भाई घनय्या जी

भाई घनइय्या जी मानवता की मशाल


        सिक्खों और मुगलों में युद्ध हो रहा था, भाई घनइय्या जी को घायल सिक्ख सैनिकों को पानी पिलाने का दायित्व दिया गया था।


        कुछ सिक्खों ने गुरू गोबिन्द सिंह जी से शिकायत की कि घनइय्या गद्दार हो गया है, वह मुस्लिम मुगल सैनिकों को भी पानी पिला रहा है। गुरू जी ने शिकायत सुन कर भाई घनइय्या जी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया।


      भाई घनइय्या जी ने बताया कि युद्ध भूमि में जब मैं पानी पिलाने का कार्य करता हूँ मुझे हर घायल और पीड़ित प्यासे के मूँह में आप के ही दर्शन होने लगते हैं, मैं सिक्ख मुस्लिम और हिन्दू का भेद नहीं कर पाता हूँ, मैं उसे पानी पिलाने से अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ।


      यह सुन कर गुरू जी बोले तुम बिलकुल ठीक करते हो, तुम मेरे सच्चे सिक्ख हो। गुरू जी ने उन्हें मरहम का डिब्बा भी दे कर कहा भाई घनइय्या अब आप बिना भेदभाव के सब घायलों को पानी पिलाने की सेवा के अतिरिक्त उनके घावों पर मरहम भी लगायेंगे।


      भाई घनइय्या जी ने वास्तव में गुरू गोबिन्द सिंह जी के आदेशानुसार सन 1704 में ही रेडक्रॉस की सेवा प्रारंभ कर दी थी।


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