शरद पूर्णिमा और महारास
_( डॉ एस के कुलश्रेष्ठ_)
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शरद पूर्णिमा जो अश्विन मास में होती हैउसका संबंध हमारे धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न रूपों में पाया जाता है ।शरद पूर्णिमा का संबंध भगवान श्री कृष्णऔर गोपियों के संग महारास के साथ जोड़ा जाता है भग'वान श्री कृष्ण जो चंद्रवंश में उत्पन्न हुए थे और भगवान विष्णु के अवतार थे 16 कलाओंसे युक्त भगवान कृष्ण और गोपियों के महारास का वर्णन श्रीमद्भागवत कथा में बहुत ही रोचक ढंग से किया जाता है। श्रीमद् भागवत कथा के 11वे स्कंध में गोपी गीत जो श्रीमद् भागवत कथा का हृदय कहा जाता है ।उसमें शरद पूर्णिमा के दिन महारास का वर्णन आता है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण विभिन्न रूपों में अपनी गोपियों के संग राष्ट्र करते हैं और जब गोपियों को यह भान हो जाता है कि श्री कृष्ण सामान्य व्यक्ति है और हमारे आधीन है तब भगवान श्री कृष्ण गोपियों का अहंकार नष्ट करने के लिए अंतर्ध्यान हो जाते हैं ।श्रीमद् भागवत कथा में वर्णन आता है कि भगवान श्री कृष्ण की अहलादनी शक्ति राधा जी का प्रादुर्भाव गोपी गीत के मध्य ही हुआ था। भागवत कार कहते हैं गोपी गीत परमात्मा और आत्मा के बिछड़ने का विरह गीत हैं जिसे श्रीमद् भागवत कथा में व्यास भगवान ने बड़े ही मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है ।महारास को आत्मा और परमात्मा के मिलन का सुंदर प्रसंग बताया गया है ।इस कारण शरद पूर्णिमा भगवान श्री कृष्ण राधा रानी और गोपियों के मधुर मिलन और विछोह से भी जुड़ा है ।इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर पृथ्वी पर अमृत वर्षा करते हैं ।इस दिन आयुर्वेद के अनुसार चंद्रमा की किरणें साक्षात अमृत स्वरूप होती है जो दूध से बनी वस्तुओं खीर आदि में पढ़ने पर औषधीय रूप से युक्त होकर विभिन्न रोगों में लाभ प्रदान करती हैं। इस कारण शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर बनाकर रखने और उसको प्रसाद के रूप में वितरित करने का भी नियम बना हुआ है। वैसे तो शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी जी के जन्म से जोड़ा गया है ।जिस कारण शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी को प्रिय वस्तु खीर का भोग लगाया जाता है और ऐसी आस्था है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में लक्ष्मी जी धरा धाम पर विचरण करती हैं और भक्त लोग उनके भोग के लिए खीर बनाकर छत पर रखते हैं। जो बाद में प्रसाद रूप बनकर समस्त जगत का कल्याण करती है ,तो आइए इस अलौकिक शरद पूर्णिमा पर हम भी अपनी आस्था के अनुसार चंद्रमा की अमृतमई रश्मिओ में स्नान कर प्रकृति के निकट रहने का प्रयास करें।
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