धन्य है जगद् गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी महाराज . अगर पुरी शंकराचार्य जी ने एक हस्ताक्षर कर दिया होता तो न ही राम जन्मभूमि सुरक्षित होती न ही कभी भाजपा सत्ता में ही आती। ऐसे में सनातनी जनों के मध्य यह उत्सुकता का विषय है कि इस आंदोलन में आखिर सनातन धर्म के सर्वोच्च आचार्यों की क्या भूमिका रही?? आइये हम आपको पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज की इस आंदोलन में प्रासंगिकता के बारे में बताते हैं- बात उस समय की है, जब विवादित ढांचा टूटा भी नहीं था और निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज शंकराचार्य के पद पर विराजमान नहीं थे, उसी समय तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दो दूत शंकराचार्य जी के पास आकर प्रधानमंत्री जी का संदेश बताते हुए कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी की इच्छा है कि आपको 66 करोड़ रुपये दिए जाएं, जिससे आपकी प्रभावी भूमिका के अंतर्गत भव्य राममन्दिर का निर्माण किया जाए, महाराज जी तुरन्त प्रश्न कर बैठते हैं कि वहां केवल मन्दिर ही बनेगा न ! इस पर वो व्यक्ति कुछ सहज उत्तर न दे पाए और वहां से चले गए। कालान्तर में ढांचा टूटता है और महाराज श्री भी शंकराचार्य के पद पर प्रतिष्ठित होते हैं। गौरतलब है कि ढांचा टूटने के पूर्व उसे मीडिया में बाबरी मस्जिद के नाम से प्रचारित किया जा रहा था, सबसे पहले महाराज जी ने ही कहा कि वो मस्जिद नहीं है, उसमें मंदिर के लक्षण हैं। उसमें गुम्बद है ,मीनारें नहीं । इस आंदोलन पर बारीकी नजर रखने वाले सज्जन जानते हैं कि ढांचा टूटने में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की अप्रत्यक्ष भूमिका सर्वाधिक रही है। जैसे ही ढांचा टूटता है तो संवैधानिक तंत्र की विफलता के नाम पर पांच राज्यों में भाजपा की सरकार गिरा दी जाती है। नरसिम्हा राव ने संत तंत्र को एकत्रित किया और श्रृंगेरी के शंकराचार्य जी के नेतृत्व में रामालय ट्रस्ट का गठन किया। इस ट्रस्ट पर हस्ताक्षर करने वाले सभी संतों को धन-धान्य से लाद दिया। आश्चर्य कि बात है कि लगभग सभी प्रामाणिक शंकराचार्यों , वैष्णवाचार्यों ने इस पर हस्ताक्षर भी कर दिया, केवल पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज को छोड़कर। क्योंकि महाराज जी का एक ही प्रश्न था- वहाँ केवल मंदिर ही बनेगा न !! (क्योंकि नरसिम्हा राव जी को बगल में मस्जिद बनवाकर कांग्रेस का मुस्लिम वोट भी सुरक्षित रखना था, इसलिए वह कभी भी स्पष्ट रूप से उत्तर नहीं दिए) अब एक दौर शुरू हुआ पुरी शंकराचार्य जी महाराज को मनाने का, मंत्रियों के समूह के समूह आने लगे, संतों की टोलियां आने लगी, स्वयं श्रृंगेरी के शंकराचार्य जी महाराज अपने सौ भक्तों के साथ तीन दिन तक गोवर्धन मठ में आकर महाराज जी को मनाते रहे। मठ को सोने चांदी से भरने का प्रलोभन तो रेलवे के ठेकेदारों से पैसा लेकर दर्जनों की संख्या में मठ के द्वार पर गाड़ियां खड़ी करने का भी क्रम चला। फिर धमकियों का दौर भी शुरू हुआ। नरसिम्हा राव ने स्पष्ट रूप से धमकी भिजवाई कि पुरी के शंकराचार्य जी ट्रस्ट पर हस्ताक्षर कर दें, नहीं तो धन, मान व प्राण तीनों से हाथ धोना पड़ेगा। शंकराचार्य जी महाराज ने उत्तर भेजा - 'मैं धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का शिष्य हूँ। मैं अपने कुल व माता- पिता को कलंकित नहीं कर सकता ,मैं किसी भी दशा में इस बात पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता कि वहाँ पर अगल- बगल मंदिर मस्जिद बने। क्योंकि अगल बगल मंदिर- मस्जिद का बनना दूसरे पाकिस्तान की नींव रखने जैसा होना है। मैं वहाँ पर केवल मन्दिर ही देखना चाहता हूँ। रही बात धन, प्राण व मान के अपहरण की तो प्रधानमन्त्री जी पूरी ताकत लगा लें, धन तो मेरे है नहीं, प्राण तो है ही तभी बोल रहा हूँ, मान तो अवश्य है, देखते हैं कि विजय किसकी होती है ?? प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की हिम्मत नहीं पड़ी कि वो बिना पुरी शंकराचार्य जी के सहमति के मन्दिर सम्बन्धी अपने निर्णय को क्रियान्वित कर सकें। उल्लेखनीय है कि इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लग जाता है। उस प्रतिबन्ध को हटवाने में शंकराचार्य जी की ही भूमिका रही। अब यह बात यहाँ समझ लेना चाहिए कि अगर पुरी शंकराचार्य जी महाराज ने हस्ताक्षर कर दिया होता तो न राम मंदिर आंदोलन शेष रहता और न ही राम मन्दिर के नाम पर कभी भाजपा सत्ता में आती। कालान्तर में राममन्दिर के नाम पर भाजपा सरकार में आती है और वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बनते हैं। वाजपेयी जी भी अंदर से मन्दिर - मस्जिद के समर्थक थे। उन्होंने तत्कालीन भाजपा सांसद व अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के माध्यम से शंकराचार्य जी से कहलवाया कि अगर पुरी शंकराचार्य जी महाराज अनुमति दे दें और वहां मंदिर मस्जिद बन जाये तो क्या हर्ज है ?? शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि कथमपि नहीं, वहां केवल मंदिर बनना चाहिए। वाजपेयी जी की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि पुरी शंकराचार्य जी महाराज के विरुद्ध कार्य कर सकें। इसके बाद वर्तमान में न्यायालय के माध्यम से ही राममन्दिर का निर्णय आता है, इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि रामजन्मभूमि सुरक्षित रही तो वह केवल पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज के कारण वरना यह सरकारें कब की आसपास मन्दिर व मस्जिद का निर्माण करवा देतीं। वर्तमान प्रधानमंत्री जब स्वयं इसकी आधारशिला रखने जा रहे हैं, तो उन्हें सनातन धर्म के सर्वोच्च आचार्य का सम्मान करते हुए सम्पूर्ण मर्यादा का पालन करते हुए उनके अधिकार का ध्यान रखना चाहिए। गौरतलब है कि आध्यात्मिक शासन के दृष्टिकोण से भी अयोध्या पुरी शंकराचार्य जी महाराज के शासन सीमा के अंतर्गत ही आती है। सम्पूर्ण सनातनी जनों से आग्रह है कि वो अपने सर्वोच्च आचार्य के प्रति सम्मान का दृष्टिकोण रखें और यह भी याद रखें कि राम जन्म भूमि की सुरक्षा केवल उनके कारण ही ढांचा टूटने के बाद अब तक संभव रही है न कि किसी संघ या संगठन के द्वारा। . रूद्र भारद्वाज शिष्य जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज श्री जी । गुरुदेव भगवान की जय हो।


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