महान हिंदू शासक चिमाजी बल्लाल भट्ट


 #पुर्तगाली_विनाशक_चिमाजी_बल्लाल_भट्ट ।


चिमाजी बल्लाल जिन्हें जनमानस में चिमाजी अप्पा कहकर संबोधित किया जाता है । चिमाजी बल्लाल अपराजय योद्धा पेशवा बाजीराव के छोटे भाई थे। पेशवा बाजीराव के साथ कई युद्ध अभियानों में चिमाजी अप्पा शामिल थे। चिमाजी अप्पा अच्छे योद्धा के साथ मर्मज्ञ रणनीतिकार भी थे। निजाम उल मुल्क ने जब सतारा ( महाराष्ट्र) में हमला कर दिया था तब चिमाजी अप्पा ने छत्रपति शाहू की रक्षा की और उन्हें पुरंदर(पुणे) के किले में भी सुरक्षित पहुँचा दिया। पेशवा बाजीराव ने निजाम उल मुल्क के ललकार का प्रतिकार देते हुए  दक्खन में जाकर निजाम के सुबो में हमला कर दिया। इस अभियान के बाद पेशवा बाजीराव व निजाम के बीच 1728 में पालखेड का युद्ब हुआ था जिसमे निजाम परास्त हो गया, इस युद्ध ने #पेशवा_बाजीराव को भारत में स्थापित कर दिया क्योंकि निजाम को सीधे युद्ब में परास्त करने का साहस उस वक्त बाजीराव के अलावा कोई नही कर सकता था।  


कोंकड क्षेत्र लंबे समय से पुर्तगलियों व सिद्दियों के अतिक्रमण में था। पुर्तगलि न सिर्फ भारतीय संस्कृति को हानि पहुँचा रहे थे अपितु हिंदुओ का धर्मांतरण भी करवा रहे थे। समुंद्र से सटे इलाको में कब्जा करके पुर्तगलि अपनी स्थिति को मजबूत कर चुके थे।  पेशवा बाजीराव ने चिमाजी अप्पा को पुर्तगलियों व सिद्दियों के साथ युद्ध अभियान में भेज दिया। रायगढ़ जैसा महत्वपूर्ण किला भी सिद्दियों के पास था। चिपलुन के नजदीक स्थित मंदिर को नष्ट करके सिद्दी अंजनवल को अपने कब्जे में ले लिए थे इस अभियान में सिद्दियों के हांथो शेखोजी अंग्रे मारे जा चुके थे। 1736 में सिद्दी कोलाबा में हमला करने के लिए निकल चुके थे ,जहाँ चिमाजी अप्पा इनके इंतजार में थे चिमाजी अप्पा और सिद्दियों के बीच हुए युद्ध मे सिद्दियों की पराजय हो गई और कोंकण क्षेत्र सिद्दियों से मुक्त हो गया।


सिद्दियों के बाद एक और ताकत थी जिसे नष्ट करना हिंदवी स्वराज्य के लिए जरूरी था वो थे पुर्तगाली। 16 विं शताब्दी में पुर्तगाली भारत मे आये थे। पुर्तगलियों ने अपने क्षेत्र को मजबूत किलो से सुरक्षित रखा था। मार्च 1737 में चिमाजी कोंकड पहुँच गए , अप्पा के द्वारा भेजी गई सैन्य टुकड़ी ने हफ्ते भर में सष्टि को अपने कब्ज़े में ले लिया। सष्टि एक आइलैंड था। 1739 में चिमाजी अप्पा ने वसई में हमला कर दिया जो पुर्तगलियों का गढ़ था। इस युद्ध मे चिमाजी अप्पा ने पुर्तगलियों के मजबूत किलो को बारूद से उड़ा दिया था जिससे पुर्तगलियों कि कमर टूट गई,पुर्तगलि अब समझ चुके थे कि ये समय आत्मसमर्पण का है। 4 मई 1739 को पुर्तगलियों ने चिमाजी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया । पुर्तगलियों के द्वारा अतिक्रमीत बॉम्बे व गोआ के तटीय क्षेत्र को चिमाजी ने ले लिया। चिमाजी द्वारा सात दिन का समय पुर्तगलियों को दिया गया था अपने परिवार सहित लौटने का। 


जिस प्रकार मुगलो,पठानों,तुर्क का विनाश बाजीराव ने किया था उसी प्रकार आक्रमणकारी पुर्तगलियों का विनाश चिमाजी अप्पा ने किया था।

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