सुखद प्रेरक प्रसंग *सरकार के साथ पुलिस का रवैया* 'हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा...जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे', पुलिसवालों के सवाल पर बच्चों ने मासूमियत से दिया ये जवाब नेशनल डेस्क:-आमतौर पर पुलिस को लेकर लोगों राय बहुत अच्छी नहीं रहती, अगर बात यूपी पुलिस की हो तो पिछले कुछ महीनों की घटनाएं सोच को और पुख्ता कर देती हैं लेकिन यूपी के अमरोहा में ऐसा वाक्या सामने आया है कि पुलिसवालों को सैल्यूट करने का मन करेगा। इस वाक्ये से जड़ी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में दो छोटे-छोटे बच्चे बैठ कर मिट्टी के दीये बेचते हुए दिखाई दे रहे हैं वहीं उनके सामने पुलिस वाले खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। एक यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा- 'दिवाली का बाजार सजा है। तभी पुलिस का एक दल दस्ता बाजार का मुआयना करने पहुँचता है। चश्मदीद का कहना है कि दस्ते में सैदनगली थाना के थानाध्यक्ष नीरज कुमार थे। दुकानदारों को दुकानें लाइन में लगाने का निर्देश दे रहे थे, उनकी नजर इन दो बच्चों पर गई। जो जमीन पर बैठे कस्टमर का इंतजार कर रहे हैं। चश्मदीद का कहना है कि मुझे लगा अब इन बच्चों को डाँट फटकार कर यहाँ से हटा दिया जाएगा। बेचारों के दीये बिके नहीं और अब हटा भी दिए जाएंगे। रास्ते में जो बैठे हैं…। थानाध्यक्ष बच्चों के पास पहुँचे। उनका नाम पूछा। पिता के बारे में पूछा। बच्चों ने बेहद मासूमियत से कहा, 'हम दीये बेच रहे हैं। मगर कोई नहीं खरीद रहा। जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे। अंकल बहुत देर से बैठे हैं, मगर बिक नहीं रहे। हम गरीब हैं। दिवाली कैसे मनाएंगे?'-चश्मदीदों का कहना हैं कि बच्चों की उस वक्त जो हालत थी बयां करने के लिए लफ्ज नहीं हैं सुबह बिना चाय नास्ते के दिये बेचने आऐ थे कपड़ों कि हालत और मासुमियत। बहुत मासूम हैं, जिन्हे बड़ी रकम बड़े नोट के बारे में तक पता नहीं चल रहा था, उन्हें बस चंद कुछ पैसों की चाह थी, ताकि शाम को दिवाली मना सकें। नीरज कुमार ने बच्चों से कहा, दीये कितने के हैं, मुझे खरीदने हैं…। थानाध्यक्ष ने दीये खरीदें। इसके बाद सभी पुलिस वाले भी दीए खरीदने लगे। इतना ही नहीं, फिर थाना अध्यक्ष बच्चों की साइड में खड़े हो गए। बाजार आने वाले लोगों से दीये खरीदने की अपील करने लगें जैसे दिपक दिये वह खुद बेच रहे हो। बच्चों के दीए और पुरवे कुछ ही देर में सारे बिक गए। जैसे-जैसे दीये बिकते जा रहे थे। बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था, बच्चे तुतलाते हूऐ अब साहब से अच्छे से बात कर रहे थें, साहब ने चाय नास्ता करने के लिए बोला तो बोले साहब पैसे कम पड़ जाऐंगें तो घर पर डाटेंगें, इनकी ईमानदारी स्वाभिमान के सभी कायल हो गऐ, साहब ने चाय नास्ता मंगवाया बड़ी मुस्किल से यह कहकर खिलाया कि पैसे हम दे रहे हैं, काफि बाते बताई हालात परिस्तिथियों से सबको रूबरू करवाया जिससे सभी को सिख देने वाले वाक्य भी थे।'-'जब सब सामान बिक गया तो थाना अध्यक्ष और पुलिस वालों ने बच्चों को दिवाली कि मिठाई-कपड़ें करके कुछ और पैसे दिए। ऐसे में एक पुलिस वाला हाथ कुछ कॉपियाँ मिनिंग बुक पढ़ने कि बैसिक किताबें पैन पैंसिंल जॉमिट्री बॉक्स लाया फ्रि के समय पढ़ाई करने को बोला और इस तरहा कि पुलिस वालों की एक छोटी सी कोशिश से बच्चों की दिवाली हैप्पी हो गई। घर जाकर कितने खुश होंगे वो बच्चे। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। मुझे लगता है, बच्‍चों को भीख देने से बेहतर है कि अगर वो कुछ बेच रहे हैं तो खरीद लिया जाए, ताकि वो भिखारी न बन जाएं। या किसी अपराध की तरफ रुख ना कर बैठें। उनमें इस तरह मेहनत करके कमाने का जज़्बा पैदा हो सकेगा। गरीबी ख़तम करने में सरकारें तो नाकाम हो रही हैं। मगर हमारी और तुम्हारी इस तरह की एक छोटी कोशिश किसी की परेशानी को हल कर सकती है।' शायद इसी लिये पुलिस वालों का अपराधियों में डर आमजन में विश्वास कहा जाता हैं। *Salute Up Police* 🚩🕉......🤝🏻.....🕉🚩 राज नामदेव जबलपुर ........


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