भगवान श्री कृष्ण के अवतरण "दिवस पर पर गायत्री साधकों ने रोपित किए हजारों पौधे




 राष्ट्रीय तरुपुत्र रोपण महायज्ञ के साथ

२०१ स्थानों में शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वन के लिए वृक्षारोपण

देश के कई लाख घरों में लगाये गये औषधीय पौधे

हरिद्वार, ३० अगस्त।( अमर शदाणी संवाददाता गोविंद कृपा हरिद्वार) हरिद्वार स्थित शांतिकुंज में स्थापना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर जन्माष्टमी पर्व के दिन राष्ट्रीय स्तर पर तरुपुत्र रोपण महायज्ञ आयोजित हुआ। साथ ही माताजी की बाडी, शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वन के लिए पौधे रोपकर शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर उत्तराखण्ड सरकार में अपर सचिव सी रविशंकर जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। देश के विभिन्न राज्यों के परिजन आनलाइन जुड़कर इस महायज्ञ में भागीदारी की।

इस अवसर पर आनलाइन जुड़े अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि शांतिकुंज स्थापना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर चलाये जा रहे रचनात्मक कार्यक्रमों की शृंखला में शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वन की स्थापना प्रमुख आंदोलनों में से एक है। कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर देश के चयनित पचास से अधिक स्थानों पर एक साथ शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वन में पौधे लगाकर शुभारंभ हुआ। इसकी संख्या भविष्य में और बढ़ाई जायेगी। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रमुख कार्य है। 

मुख्य अतिथि श्री सी रविशंकर (सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, उत्तराखण्ड) ने कहा कि शांतिकुंज की स्वर्ण जयंती वर्ष में महावृक्षारोपण अभियान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कारगर उपाय है। इस अभियान में सभी को एक साथ जुड़कर कार्य करना चाहिए। पर्यावरण शुद्ध होगा, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रह पायेगा। श्री रविशंकर ने कहा कि गायत्री परिवार विगत कई वर्षों से विभिन्न रचनात्मक अभियान चला रहा है, हम सभी को इसमें भागीदारी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार भी पर्यावरण संरक्षण के लिए हरेला जैसे विभिन्न योजनाएँ चला रही है। देवसंस्कृति विश्व विद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि प्रकृति का सिद्धांत बोओ और काटो का है। हमने प्रकृति का दोहन किया है, परिणामस्वरूप हमें इन दिनों विभिन्न कष्ट, कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की समस्या किसी एक धर्म, सम्प्रदाय की नहीं, वरन् सभी प्राणी के लिए है। इसलिए धर्म सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सामूहिक जिम्मेदारी के साथ  कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के मूल आधार प्रकृति और वृक्ष को संरक्षित रखना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। प्रतिकुलपति ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बिगड़ती पर्यावरण समस्या पर इंगित करते हुए समाधान भी बताया। आनलाइन जुड़े वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण चन्द्र दुबे ने जलवायु परिवर्तन और वृक्षारोपण पर विस्तृत जानकारी दी।

इससे पूर्व शांतिकुंज में स्वर्ण जयंती के अवसर पर महावृक्षारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। संगीत विभाग ने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करने वाला गीत प्रस्तुत किया। महावृक्षारोपण अभियान के संयोजक श्री केदार प्रसाद दुबे ने बताया कि कई लाख घरों में माता भगवती बाड़ी और श्रीराम स्मृति उपवन की स्थापना करते हुए पौधे रोपे गये। सभी ने पौधे के खाद पानी के साथ आवश्यक सुरक्षा देने के लिए भी संकल्पित हुए। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र, उप्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, मप्र सहित विभिन्न राज्यों में दौ सो एक स्थानों में शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वन के लिए वृक्षारोपण किया गया। इसके साथ ही कई लाख घरों में औषधीय पौधें रोपे गये। इस अवसर पर शांतिकुंज परिसर में देवसंस्कृति विवि के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या एवं श्री सी रविशंकर ने सपत्नीक एक-एक पौधे रोपे।


असंभव को संभव करने आती हैं अवतारी सत्ता ः डॉ पण्ड्या

शांतिकुंज में प्रतीकात्मक रूप से मनाई गयी कृष्णजन्माष्टमी

हरिद्वार ३० अगस्त। 

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी प्रतीकात्मक रूप से उत्साहपूर्वक मनाई गयी। इस अवसर पर श्रीकृष्ण की भव्य झांकी सजाई गयी थी। श्रद्धालुओं ने विधि विधान से पूजा अर्चना की। सम्पूर्ण कार्यक्रम आनलाइन सम्पन्न किये गये। 

इस अवसर पर अपने वीडियो संदेश में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या कहा कि असंभव कार्य को संभव करने हेतु अवतारी सत्ताएँ समय-समय पर आती रही हंै। भगवान श्रीकृष्ण का अवतार असंभव सा दिखने वाला कार्य को संभव करने के लिए था। श्रीकृष्ण ने अपने जन्म के साथ ही लीलाएँ प्रारंभ कर दिया था और उनके सहयोगी के रूप में कुछ लोग ही शामिल रहे। लीलापुरुष श्रीकृष्ण का  प्रत्येक कार्य किसी न किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए होता था। गीता मर्मज्ञ डॉ. पण्ड्या श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर आखिरी समय तक का मार्मिक ढंग से उद्धृत किया। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से जनमानस को राक्षसी प्रवृत्ति से दूर रहने के विविध उपायों को जानकारी दी। कहा कि दुष्प्रवृत्तियाँ मानव जीवन को खोखला एवं नष्ट कर देती है। देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने आज की समस्याओं की ओर इंगित करने प्रकृति के अनुरूप जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।

इस अवसर पर श्री श्याम बिहारी दुबे ने श्रीकृष्ण लीला का वर्णन किया। तो वहीं संगीत विभाग के भाइयों ने भावपूर्ण संगीत प्रस्तुत किये।

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