आन-बान-शान का प्रतीक है तिरंगा ः राज्यपाल
मेरे रक्त की हर एक बूंद राष्ट्र के लिए समर्पित : डा पण्ड्या
शांतिकुंज में १२० फीट ऊँचा राष्ट्रीय ध्वज का लोकार्पण
हरिद्वार ८ अक्टूबर।( अमर शदाणी संवाददाता गोविंद कृपा हरिद्वार ) ले.ज. (सेवानिवृत्त) श्री गुरमीत सिंह ने राज्यपाल के रूप में अपनी पहली हरिद्वार यात्रा शांतिकुंज से प्रारंभ की, इस मौके पर उन्होंने शांतिकुंज में स्थापित १२०फीट ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज का लोकार्पण किया तथा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में स्थित शौर्य दीवार में पुष्पचक्र अर्पित कर देश के वीर सपूतों अमर बलिदानीओ को श्रद्धांजलि दी।
इस अवसर पर आयोजित शांतिकुंज स्थापना की स्वर्ण जयंती व्याख्यान माला में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल श्री सिंह ने कहा कि मैं नवरात्र के दूसरे दिन युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा जी का आशीर्वाद लेने आया हूँ। गायत्री मंत्र हमे अपने अंतर आत्मा से जोड़ता है। शांतिकुंज एवं देसंविवि आकर मुझे गहरी शांति का अनुभव हो रहा है। राज्यपाल ने कहा कि देसंविवि ऋषि परंम्परा का निर्वहन कर रही है जो भारतीय संस्कृति के गौरव गाथा, शौर्य, पराक्रम, साहस, समरसता की प्रेरणा को जन-जन तक पहुंचाने में जुटा है। राज्यपाल ने कहा कि आचार्य श्री ने सभ्य एवं सुसंकृत समाज का जो स्वप्न देखा था, उसे पूरा करने के लिए अखिल विश्व गायत्री परिवार एवं देसंविवि संकल्पित है।
राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्र ध्वज देशभक्ति, राष्ट्रीयता के साथ हम सभी भारतीय को एक डोर में बांधे हुए है। हम अपना सब कुछ राष्ट्र, समाज, संस्कृत और संस्कृति के लिए समर्पित कर दे। हम सबके लिए राष्ट्र सर्वोपरी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा में प्राणों की आहुति हो जाए, तो यह गर्व की बात है। हर सैनिक की अंतिम अभिलाषा होती है कि जब प्राण तन से निकले तो शरीर तिरंगा में लिपटा हो। राज्यपाल के उद्बोधन से सैनिकों जैसा जोश, उत्साह एवं उमंग से देसंविवि के मृत्युंजय सभागार गुंज उठा। उन्होंने भारत एवं भारतीयता, संस्कृत एवं संस्कृति के उत्थान के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया। राज्यपाल ने अपना उद्बोधन ओम के उच्चारण के साथ प्रारंभ किया और समापन भी।
व्याख्यानमाला कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि यह उत्तराखंड का सौभाग्य है कि देवभूमि में पहली बार सेना के सेवानिवृत एक उच्चाधिकारी को राज्यपाल की जिम्मेदारी मिली है। उन्होंने कहा कि आजादी के मतवाले श्रीराम मत्त एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी रहे, तब उन्होंने तिरंगा की आन, बान, शान के लिए अंग्रेजों से लड़े। संत, सुधारक एवं शहीद को अवतारों की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि मेरे शरीर के रक्त का हर एक बूंद राष्ट्र के लिए समर्पित है। इस मौके पर अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने राज्यपाल का विवि का प्रतीक चिह्न, गायत्री महामंत्र का चादर एवं युग साहित्य भेंटकर सम्मानित किया।
इससे पूर्व देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कार्यक्रम की रूपेरखा पर विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने देसंविवि की ई न्यूज लेटर रेनासा के नवीनतम अंक का विमोचन किया। इस अवसर पर कुलपति श्री शरद पारधी, कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे।
साधकों में सात्विक श्रद्धा जागरण का महापर्व नवरात्र ः डॉ पण्ड्या
हरिद्वार ८ अक्टूबर।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि जिस तरह सूर्य के उदय होते ही सम्पूर्ण जगत में प्रकाश छा जाता है, उसी तरह मनायोगपूर्वक गायत्री साधना करने से साधक के अंतःकरण में भगवत सत्ता के प्रति श्रद्धा, निष्ठा का जागरण होता है। साधकों में सात्विक श्रद्धा जागरण का महापर्व का नाम नवरात्र है।
युवा उत्प्रेरक श्रद्धेय डॉ पण्ड्या नवरात्र के दूसरे दिन साधकों को वर्चुअल संदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि जब साधक मन में उठने वाली समस्त कामनाओं को त्याग देता है या मन से बाहर निकाल देता है और आत्मा के द्वारा आत्मा में ही संतुष्ट रहता है तब वह स्थित प्रज्ञ कहलाता है। उन्होंने कहा कि गायत्री साधना से साधक में सतोगुण की वृद्धि होती है। डॉ पण्ड्या ने कहा कि साधना से विवेक का जागरण होता है। विवेक के जागरण से दुःख, कष्ट मिलने पर मन उद्विग्न नहीं होता और सुख प्राप्त होने पर मन विचलित नहीं होता है। ऐसे साधकों के मन से राग, द्वेष जैसे भाव प्रायः विलुप्त हो जाता है और वह स्थितप्रज्ञ की ओर अग्रसर होता है। स्थितप्रज्ञ व्यक्ति सुख-दुःख में समभाव रहता है। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम सतोगुण, तमोगुण एवं रजोगुण पर विस्तार से जानकारी दी।
इससे पूर्व संगीत विभाग द्वारा सुमधुर संगीत प्रस्तुत किये। जो साधक में साधनात्मक मनोभूमि बनाने सहायक हुआ।
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