आईना मुझ से मेरी पहली सी सूरत माँगे
मुँह फुलाए देखता है आईना,
वो पुराना शख्स क्यूँ दिखता नहीं।
चेहरा जिस का रौनकों से था भरा,
आफ़ताबी चेहरा क्यूँ दिखता नहीं।
झूठ के बाज़ार में सच की दुकाँ,
हाय मेरा सौदा क्यूँ बिकता नहीं।
जिस्म था चलती फिरती सी ग़ज़ल,
क्यूँ सनम वो ग़ज़ल लिखता नहीं ,जिस से रूह को मुसर्त मिले, बीते दिन लौटाता क्यू नही।
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