शायरों की महफिल

 ग़ज़ल 


यार उससा हमें जब मिला ही नहीं।

इश्क हमको दुबारा हुआ ही नहीं।।



आप क्यों उठ गए बज्म से क्या हुआ।

दिल हमारा अभी तो भरा ही नहीं।।


शाम ही शाम है जिस तरफ देखिए।

सुब्ह का कुछ यहां तो पता ही नहीं।।


अश्क बहते मुसलसल रहे आंख से।

कुछ किसी ने किसी से कहा ही नहीं।।


लोग सब तो यहां देवता हो गए।

आदमी का कहीं कुछ पता ही नहीं।।


आप क्यों इस तरह रूठकर चल दिए।

आप से तो हमें कुछ गिला ही नहीं।।


बस जिए जा रहे अनमने से सभी।

बात क्या है कोई बोलता ही नहीं।।


दर्द गढ़वाली, देहरादून 

09455485094

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