चाँद सा चेहरा गजल

गजल
जिंदगी में कुछ उजाला कीजिए।
जुल्फ को अपनी घनेरा कीजिए।।


देखकर जिसको न देखूं और कुछ।
रूबरू वो चांद चेहरा कीजिए।।


मोच पांवों में न आए फिर कहीं।
आप खुद जीना न उतरा कीजिए।।


दर्द कितना है तुम्हें, मालूम है।
बंद अपना ये तमाशा कीजिए।


शर्म कुछ तो कीजिए,के आंख का।
मर रहा पानी है, जिंदा कीजिए।।


कुछ तसल्ली ही मिले दिल बेकरां।
बैठिए जालिम का चर्चा कीजिए।।


हाल जाने 'दर्द' का फुरसत किसे।
यार खुद अपना मदावा कीजिए।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून 


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