- सहृदय व्यक्तियो के लिए सारी दुनिया ही परिवार है
*एकमात्र पुत्री के विवाह के उपरांत मिसिज़ गुप्ता एकदम अकेली हो गयी थी । गुप्ता जी तो उनका साथ कब का छोड़ चुके थे , एक बेटी थी वो भी पराये घर की हो गयी थी । नाते रिश्तेदारों ने औपचारिकता निभाने के लिए एक दो बार कहा भी था कि अब बुढ़ापे में अकेली कैसे रहोगी हमारे साथ ही रहो । और बेटी ने भी बहुत अनुरोध किया अपने साथ रखने का , परन्तु वो किसी के साथ जाने को सहमत नहीं हुईं , शाम के वक्त छत पर ठंडी हवा में घूमते हुए घर के पिछवाड़े हॉस्टल के छात्रों को क्रिकेट खेलते देखना उन्हें बहुत भाता था । कई बार बच्चों की बॉल छत पर आ जाती तो वो दौड़ कर उसे फैंकतीं तो लगता मानो उनका बचपन लौट आया हो । कई बार बॉल छत को पार कर आंगन में पहुंच जाती और बच्चे उसे लेने जाते तब मिसिज़ गुप्ता उनसे पल भर में ढेरों सवाल पूछ बैठतीं " बेटा कौन से क्लास में पढ़ते हो , घर की याद नहीं आती क्या , यहांं खाना कैसा मिलता है , कभी ज्यादा अच्छे मूड़ में होतीं तो पूछती "अच्छा! पढते भी हो , या गर्लफ्रेंड के चक्कर में ही पड़े रहते हो , बताओ किसकी कितनी हैं । और बच्चे कह उठते आंटी एक गर्ल फ्रेंड तो आप ही हैं*
*ठहरो बदमाशों अभी बनती हूँ तुम्हारी गर्लफ्रेंड , शैतान कहीं के ।और आंटी लडकों के पीछे दौड़ती तो सारे छात्र हंसते हुए भाग जाते*
*इस तरह बच्चों से अपनापन बढता चला गया । कभी उन्हें जबरदस्ती अपने हाथ से बनाई खीर खिलातीं , कभी तीज त्यौहार पर सारे बच्चों को खाने का न्यौता दे देतीं और फिर ढेर सारे पकवान बना कर बडे़ प्यार से खाना खिला कर भेजतीं । कई बार मैदान में झगड़ते देख उन्हें डांट लगाने में भी पीछे नहीं रहतीं । बच्चों को भी उनमें एक मां दिखने लगी थी । छात्रों की परीक्षा समीप आ गयी थीं । खेल के मैदान में आना कम हो गया था । मिसिज़ गुप्ता कुछ उदास सी रहने लगीं थी । और कुछ दिन से स्वास्थ भी खराब रहने लगा*
*पढाई करते हुए एक छात्र को आंटी की याद आ गयी तो हालचाल पूछने उनके घर पहुंच गया । देखा मिसिज़ गुप्ता तेज बुखार से तप रहीं थीं । बात पूरे छात्रावास में आग की तरह फैल गयी । कई लड़के आनन-फानन में उन्हें लेकर अस्पताल पहुंच गये*
*कई तरह की जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि फीवर तो जल्द ही ठीक हो जायेगा , पर कमजोरी बहुत ज्यादा आ गयी है , खून चढ़ाना पडेगा । इनके परिवार से कौन हैं , और सारे छात्र एक स्वर में बोल पडे़ "मैं हूं डाक्टर साहब" । मिसिज़ गुप्ता अपने इतने विशाल परिवार को देख कर खुशी के कारण अपने आंसुओं को रोक न सकी , परिवार खून के रिश्तों से नही बनता की खून के रिश्ते है तो यह परिवार है , परिवार तो प्रेम के बंधनों से बंधा होता है , प्रेम से बड़ा कोई भी रिश्ता नही आप चाहो तो प्रेम से सारे संसार को अपना परिवार बना सकते हो पर उस प्रेम की एक शर्त होती है कि उसमें स्वार्थ का प्रेम कभी न हो रिश्ते दिल की गहराई से जुड़े होने चाहिए*बड़ी सोच अनंजान को भी अपना बना देती हैं।
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वसुधैव कुटम्बकम्
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