भगवान राम और रावण से सबंधित नहीं है कुल्लू का विश्व प्रसिद्ध दशहरा मेला

  कुल्लू का दशहरा मेला जिसका संबंध भगवान राम से नहीं है 

आइए आज दशहरे के पावन पर्व पर आपको विश्व प्रसिद्ध कुल्लू के दशहरे मेले के बारे में बताते है और वहां से हमारे संवाददाता डॉ प्रदीप कुमार के द्वारा भेजें चित्र भी दिखाते हैं ।


कूल्लू हिमाचल 15 अक्तूबर (डा0 प्रदीप कुमार शिक्षाविद) दशहरा मेला कुल्लू का विश्व प्रसिद्ध मेला है ।जिसका संबंध भगवान राम , राजा दशरथ और रावण  से नहीं है। यह मेला हिमाचल के कुल्लू में 7 दिनों तक मनाया जाता है जिसमें विभिन्न देवी देवता पालकी में सवार होकर कुल्लू पहुंचते हैं और वहां पर उनका एक दूसरे से मिलन होता है दशहरे की देवी हिडिंबा को कुल्लू से मनाली लाते हैं ।इस मेले में लगभग 100 से ज्यादा देवी देवता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने डोली और पालकीयो  में पहुंचते हैं और हफ्ते भर का यह मेला कुल्लू में आयोजित किया जाता है।  इस मेले के पीछे एक किवदंती भी है की 1636 में वहां के राजा जगत सिंह जो मणिकरण यात्रा के लिए गए थे उन्हें वहां जाकर एक बहुत ही बेशकीमती रतन की जानकारी मिली जो एक ब्राह्मण के पास हुआ करता था। उस मणि को पाने के लिए राजा जगत सिंह ने उस ब्राह्मण को बड़ा कष्ट दिया और वह मणि  राजा ने छिन  ली, मनी तो छीन ली लेकिन ब्राह्मण के श्राप से नहीं बस सका  मणि छिन जाने के मानसिक कष्ट से  ब्राह्मण ने  परिवार सहित   आत्महत्या कर ली थी । ब्राह्मण का श्राप फलित हुआ और राजा धीरे-धीरे बीमार होने लगा ।तब उनको किसी ब्राह्मण ने बताया कि अगर वे अयोध्या से भगवान रघुनाथ की प्रतिमा लाकर स्थापित करें तो उनके कष्ट का उपाय हो सकता है इस पर राजा जगत सिंह ने अयोध्या से भगवान रघुनाथ की प्रतिमा लाकर स्थापित की और वह धीरे-धीरे स्वस्थ होंगे लेकिन इस  बात का उन पर बड़ा ही गहरा असर पड़ा और भी राजपाट त्याग कर भगवान रघुनाथ की सेवा में लग ग ऐ।  इसी उपलक्ष में यह दशहरा मेला 1636 से बड़ी ही धूमधाम के साथ कुल्लू में मनाया जाता है। जो हफ्ते भर चलता है ।इसमें   रावण का पुतला दहन ना करके  काम, क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह ,जैसे अवगुणों की पशु के रूप में बलि दी जाती है । जो रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतला को दहन करने को सार्थक करता है ।वास्तव में दशहरे के दिन हमें अपने आंतरिक अवगुणों को दहन करना चाहिए। यही संदेश हमें कुल्लू का दशहरा मेला  बलि के रूप में देता है। हमें  नवरात्रों में सप्तम कालरात्रि को काली को बकरे की बलि ना देकर अपनी कलुषित की बलि देने के लिए आध्यात्मिक संदेश मिलता है ।जो इस मेले के माध्यम से चरितार्थ भी होता है ।  वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशा





नुसार यह बलि प्रथा बंद हो चुकी है लेकिन इस बली को अन्य विकल्प के रूप में अभी भी दिया जाती है और यह विश्व प्रसिद्ध कुल्लू मेला अपनी भव्यता, दिव्यता और  आलौकिकता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

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