मेरे मन की बात सुनो क़विता

मेरे मन की बात सुनो प्रितम( अनीता वर्मा) 
 
तुम खता करके भी
ख़ामोश रहो..
मैं बेगुनाही की भी
मांग लूं माफी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह ज़िद तुम्हारी ?


तुम शर्तो के घेरे में
कैद कर दो मुझे..
मै बेशर्त मगर हर बात
मान लूं तुम्हारी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह जरूरत तुम्हारी ?


तुम नज़रअंदाज़ कर दो
मेरी हर ख्वाइश..
मैं पूरी करती रहूं मगर
हर ज़िद भी तुम्हारी..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह नीयत तुम्हारी ?


तुम कोशिश भी न करो
मुझे मनाने की..
मैं रूठ कर भी मगर
मनाती रहूं तुम्हे ही..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह हठ तुम्हारी ?


तुम बढ़ते रहो नित
नये रास्तो पर..
मैं ठहरी रहूं बस
उसी मोड़ पर..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह चाल तुम्हारी ?


तुम बदलो कितना ही
रंग, चेहरा अपना..
मैं चाहती रहूं सदा
एक जैसा तुम्हें..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह उम्मीद तुम्हारी ?


तुम न पढ़ो न समझो
कोई सवाल मेरे..
मै तुम्हारी खामोशी में ही
ढ़ूढ़ती रहूं जवाब अपने..
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह आदत तुम्हारी ?


No comments:

Post a Comment

Featured Post

भू माफियाओं ने किया कब्जे का प्रयास ,पुलिस ने किया विफल व्यापारियों ने जताया आभार

जमीन पर कब्जे के प्रयास को नाकाम करने पर व्यापारियों ने जताया पुलिस का आभार पीड़ितों के समर्थन में आए व्यापारी हरिद्वार, 9 अप्रैल। आर्यनगर चौ...