हमारा स्वर्णिम इतिहास


  • मेरे 800 साल वापिस दो.. इनके बिना हैं इतिहास अधूरा 

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  • भारत के स्वर्णिम युग को क्यों भूला दिया 

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  • एक अध्याय है बस, पूरे 800 साल का एक अध्याय !! गुप्त वंशका शाषण काल छठी शताब्दी (AD) में ख़त्म हुआ था और उसके बाद मेरी स्कूल की किताबोंमें सीधा जिक्र था महमूद गौरी के 1191 से शुरू हुए भारत पर हमले का | इस हमले केबाद भारत में धीरे धीरे इस्लामिक सल्तनत की पैठ शुरू हुई | मतलब पांचवी से दसवीं तक में इतिहास का एक अध्याय पूरे 800 साल के लिए ?


ये हर्षवर्धन का काल था


हर्षवर्धन ने हर्ष वंश की शुरुआत की थी, उनका समय गुप्त वंश के ठीक बाद का है | 16 वर्ष की आयु में आपको चाहे कुछ भी न मिलता हो, न मताधिकार,न विवाह का हक़, गाड़ी चलाने का लाइसेंस भी नहीं लेकिन करीब 606 (AD) में उन्होंने 16 साल की उम्र में सत्ता संभाली और पूरे उत्तर भारत और पाकिस्तान के इलाके पर कब्ज़ा कर लिया | 


इन्होंने उस पूरे इलाके को एक कर दिया था जिसका हम आज भी सिर्फ सपना ही देखते हैं | लेकिन ये उनके कारनामों की सिर्फ़ एक बानगी है | अपने 41 वर्ष के शाषण काल में उन्होंने 300 लड़ाइयां लड़ी थी, और उसमे से सिर्फ 299 बार जीत पाए थे ! कोई है क्या इस से बेहतर प्रदर्शन किया हो जिसने ? कोई तीस मार खां ?? कोई शमशीर बहादुर ?? कहीं से यलगार हो !!


संस्कृत में इन्होने तीन नाटक लिखे थे, रत्नावली, प्रियदर्शिका,और नागानन्द | नागानन्द पांच भागों का एक ऐसा नाटक है जिसमे शुरुआत तो रोमांस सेहोती है, थोड़ी ही देर में ये नाटक स्वरुप बदलता जाता है और अंत तक पहुँचते पहुँचते इसमें विलेन ही हीरो बन जाता है | फुरसत तो रही नहीं होगी इनके पास सोचने की 300 लड़ाइयों के बीच ही कहीं लिखी गई थीं ये किताबें |


हर्षवर्धन सती प्रथा को ख़त्म करने वाले पहले राजा थे | राजाराम मोहन राय के पैदा होने से कुछ 7-8 सौ साल पहले अपने राज्य में उन्होंने सतीप्रथा पर पूरी तरह लगाम लगा दी थी |  शून्य का अविष्कार इन्हीं के काल में हुआ था |है |


गोपाल नाम के शासक ने 705 (AD) में बंगाल में पाल वंश की स्थापना की थी | तलवार के जोर पर किसी से सत्ता नहीं हथियाई थी भाई, बाकायदा लोकतांत्रिक चुनाव से जनता ने बनाया था राजा | अपने समय के सबसे अच्छे योद्धा और सेना नायक थे ये, इसलिए भी आस पास वालों के हमलों से बचाने के लिए इन्हें चुना गयाथा | ज्यादातर राजवंश जहाँ 250 से 300 साल में ख़त्म हो जाते हैं इनके वंशजों ने400 साल शासन किया |


क्या लगता है ? उस ज़माने के मुस्लिम या मंगोल या फिर और दुसरे सुलतान क्या करते थे किसी इलाके को कब्ज़े में लेने पर ? लूट, बलात्कार,गुलाम बनाना, सर काट के उनकी दीवार जैसा कुछ ? नालंदा विश्विद्यालय के साथ इसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था ! सदमा लगा ? खैर इसने विक्रमशिला में दूसरी एक जगह विश्वविद्यालय और बना दिया क्योंकि जगह कम थी नालंदा में | एक पालों द्वारा पोषित और दूसरी उनकी बनाई हुई, वैसे ये भी ध्यान देने लायक है की बौद्ध धर्म का तिब्बतमें प्रचार इन्होने ही करवाया था |


अफ़गानिस्तान से बर्मा तक राज्य स्थापित कर के जब पालों का जी नहीं भरा तो 177 कमरों वाला सोमपुरा विहार बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनवा दिया । 
नर्मदा के दक्षिणी हिस्से पर पल्लव वंश का शासन क़रीब 150 वर्ष रहा था | महाबलीपुरम का मंदिर इन्ही राजाओं ने बनवाया था |
मंदिर वस्तु कला का अद्भुत नमूना तो है ही साथ ही ये ध्यान देने लायक है की कहा जाता है की मंदिर का काफी हिस्सा समुद्र में डूबा हुआ है |
भारतीय इतिहास में चोल वंश शायद सबसे पुराना होगा | कुछ तो इन्हें 300 (BC) में शुरू हुआ मानते हैं, सम्राट अशोक के स्तंभों में इनका जिक्र दक्षिण के मित्र राजाओं के तौर पर होता है | 1250 के आस पास कभी इस साम्राज्य का पतन प्रारंभ हुआ |चोलों ने बड़े बड़े मंदिर बनाने की परंपरा शुरू की थी, आज तमिलनाडु में जो विशालकाय मंदिर दिखते है उनमे से ज्यादातर इनके काल के हैं | 11 वीं शती में कभी राजा चोल ने तंजोर का वृहदीश्वर मंदिर बनवाया था | कई मामलों में ये मंदिर अनूठा है :
इसका शिवलिंग अपनेकिस्म का सबसे बड़ा शिवलिंग है |
मंदिर के बाहर स्थापित नंदी की प्रतिमा भी दुनिया में सबसे बड़ी है |
मंदिर का आधार इतना बड़ा है की इसके गोपुरम (शिखर) की छाया ज़मीन पे नहीं पड़ती |
गोपुरम (शिखर) एक पत्थर का बना हुआ है जिसका वजन 82,000 किलो के लगभग होगा | 11 वीं शताब्दी में इसे 63 मीटर की ऊंचाई पे पहुँचाना सचमुच मुश्किल था |
इस समस्या से निपटने के लिए चोलों ने त्रिकोणमिती का इस्तेमाल किया | करीब बीस किलोमीटर लम्बा एक ढलवां रास्ता बनाया और हाथियों ने धकेल धकेल के उस रास्ते से पत्थर को चोटी पर पहुंचा दिया |
फिर वहां कारीगरभेजे गए जिन्होंने उस ऊंचाई पर छोटी छोटी मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ बना दी पत्थर पर|


पता नहीं क्यों ? इतना ऊपर तो ज़मीन से नज़र भी नहीं आता !!


कोई आश्चर्य नहीं इस मंदिर को अगर Big Temple कहा जाता है तो, है ही विशाल !!


इस मंदिर को बनाने के बाद चोलों को संतुष्ट हो जाना चाहिए था | कई शताब्दियों तक लोग इस मंदिर के लिए उन्हें याद रखते | लेकिन नहीं, इतने से कोई तसल्ली नहीं हुई उन्हें, राजा राजा के पुत्र राजेन्द्र ने इसी मंदिर की पक्की नक़ल चिदम्बरम नाम के आज के शहर के पास बनवा दी |


वैसे तमिलनाडु के बाहर शायद ही कोई इस दुसरे मंदिर का नाम भी जानता हो, इतिहास की किताबों में कभी पढ़ा नहीं जिक्र हमने, गंगई कोंड चोलापुरम नाम की जगह पे है, चिदंबरम शहर का नाम सुना हो शायद, उसके पास ही है |


बांध और नदियों को मोड़ के सिंचाई की व्यवस्था के बारे में तो जानते होंगे आप सब | आधुनिक अभियंत्रण का कमाल होता है | चोल राजा करिकालन ने कावेरी नदी पर 329 फीट का पत्थर का बांध बनवाया था पहली शताब्दी (AD) में | पानी जमा किया जाता था और नहरों से करीब 10,00,000 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई होती थी चोल साम्राज्य में ! उनकी बनाई नहरों की व्यवस्था से आज भी सिंचाई होती है, कोई नयी व्यवस्था नहीं है जो आज इस्तेमाल हो रही है, उसी पुराने वाले को थोड़ा सुधारा गया है | हमारे इतिहासकार पता नहीं क्यों इन बांध और नहरों का जिक्र भी भूल गए |
छठी शताब्दी में इनके पास नौसेना थी,सलामिस की जंग पहली ऐसी जंग थी जो पानी में लड़ी गई और उसके लिखित दस्तावेज़ भी मौजूद हैं | उनकी नौसेना, पैदल सेना से बिलकुल अलग थी, प्रचलित प्रथा की तरह उनके पैदल सैनिक जहाजों पे चढ़ के लड़ते नहीं थे, नौसैनिक बिलकुल स्वतंत्र इकाई की तरह थे उनके लिए | सिर्फ युद्ध में इस्तेमाल होने वाले जहाज भी सबसे पहले इन्होने ही बनाये थे |


जहाज अलग अलग मकसदों के लिए बनते थे, Destroyer जहाज अलग होते थे, Frigate अलग, और ललचा के ऐसे जहाजों के पास शत्रु जहाजों को लाने के लिए इनके पास “कन्निस” नाम के जहाज होते थे | “कान्निस” का तमिल में मतलब शायद “कुंवारी” होता है, लुभाने का तरीका देखिये !! जहाजों के व्यूह की संरचना और पानी में होने वाली लड़ाइयों पर किताबें लिखी थी इन्होने | सबसे छोटा जहाजों का समूह बारह जहाजों का और बड़े दल तो करीब 500 जहाजों के होते थे |


जितनी जानकारी उन्हें जहाजों की थी उतने से जब तसल्ली नहीं होती थी उन्हें, तो चीन से मंगाए हुए गुलेल नुमा उपकरण और आग लगाने के संयंत्र भी जहाजों पे लगा रखे थे उन्होंने | अपने से पांच गुना बड़ी नौसेना की टुकड़ियों को नेस्तोनाबूद करने के दर्ज़न भर उदाहरण उनकी नौसेना की किताबों में हैं |


कंबोडिया में उस समय श्री विजय का साम्राज्य था, उन्होंने एक चोल राज्य के व्यापारी का सामान जब्त करके उसे निकाल दिया | पांच सौ जहाजों के दो जंगी बेड़े जवाब देने पहुंचे और श्री विजय की सल्तनत नक़्शे से गायब कर दी | उनके पड़ोसी से कम्बुज्देश के, जब उन्होंने श्री विजय का हाल सुना तो एक सजा धजा सोने से लदा रथ भेजा और हाथ जोड़े पहुंचे | इस देश पर उन्होंने एक तीर भी नहीं दागा था |कहा जाता है की गलती से दिशा निर्धारण में चोलों से चूक हुई और वो श्रीलंका जा पहुंचे, बात बात में उनकी नौसैनिक टुकड़ी ने पूरे श्रीलंका पर ही कब्ज़ा जमा लिया !!इस घटना की सत्यता को प्रमाणित नहीं किया जा सकता, वाकई चूक हुई थी या जान बूझ कर गए थे ये आज जांचा नहीं जा सकता | लेकिन जैसी उनकी नौसेना थी, पांच सौ जहाजों की एक टुकड़ी के लिए ये काम कुछ ख़ास मुश्किल नहीं होगा |


अपने अच्छे समय में चोल साम्राज्य के पास क़रीब पंद्रह सौ युद्धक जहाज रहते थे | कंबोडिया, श्रीलंका, और तमिलनाडु के कावेरीपूमपट्टीनम (पोमपुहर) में इनके नौसैनिक ठिकाने थे | मालक्का की खाड़ी में समुद्री लुटेरों से निपटने के लिए चीनियों ने इनकी नौसेना से मदद मांगी थी | ग्रीक किताबों में भी इनकी नौसेना का जिक्र आता है |
दरअसल राजेन्द्र चोल ने जो मंदिर बनवाया था वो इसलिए बनवाया था क्योंकि ज़मीन पर उसने कावेरी से गंगा तक का इलाका जीत लिया था | मंदिर के नाम का मोटा मोटा मतलब “गंगा का दमन”होता है | कहीं अमेरिका में हुए होते ये चोल राजा तो थ्री हंड्रेड जैसी फ़िल्में बनती इनपर भी, और हमारे यहाँ ? एक पन्ने का चौथाई हिस्सा !!


हमारी इतिहास की किताबों में राजा राज चोल और राजेन्द्र चोल के अलावा अन्य राजाओं का नाम भी नहीं आता, जबकि 16 चोल राजाओं ने शाषण किया था |इनके बारे में सारी काम की बातें गायब कर दी गई हैं |


इनके अलावा महाराष्ट्र में शाषण करने वाले राष्ट्रकूट वंश का भी एक पैराग्राफ का जिक्र है | सिर्फ ध्यान दिलाने के लिए बता दूँ की ये महाराष्ट्र, कर्णाटक और आंध्र प्रदेश के सबसे जाने माने पर्यटक केन्द्रों के निर्माता थे | जी हाँ, अजंता, एल्लोरा और एलीफैंटा की गुफ़ाओं की बात कर रहे हैं हम | कैलाश मंदिर जो की एल्लोरा में है वो तो सिर्फ एक पत्थर को काट कर बनाया गया है|


ऐसा ही कुछ यादवों के साथ भी हुआ | इन लोगों ने देवगिरी बनवाया था, बाद में एक मुर्ख मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा इसे दौलताबाद बुलाया गया |अपनी राजधानी तुगलक देवगिरी क्यों ले गया था इसके पीछे भी एक रोचक किस्सा है |इतिहास में सिर्फ यही एक किला है जिसे कभी लड़ाई में जीता नहीं गया है | एक बार अल्लाउदीन खिलजी ने इसपे कब्ज़ा किया था लेकिन रिश्वत दे कर, लड़ के इसे किसी ने नहीं जीता | यादवों का नाम नहीं सुना कभी ?


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