जय माता दी

सिद्ध पीठ लाल माता वैष्णो देवी मंदिर की ओर से जशोदा बेन को आशीर्वाद स्वरूप प्रदान की गई माता की चुन्नी, नारियल प्रसाद 


हरिद्वार  5 नवम्बर  प्रधान मंत्री मोदी जी की पत्नी जशोदा बेन के हरिद्वार पहुँच ने  पर श्री सिद्ध पीठ लाल माता वैष्णो देवी मंदिर की ओर से संचालक भक्त दुर्गा दास ने जशोदा बेन का स्वागत किया तथा मंदिर की ओर से माता रानी की चुन्नी, नारियल प्रसाद भेट किया भक्त दुर्गा दास ने जशोदा बेन को लाल माता वैष्णो देवी मंदिर और पूज्य लाल माता मंदिर के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए श्री सिद्ध पीठ लाल माता वैष्णो देवी मंदिर के महत्व के विषय में जानकारी प्रदान की, इस अवसर पर भाजपा के जि़ला उपाध्यक्ष नरेश शर्मा, लव शर्मा, संजीव सन्नी, संजय वर्मा  गगन नाम देव, विरेन्द्र शर्मा सहित भाजपा के कार्यकर्ता उपस्थिति रहे।


भगत के बस में है भगवान

भगत के बस में है भगवान 


श्रीरुप गोस्वामी जी पर राधारानी जी की कृपा बरसाना में श्री रुप गोस्वामी चेतन्य महाप्रभु के छः शिष्यो में से एक.एक बार भ्रमण करते-करते अपने शिष्य श्री जीव गोस्वामी जी के यहाँ बरसाना आए. 


जीव गोस्वामी जी ठहरे फक्कड़ साधू फक्कड़ साधू को जो मिल जाये वो ही खाले जो मिल जाये वो ही पी ले. आज उनके गुरु आए तो उनके मन भाव आया की में रोज सूखी रोटी, पानी में भिगो कर खा लेता हूं. मेरे गुरु आये हैं क्या खिलाऊँ.. 


एक बार अपनी कुटिया में देखा किंचित तीन दिन पुरानी रोटी बिल्कुल कठोर हो चुकी थी, मैं साधू पानी में गला गला खा लूं. यद्यपि मेरे गुरु साधुता की परम स्थिति को प्राप्त कर चुके है फिर भी मेरे मन के आनन्द के लिए, कैसे मेरा मन संतुष्ट होगा.


 एक क्षण के भक्त के मन में सँकल्प आया की अगर समय होता तो किसी बृजवासी के घर चला जाता. दूध मांग लेता, चावल मांग लाता. मेरे गुरु पधारे जो देह के सम्बंध में मेरे चाचा भी लगते हैं. लेकिन भाव साम्रज्य में प्रवेश कराने वाले मेरे गुरु भी तो हैं. उनको खीर खिला देता… 


रूप गोस्वामी ने आकर कहा – जीव भूख लगी है तो जीव गोस्वामी उन सूखी रोटीयो को अपने गुरु को दे रहे है.अँधेरा हो रहा है.जीव गोस्वामी की आँखों में अश्रु आ गए. और रुप गोस्वामी जी ने कहा – तू क्यों रो रहा है हम तो साधू हैं ना. जो मिल जाय वही खा लेते हैं. में खा लूंगा.


 श्री जीव गोस्वामी जी ने कहा- नहीं बाबा मेरा मन नहीं मान रहा.आप की यदि कोई पूर्व सूचना होती तो मेरे मन में कुछ था. यह चर्चा हो ही रही थी की कोई अर्द्धरात्रि में दरवाजा खटखटाता है. ज्यो ही दरवाजा खटखटाया है. जीव गोस्वामी जी ने दरवाजा खोला.


 एक किशोरी खड़ी हुई है 8 -10 वर्ष की हाथ में कटोरा है. कहा, बाबा मेरी माँ ने खीर बनाई है और कहा जाओ बाबा को दे आओ. जीव गोस्वामी ने उस खीर के कटोरे को ले जाकर रुप गोस्वामी जी के पास रख दिया. 


बोले बाबा – पाओ…ज्यों ही रूप गोस्वामी जी ने उस खीर को स्पर्श किया… उनका हाथ कांपने लगा. जीव गोस्वामी को लगा बाबा का हाथ कांप रहा है. पूछा – बाबा कोई अपराध बन गया है ? 


रूप गोस्वामी जी ने पूछा-  जीव! आधी रात को यह खीर कौन लाया…?? 


बाबा पड़ोस में एक कन्या है मैं जानता हूं उसे, वो लेके आई है.नहीं जीव इस खीर को मैने जैसे ही चख के देखा और मेरे में ऐसे रोमांच हो गया. नहीं जीव् तू पता कर यह कन्या मुझे मेरे किशोरी जी के होने अहसास दिला रही है.


 नहीं बाबा,  वह कन्या पास की है, मैं जानता हूं उसको. अर्ध रात्रि में दोनों गए है उस के घर और दरवाजा खटखटाया, अंदर से उस कन्या की माँ निकल कर बाहर आई. जीव गोस्वामी जी ने पूछा – आपको कष्ट दिया, परन्तु आपकी लड़की कहां है ? 


उस महिला ने कहा, – का बात है गई बाबा.. आपकी लड़की है कहाँ…??


 वो तो उसके ननिहाल गई है गोवेर्धन, 15 दिन हो गए हैं. रूप गोस्वामी जी तो मूर्छित हो गए. जीव गोस्वामी जी ने पैर पकडे और जैसे तेसे श्रीजी के मंदिर की सीढ़िया चढ़ने लगे.  जैसे एक क्षण में चढ़ जायें.


 लंबे-लंबे पग भरते हुए मंदिर पहुचे. वहां श्री गोसाई जी से कहा-  बाबा! एक बात बताओ आज क्या भोग लगाया था श्रीजी श्यामा प्यारी को? गोसांई जी जानते थे श्री जीव गोस्वामी को, कहा क्या बात है गई बाबा…कहा क्या भोग लगाया था… गोसाई जी ने कहा, आज श्रीजी को खीर का भोग लगाया था. 


रूप गोस्वामी तो श्री राधे श्री राधे कहने लगे, उन्होंने गोसाई जी से कहा – बाबा एक निवेदन और है आप से, यद्दपि यह मंदिर की परंपरा के विरुद्ध है कि एक बार जब श्री जी को शयन करा दिया जाये तो उनकी लीला में जाना अपराध है.


 प्रिया प्रियतम जब विराज रहे हों तो नित्य लीला है उनकी,अपराध है फिर भी आप एक बार यह बता दीजिये की जिस पात्र में भोग लगाया था वह पात्र रखो है के नहीं रखो है…गोसाई जी मंदिर के पट खोलते हैं और देखते हैं की वह पात्र नहीं है वहां पर. गोसांई जी बाहर आते हैं और कहते हैं – बाबा! वह पात्र नहीं है वहां पर ! न जाने का बात है गई है…


रूप गोस्वामी जी ने अपना दुप्पटा हटाया और वह चाँदी का पात्र दिखाया, बाबा यह पात्र तो नहीं है ?


 गोसांई जी ने कहा – हां बाबा यही पात्र तो है… रूप गोस्वामी जी ने कहा- श्री राधा रानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई, किशोरी पधारी थी, राधारानी आई थी. उस खीर को मुख पर रगड़ लिया सब साधु संतो को बांटते हुए श्री राधे श्री राधे करते हुऐ फिर कई वर्षो तक श्री रूप गोस्वामी जी बरसाना में ही रहे.


 हे करुणा निधान ! इस अधम, पतित-दास को ऐसी पात्रता और ऐसी उत्कंठा अवश्य दे देना कि इन रसिकों के गहन चरित का आस्वादन कर अपने को कृतार्थ कर सकूँ। इनकी पद धूलि की एक कनिका प्राप्त कर सकूँ.


जय जयश्रीराधे...


मेरे तो गिरधर गोपाल

हमारे जीवन का लक्ष्य...........🌺


ये  शरीर  कृष्ण कृपा से मिला है और केवल कृष्ण  की प्राप्ति के लिये ही मिला है | इसलिये हम को चाहे कुछ भी त्यागना पडें ,सब छोडकर कृष्ण भक्ति   में तुरंत लग जाना चाहिये | 


    जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है | उससे कोई पूँछे कि माँ तेरी क्यों है तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है | उसके मन में यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है ? 


माँ मेरी है बस इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता | इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढता से मान लो कि कृष्ण  मेरे है | कृष्ण के सिवाय और कोई मेरा नहीं है क्योकि वह  सब छूटने वाला है| 


जिनके प्रति आप बहुत आसक्त  रहते हैं , वे माँ  बाप , पति- पत्नी ,बच्चे ,रूपये, जमीन , मकान, रिस्ते- नाते आदि सब छूट जायेंगें | उनकी याद तक नहीं रहेगी| 


अगर याद रहने की रीत हो तो बतायें कि इस जन्म से पहले आप कहाँ थे| आपके माँ ,बाप ,स्त्री, पुत्र कौन थे ? 


आपका घर कौन सा था | जैसे पहले जन्म की याद नहीं है ऐसे ही इस जन्म की भी याद नहीं रहेगी |


 जिसकी याद तक नही रहेगी उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो ! यह सबके अनुभव की बात है कि हमारा कोई नहीं है सब मिले हैं और विछुड जायेगें ,आज नहीं तो कल इसलिये
"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई" - ऐसा मानकर मस्त हो जाओ |


दुनियाँ सब की सब चली जाये तो परवाह नहीं है पर हम  केवल कृष्ण के  हैं और केवल कृष्ण हमारे हैं ! केवल एक मात्र यही   सच है और बाकी सब झूठ. इसके सिवाय और किसी बात की ओर देखो ही मत , विचार ही मत करो |


आज से कृष्ण  के होकर रहो ,कोई क्या कर रहा है कृष्ण  जानें हमें मतलब नहीं है| सब संसार नाराज हो जाये तो परवाह नहीं पर कृष्ण तो मेरे हैं - इस बात को पकड़ कर रखो बस |


हरे कृष्णा 🙏


आत्म विश्वास ही सफलता की कुंजी है :-पद्म श्री संतोष यादव


आत्म विश्वास ही है सफलता का मंत्र :- संतोष यादव 
एवरेस्ट विजेता पद्म श्री संतोष यादव ने शिवडेल स्कूल के छात्र छात्राओं को दिये सफलता के सूत्र


हरिद्वार 4 नवम्बर  शिवडेल स्कूल के बच्चों के लिए आज का दिन रोमांचकारी रहा, जिस महान हस्ती के बारे मे वे अपनी किताबों में पढा करते हैं वही आज उनके बीच है। एवरेस्ट को विश्व में दो बार फतह करने वाली तथा दो बार टीम का नेतृत्व करने वाली पद्मश्री संतोष यादव सोमवार को शिवडेल स्कूल पहुँची जँहा बच्चों और टीचर्स ने उनका स्वागत किया।
[11/4, 2:31 PM] Sanjay Verma: छात्रा छात्राओं को सफल जीवन के सूत्र देते हुए संतोष यादव ने कहा कि आत्म विश्वास ही सफलता की कुंजी है विपरीत परिस्थितियों में सहास और आपका आत्मविश्वास ही विजेता बनाता है उन्हों ने बच्चों के साथ अपने माउंट एवरेस्ट को फतह करने के रोमांच, तैयारीयो, अनुभवों और कठिनाईयो के क्षणों बाँटते  हुए वर्तमान में पर्यावरण, जल संरक्षण के विषय पर भी बच्चों को जागरूक करते हुए स्वावलंबी, मेहनती बनने के लिए प्रेरित किया उन्हों ने बच्चों को स्वस्थ रहने के लिए प्रातः जल्दी उठने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि छात्र जीवन में बच्चों को अल्प निद्रा, अल्प भोजन करना चाहिए जीवन सरल और सात्विक होना चाहिए। प्रतियोगिता के इस दौर में उन्हों ने बच्चों को तनाव, डिप्रेशन से बचने के लिए ईमानदारी से हर क्षेत्र में द्वेष रहित प्रतिस्पर्धा करने के लिए कहा साथ ही आवश्यकताओं को कम कर रचनात्मक कार्य करके जीवन को उन्नत बनाने के लिए प्रयास करने के लिए कहा, शिवडेल स्कूल के संस्थापक स्वामी शरद पुरी महाराज ने एवरेस्ट विजेता पद्म श्री संतोष यादव और उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी नरसिह महाराज का स्वागत करते हुए कहा कि शक्ति स्वरूपा संतोष यादव को अपने मध्य पाकर हम सब अभिभूत है जिनके विषय में हम बच्चों को किताबों में पढाया करते है वही हिमालय सा महान व्यक्तित्व हमारे बीच है स्वामी शरद पुरी ने बच्चों और टीचर्स से संतोष यादव के सरल और सात्विक जीवन से प्रेरणा लेकर सफल जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। शिवडेल स्कूल में अपने तीन घंटे के प्रवास के दौरान स्कूली बच्चों और टीचर्स ने  संतोष यादव से उनके पुलिस के जीवन, आई टी बी पी में साहसिक अभियानो, अध्यात्मिक जीवन के विषय में प्रशन किये जिनका संतोष यादव ने बडी सहजता के साथ जवाब दिया। 1992 और 1993 में लगातार दो बार एवरेस्ट फतह और दो बार एवरेस्ट फतह करने वाली टीम का   नेतृत्व करने वाली पद्मश्री सम्मान से नवाजी गई आई टी बी पी की पूर्व वरिष्ठ अधिकारी संतोष यादव इन दिनों निजी यात्रा पर कनखल के त्रिपुरा योग आश्रम में आई हुई है।


तृष्णा तू न गयी मेरे मन से

🌸तृष्णा तू न गयी मेरे मन से


🌸अनीता वर्मा 


            एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई।
           लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया।
           सेठ जी ने आदेश दिया, "मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, यह कार्य अधिकतम एक सप्ताह में हो जाना चाहिए।"
            ठीक एक सप्ताह बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ जी की सेवा में उपस्थित हुआ।
            सेठ जी ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है?”   
           “सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी।” बोला लेखाधिकारी।
           लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ जी चिंता में डूब गए, 'तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?' 
             वह रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी जी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते।
            सेठानी जी से सेठ जी की यह हालत देखी नहीं जा रही थी। 
            मन की स्थिरता व शान्त्ति का वास्ता देकर सेठानी ने सेठ जी को साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित कर ही लिया। 
             सेठ जी भी पँहुच गए एक सुप्रसिद्ध संत समागम में। 
              एकांत में सेठ जी ने सन्त महात्मा से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा। 
             “महाराज जी! मेरे दुःख का तो पार ही नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान, विधी आदि करने को तैयार हूँ।" सेठ जी ने सन्त महात्मा से प्रार्थना की।
              संत महात्मा जी ने समस्या समझी और बोले- “इसका तो हल तो बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो, सेठ! बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। यदि वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।”
               सेठ जी को बड़ा आसान उपाय मिल गया। अब कहां सब्र था उन्हें।
               घर पहुंच कर सेवक के साथ एक क्विंटल आटा लेकर पहुँच गए बुढिया की झोंपड़ी पर।
               “माताजी! मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए।"सेठ जी बोले।
              “आटा तो मेरे पास है,बेटा! मुझे नहीं चाहिए।” 
              बुढ़िया ने स्पष्ट इन्कार कर दिया।
               सेठ जी ने कहा- “फिर भी रख लीजिए” l
               बूढ़ी मां ने कहा- “क्या करूंगी रख कर मुझे आवश्यकता ही नहीं है।” 
               सेठ जी बोले, “अच्छा, कोई बात नहीं,एक क्विंटल न सही यह आधा किलो तो रख लीजिए” l
             “बेटा!आज खाने के लिए जरूरी,आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त की जरूरत नहीं है।” बुढ़िया ने फिर स्पष्ट मना कर दिया।
              लेकिन सेठ जी को तो सन्त महात्मा जी का बताया उपाय  हर  हाल  में  पूरा  करना था। 
             एक कोशिश और करते सेठ जी बोले “तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए।” 
               बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा! कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता आया है कल के लिए भी कल ही प्रबंध हो जाएगा।” 
               इस बार भी बूढ़ी मां ने लेने से साफ इन्कार कर दिया।
             सेठ जी  की आँखें खुल चुकी थी,"एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।"
           *वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। संग्रहखोरी तो दूषण ही है। संतोष में ही शान्ति व सुख निहित है।पल की तो खबर नहीं... चिंता कल की हो रही है...*


☺*सदैव प्रसन्नचित्त रहें*☺
🙏जो प्राप्त है-पर्याप्त है🙏


मोर पंख

(((( मयुर का ऋण ))))
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वनवास के दौरान माता सीताजी को पानी की प्यास लगी, तभी श्री रामजी ने चारों ओर देखा तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। 
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कुदरत से प्रार्थना करी। हे जंगल जी आसपास जहां कही पानी हो वहां जाने का मार्ग कृपया सुझाईये।
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तभी वहां एक मयुर ने आ कर श्री रामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है।चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूं। 
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किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है।
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श्री रामजी ने पूछा वह क्यों ? 
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तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे।इसलिए मार्ग में मैं अपना एक एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा।
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उस के सहारे आप जलाशय तक पहुंची ही जाओगे। 
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यह बात को हम सभी जानते हैं कि मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं।
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अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा तो उसकी मृत्यु हो जाती है। वही हुआ। अंत में जब मयुर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है... 
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उसने कहा कि वह कितना भाग्यशाली है की जो जगत की प्यास बुझाते हैं ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ। 
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मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही। 
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तभी भगवान श्री रामने मयुर से कहा की, मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेर कर, मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है, मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा। मेरे सर पर आपको चढ़ाकर। 
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तत्पश्चात अगले जन्म में श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने अपने माथे पर मयूर पंख को धारण कर वचन अनुसार उस मयुरका ऋण उतारा था। 
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तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव है।
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न जाने हम तो कितने ही ऋणानुबंध से बंधे हैं। उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे। 
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अर्थात अपने से जो भी भला हम कर सकते हैं इसी जन्म में हमे करना है।


निःशुल्क मैडिकल कैम्प

नरसिह भवन ट्रस्ट 6 नवम्बर को आयोजित करेगा निःशुल्क मैडिकल शिविर 


गंगा माता आई हास्पिटल के सहयोग से मोतियाबिन्द के मरीजो का होगा निःशुल्क आपरेशन 
हरिद्वार 3 नवम्बर  समाजसेवा के क्षेत्र में अग्रणी संस्था नरसिंह भवन ट्रस्ट आगामी 6नवम्बर बुद्धवार को एक दिवसीय निःशुल्क मैडिकल कैम्प का आयोजन करेगा उक्त जानकारी अपर रोड स्थिति नरसिंह भवन धर्मशाला के प्रबंधक राजेन्द्र राय ने देते हुए बताया कि नरसिंह भवन प्रति वर्ष जनहित में निःशुल्क मैडिकल कैम्प का आयोजन करता है इस वर्ष ये कैम्प 6नवम्बर बुद्धवार को होने जा रहा है जिसमें नरसिंह भवन धर्मार्थ डिस्पैन्सरी के डाक्टर और पेरामैडिकल स्टाफ आने वाले मरीजो के स्वास्थ्य की जांच कर निःशुल्क दवाई वितरण करेगा साथ ही गंगा माता आई हास्पिटल के सहयोग से मोतियाबिन्द के मरीजो का आपरेशन करवा कर निःशुल्क लैंस प्रत्यारोपित करवायें  जाऐगे तथा चश्मे वितरित किये जाऐगे। नरसिह भवन धर्मशाला के सह प्रबंधक ओनकार राय ने बताया कि इस मैडिकल कैम्प की सभी व्वस्थाऐ नरसिंह भवन ट्रस्ट करेगा, उन्हों ने जन मानस से इस कैम्प का लाभ उठाने की अपील करते हुए निरंतर सेवा के संकल्प को दोराहा।


ज्ञान की कोई सीमा नही

 


ज्ञान की पराकाष्ठा नहीं होती है 


कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।


कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)


कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)


कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।
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स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)


कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
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स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)


वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
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कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।


शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....
अन्न के कण को
"और"
आनंद के क्षण को(संजय वरमा)


माता सच्चिदान्नद कुटिया में हुआ संत समागम

माता सच्चिदान्द कुटिया में हुआ संत समागम 
ब्रह्मलीन वैदिक ऋषि, भागहरि, माता सच्चिदान्द को संत समाज ने किया स्मरण निर्मल ऋषि भागहरि माता सच्चिदान्द कुटिया टृस्ट के तत्वावधान में आयोजित किया गया विशाल सम्मेलन 
हरिद्वार 2 नवम्बर  सप्तसरोव क्षेत्र स्थित निर्मल सम्प्रदाय की प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था निर्मल ऋषि भागहरि माता सच्चिदान्द कुटिया ट्रस्ट के तत्वावधान में विशाल संत समागम का आयोजन किया गया जिसमें संस्था के संस्थापक स्वामी सर्वेश्वर  सिंह शास्त्री निर्मल जी महाराज ने  ब्रह्मलीन गुरुजनो को स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की उन्हों ने कहा कि वैदिक ऋषि जी महाराज ने सेवा और सुमिरन का जो पौधा रोपित किया था उसको पल्लवित और पोषित करने का काम स्वामी भागहरि जी महाराज और माता सच्चिदान्द ने किया। समारोह की संयोजक विमला बहन निर्मल ने कहा कि गुरुजन अपने जप तप से स्थान विशेष को पवित्र करते हैं उनके जाने के बाद भी वह स्थान मंदिर भक्तजनो को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते रहते हैं। इस अवसर पर चित्रकूट आश्रम, नानक पुरा आश्रम के सैकड़ों संतजनों ने समारोह में भाग लिया। आश्रम के टृस्टी मदन गुलाठी, अशोक बवेजा, विकास मौंगा, अशोक गम्भीर आदि ने समारोह में आऐ हुऐ संतजनों का स्वागत किया, संउत जसवीर सिहं पहलवान महाराज ने गुरुजनो को नमन करते हुए संतजनों के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर लाल माता वैष्णो देवी मंदिर के संचालक भक्त दुर्गा दास, अमर शदाणी, राजा महाराज, स्वामी विवेकानंद,स्वामी स्वयांमा नंद पार्षद अनिरूद्ध भाटी, अनिल मिश्रा शिव दास दूबेआदि उपस्थित रहे


संजय चोपड़ा ने दी छठ पर्व की बँधाई


  • गंगा तट पर श्रद्धा के साथ मनाया गया छठ पर्व 


छठ के पावन पर्व पर धर्मनगरी हरिद्वार में माँ गंगा के तट पर डूबते हुए सूर्य देवता को अर्क देने के लिए अपने परिवारों के साथ पूर्वांचल वासियो ने बड़े ही धूमधाम से मनाया छठ पर्व। छठ पर्व पर विशेष रूप से 4 दिन तक माँ छठ मइया की पवित्रता के साथ पूजा अर्चना की जाती है छठ के पावन पर्व पर सभी पूर्वांचल वासियों को माँ गंगा के तट पर अपनी शुभकामनाएं व बधाई देते हैं पूर्व कृषि उत्पादन मंडी समिति अध्यक्ष भाजपा नेता संजय चोपड़ा ने कहा छठ का पावन पर्व विशेष रूप से छठ मइया की कृपा व सूर्य देवता के आशीर्वाद से सभी को यश व कीर्ति सम्मान धनधान्य से पूर्ण करता है और माँ गंगा के तट पर इस पर्व का विशेष रूप से और महत्व बढ़ जाता है। मेरी ओर से सभी पूर्वांचल वासियों को ढेर सारी शुभकामनाएं छठ मइया सभी की मनोकामना पूर्ण करें।


पद्म श्री संतोष यादव ने की छट पूजा

एवरेस्ट विजेता पद्म श्री संतोष यादव ने गंगा तट पर की सूर्य उपासना 
एवरेस्ट को दो बार  फतह करने वाली पद्मश्री संतोष यादव ने परिवार सहित त्रिपुरा योग आश्रम कनखल में छठ पूजा का आयोजन किया जिसमें उन के परिजन और निकट के मित्र शामिल हुऐ। देश में साहसिक यात्राओ, पर्यावरण सुरक्षा और सात्विक जीवन जीने के लिए प्रेरित करने वाली संतोष यादव नेे त्रिपुरा योग आश्रम के शुभ चिंतक स्वामी नरसिह गिरि महाराज के सानिध्य में सूूर्यभगवान की उपासना की  उन्होने कहा कि सूूूर्य पूजा वैदिक परम्परा हैं जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं, उन्हों ने बताया कि देश में साहसिक यात्राओ और खेलो की अपार सम्भावनाऐ हैं आवश्यकता है प्रतिभाओ को अवसर और प्रोत्साहन देने की पद्मश्री संतोष यादव ने सरल और सात्विक जीवन को आध्यात्म का प्रथम सोपान बताते हुए विलासपूर्ण जीवन से दूरी बनाने का समाज से अहवााहन किया ।इस अवसर आचार्य चिंंतामणि, जर्मनी से आई सुुुसैन,मारिया,समाजसेवी संजय वर्मा सहित श्रद्धालु जन उपस्थिति रहे। 


भगवान कार्तिकेय के अवतरण दिवस पर विशेष

निरंजनी अखाड़े के इष्ट देव है भगवान कार्तिकेय (अनीता वर्मा) 


    दक्षिण भारत के साथ विश्व के अन्य देशों में भी होती हैं भगवान कार्तिकेय जी की पूजा। 


कार्तिकेय जी का जन्म-
पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ,  इसलिये इस दिन स्कन्द यानि कार्तिकेय भगवान की पूजा का भी विशेष महत्व माना गया है। 
भगवान स्कन्द यानि कार्तिकेय जी को समर्पित अत्यधिक प्रसिद्ध मंदिर भी दक्षिण भारत के तमिलनाडु में ही स्थित है। कार्तिकेय जी को तमिल देवता भी कहकर सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू धर्म के अलावा यजीदी धर्म  के लोग भी शिवपुत्र कार्तिकेय जी की आराधना करते हैं। इन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन देवता के रुप में पूजा जाता हैं। विश्व के अन्य देशों जैसे  श्री लंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी कार्तिकेय जी को इष्टदेव के रूप में स्वीकार किया गया है। इनका विवाह इन्द्र की पुत्री देवसेना और वल्ली के साथ हुआ। 
धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का आतंक था, उसने देवताओं को भी पराजित कर दिया था। तारकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि शिव और पार्वती जी की संतान ही उसका विनाश कर सकती हैं, शिव और पार्वती जी के विवाह के पश्चात कार्तिकेय जी का जन्म हुआ। जिन्होंने तारकासुर का वध किया। 
कार्तिकेय जी को महासेन, शरजन्मा, षडानन, पार्वतीनन्दन, स्कन्द, सेनानी, अग्निभू, शक्तिश्वर, कुमार, विशाख आदि नामों से पुकारा जाता हैं। 
भगवान कार्तिकेय जी छः बालकों के रुप में जन्में थे, तथा इनकी देखभाल कृतिका( सप्त ऋषि कीपत्नीययों) ने की थी, इसलिये इन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं।


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