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हरदिल अजीज दोस्त गुरूजी ---------------------------- स्व0 अनिल गुप्ता जी जो अभी 31 जुलाई को हम से हमेशा के लिए बिछड गए। मित्रमंडली में इन्हें गुरूजी कहा जाता है। जिसकी वजह है इनका अध्ययन। गजब के पढ़ाकू हैं, इसीलिए टीचर बन गए। कयी वर्ष प्रायमरी, जूनियर हाई स्कूल मे पढाते रहे फिर पी डब्लू डी में इंजीनियर बने।एक साधारण परिवार में पैदा हुए गुरु जी का जीवन और संघर्ष हमारे लिए आदर्श है, इनकी प्रतिभा कुछ ऐसे दिखती :- पॉलीटेक्निक से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोेमा, मगर नौकरी के लिए नहीं निकले, जल्द ही भांप गए कि दुनिया की देखादेखी में पॉलीटेक्निक हो गई। अब कुछ अलग करना है, उसके बाद प्राईवेट बीए करने में जुट गए । जिसमें हिंदी, इतिहास और राजनीति शास्त्र विषय के साथ 70 फीसदी अंक पाए। फिर एमए हिंदी प्राईवेट। जिसमें विषयो में एम ए कर के मन नहीं भरा तो मास कम्यूनिकेशन का गूढ़ ज्ञान भी प्राप्त कर लिया।जब भी मिलते कुछ नयी पढाई की बात करते रहते थे। अपनी युवा अवस्था में बच्चों को टयूशन पढा कर आत्मनिर्भर बने रहे गणित के तो वो मास्टर थे। 30 वर्ष के लंबे समय से दोस्त दुःख सुख के साथी काफी साथ में रहना हुआ। लेकिन इन्होंने कभी अपने ज्ञान से हमें आतंकित नहीं किया। बल्कि सहज ढंग से हम जैसे कई हाली मवाली दोस्तों के सूखे दिमागों को सींचते रहे। कई बड़े उद्भट विद्वान भी हैं, कि इधर हमने कुछ लिखने की कोशिश की तो उधर उनका अकादमिक आतंकवाद हमारे खिलाफ खड़ा हो जाता। लेकिन गुरूजी की बात अलग थी - हमारे आत्मबल को बनाए रखने के लिए वे अपने पिटारे से कुछ ना कुछ निकाल लेते हैं। उन्होंने ही बताया कि गुरुनानक और कबीर जैसे संत पढ़े लिखे नहीं थे। लेकिन उनके दर्शन को ही ज्ञान मार्ग कहा जाता है। हालांकि हम ना तो कबीर हो सकते हैं और ना ही गुरूनानक देव, हमें तो बस ज्ञान का वो सिरा पकड़ना है जो हमारे काम का है। तो बस लिखने पढ़ने के काम में सिर घुसाकर सीखते रहने का सूत्र हमें मिल गया। स्वभाव से बेहद शालीन गुरूजी के व्यक्तित्व की कई परतें थी। ये परतें परिस्थितियों के अनुसार खुलती और बंद होती थी । कई किस्से ऐसे हैं जहां गुरूजी पढ़ाकू के साथ आला दर्जे के लड़ाकू भी साबित हुए। इस बात की थाह नहीं ली जा सकती कि गुरू जी कौन सी गलत बात पर क्रोधित हो उठेंगे। लेकिन ऐसा हुआ तो फैसला ऑन दि स्पॉट ही होता है। अक्सर समाज के लिए फिक्रमंद नजर आने वाले गुरूजी कई सामाजिक गतिविधियों में हमारे साथ शामिल रहे। जहां वे नेतृत्व करते नहीं बल्कि चुपचाप मजदूर की तरह जमीनी काम करते नजर आते हैं। पुराने फिल्मीत गीत उनके लिए ऐसे हैं जैसे घाव पर मरहम। कोई बेहतर गाना गुनगुना भर दो तो गुरुजी से आपकी दोस्ती हो जाया करती थी। आप सदैव हमारी स्मृतियो में बने रहेंगे।
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