभा रही है और टैक्स देने वाले लोगो के पैसे को समाजवादी तरीके से निकम्मे मुफ्त  लगों पर लुटा रही है कहीं धार्मिक तुष्टीकरण करती हुई वोट की राजनीति चमका रही है यह सब देश को विघटन करने का षड्यंत्र तो नहीं है जो समाजवाद से प्रेरित दिखाई देता है 

(डॉक्टर कमलेश कांडपाल)

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