डा0 निशंक जी की कविता

काँटों की गोदी में”


काँटों की शैया में जिसने कोमलता को छोड़ा ना,
चुभन पल-पल होने पर भी साहस जिसने तोड़ा ना ।
जो विकसित संघर्ष में होता काँटों से लोरी सुनता,
धेर्य सदा ही मन में रखता नहीं विपदा से वह डरता ।
पास आ मुझे कहता वो जीवन में हर कष्ट सहो,
संकट की इन घड़ियों में आगे बढते सदा रहो।
                          
  - डॉ रमेश पोखरियाल ' निशंक'🌹
https://www.znews365.com/2020/01/Ramesh-Pokhriyal-Nishank_21.html


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