गजल
रहनुमा ही कौम का बातिल हुआ।
दो जमाते क्या पढ़ी काबिल हुआ।।
हर कदम पर साथ मैं उसके रहा।
मैं जमाने से कहां गाफिल हुआ।।
उम्र भर ही राह हक पर हम चले।
सोचते हैं क्या मगर हासिल हुआ।।
कब लहर ने साथ ही अपना दिया।
कब हमारे हमकदम साहिल हुआ।।
रात जागी रात भर मेरे लिए।
रात का इक-इक पहर मुश्किल हुआ।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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