ग़ज़ल
जो हमेशा थी शिकायत भूल जाऊं।
मैं तुम्हारी वो मुहब्बत भूल जाऊं।।
भूल जाना है नहीं मुमकिन अगरचे।
हो अगर मुझको इजाजत भूल जाऊं।।
दिल मेरा लेकर कहीं तुम छोड़ आए।
क्या अमानत में ख़यानत भूल जाऊं।।
किस तरह तुम हंस पड़े थे बज्म में कल।
मैं तुम्हारी वो शरारत भूल जाऊं।।
कर दिए फिर से हरे सब जख्म तुमने।
क्या तुम्हारी ये इनायत भूल जाऊं।।
जो विरासत में मिली मुझको मुहब्बत।
वो मुहब्बत वो विरासत भूल जाऊं।।
जो मुझे तू भूलने की दे इजाजत।
हर अदा तेरी कयामत भूल जाऊं।।
रेत की मानिंद तपता इक बदन था।
उस बदन की वो हरारत भूल जाऊं।।
कत्ल करके वो मेरा पछता रहा है।
'दर्द' उसको दे हिदायत भूल जाऊं।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
No comments:
Post a Comment