परमार्थ मृत्यु के बाद भी है सम्भव



💥 *जीते जी रक्तदान और जाते-जाते अंगदान-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*


 *13 अगस्त, ऋषिकेश( अमरेश दूबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश) * विश्व अंगदान दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने विदेश से भेजे अपने संदेश में कहा कि  ‘‘अंगदान मृत्यु के बाद भी जीवित रहने का सबसे बेहतर तरीका है।’’ ‘‘जीते जी रक्तदान और जाते-जाते अंगदान’ ‘अंगदान महादान’ है। इसके लिये आगे आये क्योंकि अगर एक व्यक्ति अपने हृदय, गुर्दे, अग्न्याशय, फेफड़े, यकृत, आंतों, हाथ, चेहरे, ऊतकों, अस्थि मज्जा और स्टेम कोशिकाओं को दान करता है तो उसके द्वारा आठ लोगों की जान बचायी जा सकती है।

किसी भी उम्र के लोग अपने अंग किसी जरूरतमंद को दान कर सकते हैं। मृत्यु के बाद अपने अंग दान करने से कई लोगों का जीवन बदल सकता है। आज का दिन हमें अंग दान के महत्व के बारे में जागरूकता करने तथा अंगदान का संकल्प लेने के लिये स्वयं को प्रोत्साहित करने का एक बेहतर अवसर प्रदान करता है।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि अंग दान और प्रत्यारोपण को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है ताकि अंग विफलता से पीड़ित लोगों को एक नया जीवन मिल सके। भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 0.65 अंग दान दर है। आकंडों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 5 लाख लोगों की अंगों की अनुपलब्धता के कारण मौत हो जाती हैं। अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति ‘मृत और कभी-कभी जीवित भी’ स्वस्थ अंगों और टिश्यू को किसी दूसरे जरूरतमंद व्यक्ति में ट्रांसप्लांट करने के लिये दान करते है। 

ज्ञात हो कि किसी भी अंग को डोनर के शरीर से निकालने के बाद 6 से 12 घंटे के अंदर उसे ट्रांसप्लांट कर देना होता है। कोई भी अंग जितना जल्दी प्रत्यारोपित होगा, उस अंग के काम करने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है। लीवर निकालने के 6 घंटे के अंदर और किडनी 12 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए। वहीं आँखों का 3 दिन के अंदर प्रत्यारोपण हो जाना चाहिए। अंगदान तो परोपकारिता, दूसरे की भलाई, सहानुभूति और मानवता का कार्य है। आईये संकल्प लें अंगदान करें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करे।



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