वक्त की सही तस्वीर पेश करती (कवि ब्रिजेन्द्र हर्ष जी की कविता)

जिनकी कमाई से खाती है दिल्ली 
मुशीबत में उनको भगाती है दिल्ली


नहीं वास्ता इसका इन्सानियत से
न जाने क्यों फिर भी सुहाती है दिल्ली


दौलत के अम्बार हैं इसकी चाहत
नहीं मुँह किसी को लगाती है दिल्ली


ज़रूरत पे पैरों में पड़ती मिलेगी
निकलता जो मतलब सताती है दिल्ली


नहीं सोच में इसके गम्भीरता है
हवा में ही डंडा घुमाती है दिल्ली


भगाया है जिनको वो दिल्ली न आएँ
 किस तरह देखना फड़फडाती है दिल्ली


महनत करो गाँव में अपने जमके
मुँह फेर लो गर बुलाती है दिल्ली


बृजेन्द्र "हर्ष"
हरिद्वार।


No comments:

Post a Comment

Featured Post

आयुर्वैदिक कॉलेजो के शिक्षकों ,कर्मचारियों ने किया वेतन न मिलने पर विरोध प्रदर्शन चिकित्सा कार्य छोड़कर अन्य कार्यों का किया बहिष्कार

हरिद्वार 28 जून आयुर्वेद विश्वविद्यालय टीचर्स वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वावधान में पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार गुरुकुल,ऋषिकुल एवं मुख्य परि...