विधान सभा सत्र केवल औपचारिकता

*विधान सभा सत्र को चलाने मे भाजपा क्यो कर रही है औपचारिकता


उत्तराखंड की विधानसभा और विधानसभा सत्र...एक मज़ाक़...और जनता के साथ धोखा।*


 


जिस विधानसभा का सदस्य बनने...विधायक बनने के लिए राजनैतिक लोग तरह- तरह के जतन करते हैं। विभिन्न राजनैतिक दलों से जुड़े अधिकांश महत्वकांशी लोग पहले तो अपने आंकाओं को टिकिट के चक्कर में ख़ुश करने हेतु अपना सब कुछ दाँव पर लगाते हैं। टिकिट मिलने पर लाखों - करोड़ों रुपये ( चुनाव आयोग की खर्च करने की सीमा भले ही कम हो) फूंक देते हैं। और फिर माननीय विधायक बनने के बाद उस विधानसभा के साथ उनका दृष्टिकोण बड़ा ही विचारणीय क्यों हो जाता है...?
संसदीय परम्परा के अनुसार किसी भी प्रदेश में कम से कम 2 से 3 विधानसभा सत्र आयोजित होते हैं। एक सत्र साधारणतः 10 से 15 दिनों का होता है।इस प्रकार किसी भी प्रदेश में प्रत्येक वर्ष सभी सत्रों को मिलाकर कुल 30 से 40 दिनों का कारोबार होता है। जोकि उस प्रदेश के सर्वांगीण विकास की नीतियों तथा विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों की समस्याओं और जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ज़रूरी हैं। 
परंतु उत्तराखंड की कहानी बिल्कुल उलट है। अगर पिछले कुछ वर्षों के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो उत्तराखंड में प्रतिवर्ष कुल सभी सत्र मिलाकर मात्र 10 से 12 दिन ही विधानसभा चलती है, ये शर्मनाक़ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड की भोली-भाली जनता के साथ धोखा भी है। इस सत्र में सरकार एक तरफ़ अपने कार्यों का लेखा-जोखा विधानसभा के पटल पर रखती है तथा साथ ही ये सरकार की नाकामियों पर बहस करने के लिए विपक्ष के पास एक अवसर भी होता है। 
एक बार फिर इस वर्ष का बजट सत्र आने वाला है, जोकि प्राप्त जानकारी के अनुसार 3 मार्च से 7 मार्च, मात्र 5 दिवसीय होना प्रस्तावित है। ध्यान दीजिए ये बजट सत्र है...अति महत्वपूर्ण है। समूचे प्रदेश के वर्ष भर की विकास कार्य-योजनाओं के लिए बजट का आवंटन होना है... मात्र 5 दिनों में...! ये मज़ाक़ नहीं तो क्या है। एक राजनैतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ  एक जागरूक नागरिक होने के नाते हम सबका ये कर्तव्य बनता है कि हम इस अति संवेदनशील मुद्दे पर ना सिर्फ़ सरकार बल्कि हर उस नेतृत्व जिसका इस मुद्दे से सरोकार हो सकता है, अनुरोध करें। सरकार को चेताये कि प्रदेश हित में विधानसभा सत्र को अधिकतम जितना ज़रूरी है उतना ज़रूर चलाया जाये, ताकि प्रदेश के सर्वांगीण विकास और ज़रूरी नीतियों पर गंभीर चर्चा हो सके। 


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