गजल यार रूठा है मनाना चाहता हूं। दीप आंधी में जलाना चाहता हूं।। कुछ करो तजबीज बीमारी की मेरे। यार को मैं घर बुलाना चाहता हूं।। चार दिन की जिंदगी में चार गम, बस। और कुछ दिन मुस्कुराना चाहता हूं।। जान की हो खैर तो इक बात बोलूं। मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं।। जानता हूं काम मुश्किल है मगर, मैं। दो किनारों को मिलाना चाहता हूं।। हो इजाजत नींद में तुझको बुला लूं। ख्वाब मैं तेरे सजाना चाहता हूं।। दे हुनर मुझको भी कोई, काम आए। आंख में काजल लगाना चाहता हूं।। हाकिमों कब तक करोगे जुल्म हमपे । मसअला ये मैं उठाना चाहता हूं।। 'दर्द' अपने दाग मैं सारे छिपाकर। आइने को आजमाना चाहता हूं।। दर्द गढ़वाली, देहरादून 09455485094


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