अमर बलिदानी जगदीश वत्स की जयंती पर शत शत नमन

 ऋषि कुल आयुर्वेदिक कॉलेज के अमर बलिदानी छात्र जगदीश वत्स. की जयंती पर विशेष

भारत का इतिहास स्वतंत्रता प्राप्ति संग्राम में महान क्रांतिकारियों की गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है. लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अल्पायु में ही देश के लिए इतना सब कुछ कर जाते हैं कि वह नई पीढ़ी के लिये प्रेरणास्रोत होने के साथ-साथ इतिहास के पन्नों में भी अमर हो जाते हैं, उन्हीं में से एक नाम है जगदीश वत्स. उत्तराखंड में पतित पावनी मां गंगा के तट पर स्थित हरिद्वार के उपनगर कनखल निवासी जगदीश वत्‍स ने मात्र सत्रह वर्ष की उम्र में हरिद्वार रेलवे स्टेशन से यूनियन जैक उतार कर उस पर तिरंगा फहराते हुए मौत को गले लगा कर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान किया था. 


जन्म - 25 जुलाई सन 1925 ग्राम खजूरी अकबरपुर, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश. वर्तमान में भगवानपुर विधानसभा के अंतर्गत जनपद हरिद्वार का गांव है खजूरी अकबरपुर




बलिदान पर्व - 14 अगस्त सन 1942 ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज, हरिद्वार, उत्तराखण्ड.


25 जुलाई सन 1925 को उत्तर प्रदेश, सहारनपुर के खजूरी अकबरपुर गाँव में जन्मा जगदीश मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अपने मामा के पास कनखल स्थित चरणदास की हवेली में आ कर रहने लगा था. हरिद्वार के ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में प्रवेश लेने के बाद जीवन के अंतिम क्षणों तक जगदीश हरिद्वार के ही होकर रहें. जगदीश के पिता का नाम पण्डित कदमसिंह व माँ का नाम जमुना देवी था, वह माता-पिता की पांच सन्तानों में सबसे बड़े थे.

सन 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारे से पूरा देश आन्दोलित हो गया था, बाल-वृद्ध सब करो या मरो की भावना के साथ आन्दोलन में कूदे. मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना के साथ 14 अगस्त सन 1942 को जगदीश वत्स के नेतृत्व में ऋषिकुल के द्वितीय वर्ष के छात्रों का जत्था भारत माता की जय और अंग्रेजो भारत छोड़ो का घोष करता हुआ सड़कों पर निकल आया. छात्रों का समूह हर की पैड़ी की और बढ़ा, कई जगहों पर पुलिस ने उन पर लाठियाँ बरसाई लेकिन आजादी के दीवाने आगे बढ़ते रहे. पुलिस ने कई छात्रों को गिरफ्तार किया लेकिन इससे भी उनका मनोबल कम नहीं हुआ. छात्रों के सिर पर तो देश आजादी का जुनून सवार था. जगदीश वत्स के साथ कुछ छात्रों का समूह पुलिस की सघन चौकसी के बावजूद हर कि पैड़ी के नजदीक एक घाट वर्तमान सुभाष घाट तक पहुँचने में सफल हो गया. जगदीश ने वहाँ से ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक यूनियन जैक उतार कर भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया. तभी अचानक एक गोली आकर उसके बाजू में लगी. पीड़ा का अहसास किये बिना उसने अपनी धोती का एक किनारा फाड़ कर बाजू में बाँध लिया, हालांकि गोली चलने से कुछ भीड़ तितर-बितर हो गई लेकिन अपनी सफलता से उत्साहित कई छात्रों ने इसके बाद हरिद्वार कोतवाली का रूख किया. उनके बुलन्द हौसले देख कर कई और लोग भी इस भीड़ में उनके साथ हो लिये. भीड़ का कारवां जब कोतवाली पहुँचा तो वहां तैनात पुलिस बल ने छात्रों को रोकने का प्रयास किया लेकिन क्रांतिकारी छात्रों के आगे पुलिस बल नहीं टिक सका उसे जान बचा कर भागना पड़ा. पुलिस कोतवाली पर तिरंगा फहराने के बाद समीप ही डाकघर पर भी तिरंगा फहरा दिया. इस समय ब्रितानी पुलिस द्वारा चलाई गई एक गोली जगदीश की जाँघ को चीरती हुई निकल गई. पुलिस के साथ हुए संघर्ष में जगदीश वत्स बुरी तरह घायल हो गया. उसने धोती का किनारा फाड़ा और जाँघ में बाँध कर रेलवे लाइन के किनारे-किनारे आगे बढ़ना जारी रखा. जगदीश और उसके साथियों के आगे बढ़ने तक पुलिस चारों ओर से रेलवे स्टेशन की घेराबन्दी कर चुकी थी. इस चुनौती पूर्ण समय में जैसे ही युवकों का समूह आगे बढ़ा उनका पुलिस से संघर्ष शुरू हो गया. बदले घटनाक्रम से जगदीश भी किंकर्तव्यविमूढ़ था, लेकिन वह तुरन्त निर्णय लेकर गजब की फुर्ती के साथ बगल में तिरंगा दबाए हुए पुलिस के घेरे से निकल कर एक पाइप के सहारे रेलवे स्टेशन की छत पर चढ़ा और क्षण भर में ही ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक यूनियन जैक फाड़ कर तिरंगा फहरा दिया.


भारतीय स्वतंत्रता और अस्मिता का प्रतीक तिरंगा फहरते ही सारा वातावरण भारत माता की जय के जयघोष से गूँज उठा. लेकिन तभी एक गोली जगदीश वत्स को लगी और वह रेलवे स्टेशन की छत से नीचे आ गिरा. उसके बावजूद उसने खड़े होकर गोली मारने वाले कोतवाल प्रेम शंकर श्रीवास्तव को गद्दार कहते हुए एक जोरदार थप्पड़ मारा. गम्भीर रूप से घायल जगदीश को पुलिस वाले इलाज के बहाने एक रेल के इंजन में रख कर देहरादून ले गये. रास्ते में इस बहादुर नौजवान ने दम तोड़ दिया. इन्सानियत और मानवता की हदें तोड़ते हुए पुलिस ने अंतिम संस्कार के लिए क्रान्तिकारी बलिदानी जगदीश वत्स का पार्थिव शरीर उसके पिता को न देकर, स्वयं ही गुपचुप उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया.

(डा0 सुनील जोशी पूर्व स्नातक ऋषि कुल आयुर्वेदिक कॉलेज एवं कुलपति उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय )

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