गजल दर्द गढ़वाली

गजल


जिंदगी इक खेल है तो फिर खुशी से खेलिए।
बेदिली से खेलिए कुछ बेहिसी से खेलिए।।


तीरगी-ए-दस्त है यां रोशनी मत ढूंढिए।
घर जला कर आइए फिर रोशनी से खेलिए।।


आज भी हैं आपके हम आप भी तो बोलिए।
लबकुशा हैं आप मेरी बेबसी से खेलिए।।


है हमें भी प्यार तुमसे क्या बताएं हम तुम्हें।
जान मेरी लीजिए इस जिंदगी से खेलिए।।


शौक है ये आपका तो हो मुबारक आपको।
तिश्नगी बढ़ाइए फिर तिश्नगी से खेलिए।।


बचपने से साथ है ये साथ ही खेले पढ़े।
जिंदगी है इक सखी तुम इस सखी से खेलिए।।


दर्द जी आती नहीं हमको अदाकारी अभी।
शौक है तो आइए सादादिली से खेलिए।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून 


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