गजल दर्द गढ़वाली


  • गजल
    आदमी को फिर फरिश्ता कीजिए।
    आप अपना ही तमाशा कीजिए।।
    ख्वाब पलकों पे सजाया कीजिए।
    और फिर दिल में उतारा कीजिए।।
    प्यार है तुमसे मुझे, मैंने कहा।
    आप यूं मुझको न रुसवा कीजिए।।
    जो मिले उससे मिलो तुम प्यार से।
    हो सके तो आप इतना कीजिए।।
    मोच पांवों में न आए फिर कहीं।
    आप खुद जीना न उतरा कीजिए।
    कब मिली कारे-जहां से फुरसतें।
    किस तरह अपना मदावा कीजिए।।
    दर्द कितना है तुम्हें, मालूम है।
    बंद अपना ये तमाशा कीजिए।।
    शर्म कुछ तो कीजिए, अब आंख का।
    मर रहा पानी है, जिंदा कीजिए।।
    'दर्द' कल दुन्या करे सजदा तुम्हें।
    आप कुछ ऐसा करिश्मा कीजिए।।
    दर्द गढ़वाली, देहरादून 


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