गजल सोचता हूं जिंदगी को आजमाना छोड़ दूं। मौत के इस खौफ में डरना डराना छोड़ दूं।। लोग कहते हैं कि उससे दिल लगाना छोड़ दो। जिंदगी है वो मेरी कैसे मनाना छोड़ दूं।। दर्द से पक्की है यारी दर्द ही है जिंदगी। दर्द के ये गीत क्यों मैं गुनगुनाना छोड़ दूं।। आइना किरदार मेरा आइने सी जिंदगी। आइना हूं आइना मैं क्यों दिखाना छोड़ दूं।। आपसे है जिंदगी है आपसे मेरी खुशी। आपकी खातिर गली क्या ये जमाना छोड़ दूं।। एक नन्हा सा दिया हूं कर रहा हूं रोशनी। आंधियों के डर से क्यों मैं जगमगाना छोड़ दूं।। गैर के है साथ चाहे यार खुश तो है मेरा। महफिलों में 'दर्द' अब मिलना मिलाना छोड़ दूं।। दर्द गढ़वाली, देहरादून 09455485094


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