जूना अखाड़ा के दुख हरण हनुमान मंदिर में की गई विशेष पूजा अर्चना

 हरिद्वार 23 अप्रैल ( गोपाल रावत वरिष्ठ पत्रकार ) हरिद्वार मे आज हनुमान जयंती के पावन पर्व पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के पौराणिक तीर्थ दुख हरण हनुमान मंदिर में पवन पुत्र हनुमान की विशेष  पंचरात्र पूजा अर्चना की गई तथा नया चोला चढा कर अभिषेक किया गया। इससे पूर्व नगर में जूना अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव श्री महंत महेशपुरी, श्रीमहंत शैलेंद्र गिरी, श्री महंत सुरेशानंद सरस्वती, श्री महंत पूर्ण गिरी, श्री महंत पशुपति गिरी, कोठारी महंत महाकाल गिरी, महंत गोविंद गिरी, महंत धीरेंद्र पुरी, महंत ग्वालापुरी, महंत रतन गिरी आदि के संयोजन में नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। बैंड बाजों तथा सुंदर झांकियों के साथ  इस शोभायात्रा में हरियाणा पंजाब के अतिरिक्त सैकड़ो स्थानीय श्रद्धालुओं ने भाग लिया। हनुमान जयंती के अवसर पर श्री दुख हरण हनुमान मंदिर में गत दो दिनों से चल रहे सुंदरकांड का समापन किया गया तथा विशिष्ट यज्ञ किया गया। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्री महंत हरि गिरि महाराज तथा दुख हरण हनुमान मंदिर के पीठाधीश्वर श्री महंत आनंद गिरि के संयोजन में एक विशाल संत सम्मेलन का भी आयोजन किया गया ।जूना अखाड़े के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री महंत केदारपुरी महाराज की अध्यक्षता तथा राष्ट्रीय सचिव श्री महंत देवानंद सरस्वती के संचालन में महामंडलेश्वर श्री महंत हरी चेतनानंद गिरी महाराज ने हनुमान जयंती के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा आज हनुमान जी का प्रकट उत्सव है। उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि हनुमान जी ने बाल्यावस्था में सूर्य को फल समझकर निगल लिया था। सूर्य को मुक्त करने के लिए इंद्र ने वज्र से प्रहार कर हनुमान जी के मुख से सूर्य को मुक्त कराया था लेकिन हनुमान जी के निर्जीव होने पर उनके पिता पवन देवता ने वायु संचार बंद कर दिया ।पवन देवता को शांत करने के लिए ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को जीवनदान दिया इसी कारण चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जी के प्रकटोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पीठाधीश्वर श्री महंत आनंद गिरि महाराज ने बताया दुख हरण हनुमान मंदिर पौराणिक तीर्थ है जो कि ललित तीर्थ पर बसा हुआ है महाभारत काल के अनुशासन पर्व में उल्लेख है कि इसी ललित तीर्थ पर शांतनु का मां गंगा से मिलन हुआ था तथा स्वर्ग के शापित आठ वसुओं का जन्म मां गंगा की कोख से यहीं पर हुआ था। इन आठों वसुओं को इसी तट पर मां गंगा ने अपनी धारा में प्रवाहित कर शाप मुक्त किया था। प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएन सॉन्ग ने भी छटी  शताब्दी में की गई अपनी यात्रा वृतांत में इसका उल्लेख किया है। इस अवसर पर विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया ।



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