हिमालय जैसे उच्च व्यक्तित्व के धनी हैं डा0 निशंक

 दो बार बहने के बाद भी बचा वह बच्चा... कई बार MLA, CM और MP जो बनना था उन्हें

पहली बार लखनऊ विधानसभा में पहुंचे डॉ निशंक जी को देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी क्योंकि उन्होंने यूपी में दो बार कैबिनेट मंत्री रहे शिवानन्द नौटियाल को हराया था.


विधायक तो बहुत बने लेकिन, उनका नाम लोगों के ज़ेहन में हमेशा के लिए बस जाता है जो विधायक बनने के साथ ही फेमस भी हो जाते हैं. डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जी जब 28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनकर लखनऊ की विधानसभा में पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी. कारण यह था कि #डॉ निशंक ने एक ऐसा नेता को हराया था जिसका उत्तराखंड से यूपी तक दबदबा था. शिवानन्द नौटियाल को हराना मामूली बात नहीं थी. वह तब के धाकड़ नेता थे और यूपी सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री रह चुके थे. निशंक ने अपने पहले ही चुनाव में नौटियाल को कर्णप्रयाग से हराया था.


1991 के उस विधानसभा चुनाव से शुरु हुआ उनका राजनीतिक सफर मंत्री, मुख्यमंत्री रहने के साथ सांसद तक पहुंच गया है. इस दौरान वे छह बार विधायक चुने गये, उत्तराखण्ड के सीएम रहे और अब हरिद्वार से सांसद हैं।

#डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का जीवन सफर पहाड़ सा रहा है. उनका परिवार पौड़ी जिले के पाबो ब्लॉक के पिनानी गांव में रहता था. पिता भरसार के सेब बागान में सरकारी माली थे. वे अकसर निशंक को कंधे पर बैठाकर अपने गांव से भरसार लाया करते थे. निशंक के पुराने सहयोगी डॉक्टर बेचैन कण्डियाल बताते हैं कि बचपन की सारी बातें निशंक को याद थीं. जब वह यूपी में पर्वतीय विकास मंत्री बने तो उन्होंने कहा था कि अपने पिता की कर्मस्थली भरसार को आगे बढ़ाना है. उसी दौरान भरसार के सेब बागान को उद्यानिकी महाविद्यालय का दर्जा मिला. वहां सेब की खेती के साथ पढ़ाई का भी काम शुरु हो गई.


डॉ निशंक जी के पिता जी उद्यान विभाग के मामूली मुलाज़िम थे. परिवार में पैसे का बहुत अभाव था. गांव के स्कूल से पांचवीं पास करने के बाद उन्हें हाईस्कूल तक की पढ़ाई के लिए बहुत कसरत और रिस्क उठाना पड़ा था. पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें रोज 16 किलोमीटर का पैदल रास्ता पार करना पड़ता था जो घने जंगल, नदी नाले और जंगली जानवरों के खतरों से भरा पड़ा था.

निशंक बताते हैं कि दमदेवल के जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जाते समय वह दो बार बरसाती नाले में बह गए थे. काफी दूर बहने के बाद लोगों ने उन्हें निकाला. एक तरह से उन्हें दोनों बार जीवनदान मिला. हालांकि दसवीं पास करने के बाद उनके परिवार के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि उन्हें उच्च शिक्षा के लिए श्रीनगर या फिर देहरादून भेज सके. इस हालत में निशंक पढ़ाई के लिए हरिद्वार के आननंद आश्रम आ गए. चेतन ज्योति स्कूल में उन्होंने संस्कृत की शिक्षा लेनी शुरू की. इसके बाद ऋषिकेश से बीकॉम की पढ़ाई शुरु की लेकिन इसे बीच में ही छोड़ना पड़ा.

उत्तरकाशी में शिशु मंदिर ज्वाइन करने के साथ ही वे संघ का दामन थाम चुके थे. कई सालों तक पढ़ाने के बाद आखिरकार उन्होंने शिशु मंदिर से इस्तीफा दे दिया और पौड़ी चले आए. यहां उन्होंने अपनी प्रेस खोल ली. बैंक से लोन और अपने एक परिचित के घर से उन्होंने पहली शोध पत्रिका निकाली ‘नई चेतना’. इसके बाद 1984-85 में ‘सीमान्त वार्ता’ अखबार भी निकालना शुरु किया. यह अख़बार आज भी जिन्दा है.


उसी दौरान डॉ निशंक जी की पहचान एक उग्र और आंदोलनकारी पत्रकार के रूप में राज्य में सामने आई. तब पौड़ी के एक पत्रकार उमेश डोभाल की शराब माफियाओं ने हत्या कर दी. उनकी लाश तक नहीं मिली थी. डोभाल के लिए न्याय की मांग को लेकर निशंक ने ज़मीन पर और अपने अखबार के माध्यम से जबरदस्त संघर्ष किया. उन्हें राज्य स्तर पर पहली बार पहचान मिली.

निशंक का सफर आगे बढ़ता रहा. इसी दौरान #श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी पौड़ी के प्रवास पर आए और डॉ  निशंक से उनकी मुलाकात हुई. श्री वाजपेयीजी कवि थे और निशंक भी कविताएं लिखा करते थे. लिहाज़ा दोनों के मन मिलते देर नहीं लगी. निशंक भाजपा से जुड़ गए. इसी बीच अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर बनाई गई उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति से वह जुड़े और उन्हें केन्द्रीय प्रवक्ता बनाया गया. यह भाजपा का ही एक विंग था.


डॉ निशंक जी के जीवन में अचानक बदलाव आया 1991 में, जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने बुलाकर यूपी विधानसभा का चुनाव कर्णप्रयाग से लड़ने को कहा. निशंक ने झिझकते हुए मना कर दिया. निशंक ने कहा कि वह तो प्रधानी का चुनाव भी लड़ने के लिए तैयार नहीं है लेकिन, वाजपेयी माने नहीं. आखिरकार निशंक ने अनमने ढ़ंग से चुनाव लड़ा और इसी चुनाव ने उन्हें एकाएक जमीन से उठाकर आसमान पर बैठा दिया.।

(विकास पोखरियाल जी कलम से  आभार सहित)


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